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"CM को हटाया जाए, मणिपुर में राष्ट्रपति शासन हो"- केंद्र से कुकी नेताओं की मांग

Manipur Violence: कुकी समुदाय ने अपने समाज के कथित जातीय नरसंहार पर CM की चुप्पी को लेकर उन्हें हटाने की मांग की है.

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"हमारी तत्काल मांगें हैं और दीर्घकालिक मांगें हैं. हमारी मुख्य तत्काल मांग मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लगाने की है." ये कहना है कुकी-जो नागरिक समाज समूह के सदस्य सैम नगैहते का. नगैहते 30 मई, मंगलवार को मणिपुर के चुराचांदपुर जिले में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मिलने वाले प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा थे.

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द क्विंट से बात करते हुए नगैहते ने कहा कि "लंबी अवधि की मांग एक अलग प्रशासन के लिए है - चाहे वह केंद्र शासित प्रदेश के रूप में हो, जैसा कि केंद्र ने लद्दाख में किया है, या एक अलग राज्य.

उसी दिन अमित शाह के साथ घाटी की मेईती महिला नेताओं के साथ बैठक के बाद इंफाल के ईमा मार्केट की प्रतिनिधि श शांति देवी ने मीडिया को बताया कि केंद्रीय गृह मंत्री ने स्पष्ट किया कि "मणिपुर के लिए एक अलग प्रशासन संभव नहीं है, " जैसा कि उन्होंने राज्य में "शासन के लिए समावेशी दृष्टिकोण" को बढ़ावा दिया."

हिंसा प्रभावित राज्य के अपने चार दिवसीय दौरे के तहत अमित शाह कैबिनेट मंत्रियों और नागरिक समाज संगठनों सहित विभिन्न हितधारकों के साथ बैठकें कर रहे हैं. 3 मई को कुकी और मेइती के बीच झड़पों के बाद शाह की यह पहली मणिपुर यात्रा है.

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कुकी समुदाय की मांग क्या है?

राष्ट्रपति शासन की मांग क्यों की जा रही है, इस पर विस्तार से बताते हुए नगैहते ने आरोप लगाया कि मणिपुर पुलिस कमांडो द्वारा अरामबाई तेंगगोल और मेइतेई लेपुन जैसे मेइती चरमपंथी समूहों के साथ गांवों पर बार-बार हमले किए जाने के उदाहरण हैं. उन्होंने आगे कहा कि...

"दूसरी बार, इन समूहों ने पुलिस स्टेशनों, चौकियों पर छापा मारा और वहां से हथियार ले लिए. इसे फिर से कैसे होने दिया जा सकता है? यह ऐसा है जैसे राज्य इन समूहों के लिए पूरा शस्त्रागार खोल रहा है, जिनके खिलाफ हम अपना बचाव नहीं कर सकते हैं.

इंडिजिनस ट्राइबल लीडर्स फोरम के गिन्जा वुलजोंग ने द क्विंट को बताया कि मणिपुर में राष्ट्रपति शासन की दो मुख्य मांगों और आदिवासियों के लिए एक अलग प्रशासन के निर्माण के अलावा कुकी की कम से कम 11 "तत्काल" मांगें हैं.

वुलजोंग समझाती हैं कि "राहत के लिए इनमें 100 से अधिक अज्ञात शवों को पुनः प्राप्त करने से लेकर हजारों विस्थापित लोगों के लिए पुनर्वास उनकी सुरक्षा और हमारे गांवों की सुरक्षा शामिल है. नगैहते ने आगे कहा कि...

"हम जानना चाहते हैं कि इंफाल में कितने लोग मारे गए और उनके नाम क्या हैं. हम मुर्दाघर नहीं जा पा रहे हैं. मरने वालों की संख्या, और लापता होने वालों की संख्या पर सरकार की ओर से कोई पुष्टि नहीं है और क्या मरने वालों के परिजनों को सूचित कर दिया गया है."

उन्होंने कहा कि "आदिवासियों के लिए, शरीर को दफनाने और फिर शांति की बात करने की प्रथा है. हम तब तक कुछ भी बात नहीं करते जब तक कि हम अपने मृतकों को दफन नहीं करते."

इसके अलावा, अन्य मांगों में से एक मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह को हटाने की है, जिन पर आदिवासियों ने "कुकी लोगों की जातीय सफाई, विशेष रूप से इंफाल घाटी में" चुप रहने का आरोप लगाया था.

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"पिछले एक महीने में राज्य में इतनी हिंसा हुई है, लेकिन मुख्यमंत्री ने कुकी की जातीय सफाई के खिलाफ एक शब्द भी नहीं कहा है. उन्होंने यह भी स्पष्ट करने की जहमत नहीं उठाई है कि यह धार्मिक हिंसा नहीं है (जैसा कि कुछ बना रहे हैं) यह एक जातीय हिंसा है. वास्तव में, उन्होंने इस महीने की शुरुआत में वरिष्ठतम आदिवासी विधायक वुंगजागिन वाल्टे के साथ बैठक के बाद उनके निवास के पास हमला किए जाने की घटना की निंदा भी नहीं की है. इससे हमारे डर में वृद्धि हुई है और हमें निशाना बनाया जा रहा है."
सैम नगाइते

नगैहते ने कहा कि मुख्यमंत्री के बयान के साथ दूसरी समस्या यह है कि लाइसेंसी बंदूकों से लैस ग्राम रक्षकों को भी "आतंकवादी" करार दिया जा रहा है.

मेइती समुदाय की क्या मांग है?

मेइती समुदाय "मणिपुर की एकता और अखंडता की रक्षा" के बारे में मुखर रहा है.

मंगलवार, 30 मई को कम से कम 13 मणिपुरी एथलीटों - भारोत्तोलन चैंपियन एल अनीता चानू और मुक्केबाज सरिता देवी के नेतृत्व में - इम्फाल राजभवन की अपनी यात्रा के दौरान अमित शाह को एक ज्ञापन सौंपा, जिसमें धमकी दी गई थी कि अगर राज्य में शांति बहाल नहीं हुई तो वे अपना सम्मान और पदक वापस लौटा देंगे.

मुक्केबाज सरिता देव ने मीडिया से कहा कि...

"हर दिन मेइती मारे जा रहे हैं, उनके घर जलाए जा रहे हैं, बच्चों ने अपने माता-पिता को खो दिया है. केंद्र ने कहा है कि उसने राज्य में लगभग 40,000 बल तैनात किए हैं, लेकिन वे कहीं नजर नहीं आ रहे हैं. "आतंकवादियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर पाने के पीछे सेना SOO का हवाला देती है. मणिपुर को जले हुए एक महीना हो गया है."

मेइती समुदाय नागरिकों के राष्ट्रीय रजिस्टर (NRC) के कार्यान्वयन की भी मांग कर रहा है, जो "अवैध अप्रवासियों" की पहचान करने और उन्हें निर्वासित करने की कवायद है.

इंफाल में महिला विक्रेता नेताओं के साथ अमित शाह की बैठक के बाद, श शांति देवी ने मीडिया को बताया कि "राज्य सरकार ने इस मुद्दे को हल करने के लिए एक समिति बनाई है."

उन्होंने आगे कहा कि "केंद्रीय गृह मंत्री ने आश्वासन दिया कि असम, नागालैंड और मणिपुर में आवश्यक कार्रवाई के लिए रेटिना और अंगूठे के निशान का उपयोग किया जाएगा."

इस बीच, अमित शाह ने गुरुवार, 1 जून को कहा कि भारत के एक सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) की अध्यक्षता में एक पैनल मणिपुर में जातीय संघर्ष की जांच करेगा. उन्होंने यह भी घोषणा की कि हिंसा से संबंधित छह मामलों की जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) द्वारा की जाएगी.

“केंद्र के मार्गदर्शन में सीबीआई द्वारा जांच की जाएगी. मैं सभी को विश्वास दिलाता हूं कि जांच निष्पक्ष होगी और हिंसा के पीछे के कारणों की जड़ तक जाएगी."

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