-प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Modi) के खिलाफ अचार संहिता (MCC) के उल्लंघन का आरोप लगा. दिल्ली हाई कोर्ट में उन्हें अयोग्य ठहराने के लिए याचिका भी दायर की गई जिसे खारिज कर दिया गया.
लेकिन चुनावों के दौरान लगने वाली ये आदर्श आचार संहिता क्या है? इसके उल्लंघन करने पर क्या सजा मिलती है? और इसकी शुरुआत कैसे हुई?
आचार संहिता क्या है? भारत में कब हुई शुरुआत, उल्लंघन पर क्या कर सकता है चुनाव आयोग?
1. क्या होती है आदर्श आचार संहिता?
आदर्श आचार संहिता चुनाव आयोग द्वारा जारी दिशा-निर्देशों का एक सेट है जो राजनीतिक दलों और उनके उम्मीदवारों के लिए जारी होती है. ऐसा इसलिए होता है ताकि देश में मुक्त और निष्पक्ष (फ्री एंड फेयर) चुनाव हो सके.
चुनाव के दौरान अक्सर राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों पर मतदाताओं को रिश्वत, लालच देने का आरोप लगता है. यहां तक कि धमकाने के आरोप भी लगते हैं. इसलिए धन-बल के प्रयोग को रोकने के लिए आचार संहिता लागू की जाती है.
आचार संहिता में दिए गए दिशा-निर्देश चुनाव को लेकर होते हैं. चुनावी रैली, सभाएं, उम्मीदवारों का व्यवहार, पोलिंग बूथ से जुड़े नियम, खर्च, आदी.
Expand2. आचार संहिता के दौरान कौन से नियम लागू होते हैं?
आचार संहिता के लागू होते ही केंद्र और राज्य सरकार समेत हर तरह के प्रशासन पर कई तरह के अंकुश लगा दिए जाते हैं.
सत्ताधारी दल सरकारी धन का इस्तेमाल चुनाव के दौरान खुद को फायदा पहुंचाने के लिए नहीं कर सकता.
ऐसे ही सरकारी गाड़ी, प्लेन या बंगले का इस्तेमाल चुनाव प्रचार में नहीं किया सकता.
सरकारी पद पर बैठे नेता किसी भी सरकारी दौरे पर चुनाव प्रचार नहीं कर सकते.
सरकारी योजनाओं की घोषणा, किसी प्रोजेक्ट का लोकार्पण या शिलान्यास नहीं किया सकता.
सत्ताधारी पार्टी सरकारी खर्च पर विज्ञापन नहीं दे सकती, किसी की सरकारी पदों पर नियुक्ति नहीं कर सकती.
रैली या चुनावी सभाओं के लिए पुलिस से अनुमति लेनी होती है.
जाति या धर्म के नाम पर वोट नहीं मांग सकते.
चुनावी रैली के लिए मैदान, आदी संसाधन सभी को समान रूप से देना सुनिश्चित किया जाता है.
चुनाव प्रचार के लिए धार्मिक स्थलों का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता.
चुनाव प्रचार के दौरान किसी की निजी जिंदगी का जिक्र नहीं किया जा सकता, सांप्रदायिक भावनाएं भड़काने वाली कोई अपील नहीं की जा सकती.
सरकारी अधिकारी या पुलिस अधिकारी किसी राजनीतिक दल का पक्ष नहीं ले सकता.
Expand3. कब लागू किया जाता है आचार संहिता?
आचार संहिता को उस समय से लागू कर दिया जाता है जिस समय से चुनावी तारीखों का ऐलान होता है, और ये तब तक लागू रहती है जब तक नतीजे न आ जाए.
Expand4. कैसे हुई आचार संहिता की शुरुआत?
भारत में जब चुनाव को लेकर नियम-कायदे नहीं थे, तो धन-बल का प्रयोग करने में कोई झिझकता नहीं था. प्रचार को लेकर भी कोई नियम नहीं थे.
इसको लेकर चर्चाएं होती थी कि कुछ होना चाहिए. फिर 1960 में पहली बार केरल ने बताया कि चुनाव के दौरान उम्मीदवारों को क्या करना चाहिए और क्या नहीं.
इसके बाद राजनीतिक दलों से बातचीत और सहमति के बाद आदर्श आचार संहिता का खाका तैयार किया गया. फिर 1962 के लोकसभा चुनाव में पहली बार चुनाव आयोग ने आचार संहिता को लागू किया. इसके बाद 1967 के लोकसभा और विधानसभा के चुनावों में पहली बार राज्य सरकारों से आग्रह किया गया कि वे राजनीतिक दलों से इसका अनुपालन करने को कहें. इसके बाद से लगभग सभी चुनावों में आदर्श आचार संहिता लागू होने लगी. समय-समय पर इसमें बदलाव भी होते रहे.
Expand5. क्या आचार संहिता का कानूनी आधार है?
आदर्श आचार संहिता केवल चुनाव आयोग की गाइडलाइन है, इसका कोई कानूनी आधार नहीं है. संसद ने इस पर कोई कानून नहीं बनाया है. आदर्श आचार संहिता अपने आप में किसी कानून का हिस्सा नहीं है.
हां, कुछ प्रावधान आदर्श आचार संहिता के कुछ प्रावधान आईपीसी की धाराओं के तहत लागू हैं.
Expand6. आचार संहिता का उल्लंघन होने पर क्या सजा है?
ये तो साफ है कि कोई कानूनन सजा तो नहीं है. लेकिन चुनाव आयोग अपने अधिकार क्षेत्र में कार्रवाई कर सकता है. हालांकि अब तक गंभीर दंडात्मक कार्रवाई का उदाहरण देखने को नहीं मिला है.
लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में चुनाव आयोग ने बीजेपी नेता अमित शाह और समाजवादी पार्टी के नेता आजम खान पर कार्रवाई की थी. दोनों पर चुनावी भाषणों के दौरान सीमा लांघने का आरोप लगा था. इसके बाद चुनाव आयोग ने दोनों को प्रचार करने से प्रतिबंधित कर दिया था. हालांकि प्रतिबंध को बाद में हटा लिया गया था जब दोनों ने माफी मांगी और आगे ऐसा न करने का आयोग को आश्वासन दिया.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)
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क्या होती है आदर्श आचार संहिता?
आदर्श आचार संहिता चुनाव आयोग द्वारा जारी दिशा-निर्देशों का एक सेट है जो राजनीतिक दलों और उनके उम्मीदवारों के लिए जारी होती है. ऐसा इसलिए होता है ताकि देश में मुक्त और निष्पक्ष (फ्री एंड फेयर) चुनाव हो सके.
चुनाव के दौरान अक्सर राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों पर मतदाताओं को रिश्वत, लालच देने का आरोप लगता है. यहां तक कि धमकाने के आरोप भी लगते हैं. इसलिए धन-बल के प्रयोग को रोकने के लिए आचार संहिता लागू की जाती है.
आचार संहिता में दिए गए दिशा-निर्देश चुनाव को लेकर होते हैं. चुनावी रैली, सभाएं, उम्मीदवारों का व्यवहार, पोलिंग बूथ से जुड़े नियम, खर्च, आदी.
आचार संहिता के दौरान कौन से नियम लागू होते हैं?
आचार संहिता के लागू होते ही केंद्र और राज्य सरकार समेत हर तरह के प्रशासन पर कई तरह के अंकुश लगा दिए जाते हैं.
सत्ताधारी दल सरकारी धन का इस्तेमाल चुनाव के दौरान खुद को फायदा पहुंचाने के लिए नहीं कर सकता.
ऐसे ही सरकारी गाड़ी, प्लेन या बंगले का इस्तेमाल चुनाव प्रचार में नहीं किया सकता.
सरकारी पद पर बैठे नेता किसी भी सरकारी दौरे पर चुनाव प्रचार नहीं कर सकते.
सरकारी योजनाओं की घोषणा, किसी प्रोजेक्ट का लोकार्पण या शिलान्यास नहीं किया सकता.
सत्ताधारी पार्टी सरकारी खर्च पर विज्ञापन नहीं दे सकती, किसी की सरकारी पदों पर नियुक्ति नहीं कर सकती.
रैली या चुनावी सभाओं के लिए पुलिस से अनुमति लेनी होती है.
जाति या धर्म के नाम पर वोट नहीं मांग सकते.
चुनावी रैली के लिए मैदान, आदी संसाधन सभी को समान रूप से देना सुनिश्चित किया जाता है.
चुनाव प्रचार के लिए धार्मिक स्थलों का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता.
चुनाव प्रचार के दौरान किसी की निजी जिंदगी का जिक्र नहीं किया जा सकता, सांप्रदायिक भावनाएं भड़काने वाली कोई अपील नहीं की जा सकती.
सरकारी अधिकारी या पुलिस अधिकारी किसी राजनीतिक दल का पक्ष नहीं ले सकता.
कब लागू किया जाता है आचार संहिता?
आचार संहिता को उस समय से लागू कर दिया जाता है जिस समय से चुनावी तारीखों का ऐलान होता है, और ये तब तक लागू रहती है जब तक नतीजे न आ जाए.
कैसे हुई आचार संहिता की शुरुआत?
भारत में जब चुनाव को लेकर नियम-कायदे नहीं थे, तो धन-बल का प्रयोग करने में कोई झिझकता नहीं था. प्रचार को लेकर भी कोई नियम नहीं थे.
इसको लेकर चर्चाएं होती थी कि कुछ होना चाहिए. फिर 1960 में पहली बार केरल ने बताया कि चुनाव के दौरान उम्मीदवारों को क्या करना चाहिए और क्या नहीं.
इसके बाद राजनीतिक दलों से बातचीत और सहमति के बाद आदर्श आचार संहिता का खाका तैयार किया गया. फिर 1962 के लोकसभा चुनाव में पहली बार चुनाव आयोग ने आचार संहिता को लागू किया. इसके बाद 1967 के लोकसभा और विधानसभा के चुनावों में पहली बार राज्य सरकारों से आग्रह किया गया कि वे राजनीतिक दलों से इसका अनुपालन करने को कहें. इसके बाद से लगभग सभी चुनावों में आदर्श आचार संहिता लागू होने लगी. समय-समय पर इसमें बदलाव भी होते रहे.
क्या आचार संहिता का कानूनी आधार है?
आदर्श आचार संहिता केवल चुनाव आयोग की गाइडलाइन है, इसका कोई कानूनी आधार नहीं है. संसद ने इस पर कोई कानून नहीं बनाया है. आदर्श आचार संहिता अपने आप में किसी कानून का हिस्सा नहीं है.
हां, कुछ प्रावधान आदर्श आचार संहिता के कुछ प्रावधान आईपीसी की धाराओं के तहत लागू हैं.
आचार संहिता का उल्लंघन होने पर क्या सजा है?
ये तो साफ है कि कोई कानूनन सजा तो नहीं है. लेकिन चुनाव आयोग अपने अधिकार क्षेत्र में कार्रवाई कर सकता है. हालांकि अब तक गंभीर दंडात्मक कार्रवाई का उदाहरण देखने को नहीं मिला है.
लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में चुनाव आयोग ने बीजेपी नेता अमित शाह और समाजवादी पार्टी के नेता आजम खान पर कार्रवाई की थी. दोनों पर चुनावी भाषणों के दौरान सीमा लांघने का आरोप लगा था. इसके बाद चुनाव आयोग ने दोनों को प्रचार करने से प्रतिबंधित कर दिया था. हालांकि प्रतिबंध को बाद में हटा लिया गया था जब दोनों ने माफी मांगी और आगे ऐसा न करने का आयोग को आश्वासन दिया.
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