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Mundka Fire:आग के ढेर पर दिल्ली, हर घटना के बाद सियासी नौटंकी, मूल मुद्दे गायब

2016 से 2020 के बीच आग से देशभर में रोज औसतन 35 लोगों की मौत हुई है-रिपोर्ट

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पश्चिमी दिल्ली के मुंडका मेट्रो स्टेशन के पास तीन मंजिला बिल्डिंग में लगी भीषण आग (Delhi Mundka Fire) की वजह से 27 लोगों की मौत हो गई, जबकि लगभग 17 लोग घायल हुए हैं. हर बार की तरह इस बार भी दिल झकझोर देने वाली आगजनी की घटना पर घड़ियाली आंसू बहाए गए. मुआवजे और जांच की बाते हुई. लेकिन जैसे-जैसे आग ठंडी होती जाती है वैसे-वैसे मुद्दा भी ठंडा होता है. जांचे व कार्रवाईयां भी ठंडी पड़ने लगती हैं. आरोपियों को जमानत मिल जाती है. फिर कहीं कोई ऐसी घटना होती है तो सबकी नींद खुल जाती है, लेकिन इन सबसे दूर असल मुद्दे पर कोई ध्यान नहीं देना चाहता है. वोट के चक्कर में जनता को नेता लुभाना चाहते हैं, नेता को खुश करने के चक्कर में अधिकारी और कर्मचारी सभी मूल समस्याओं को जानते हुए भी कुछ नहीं करते हैं. यहां हम कुछ ऐसे ही मुद्दों की बात करेंगे जिसको देखकर ऐसा लगता है कि दिल्ली अभी भी बारूद या आग के ढेर पर है, बस एक चिंगारी की जरूरत है.

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अस्पताल नहीं कराते हैं फायर सेफ्टी का 'इलाज'

पिछले साल दिल्ली के सफदरजंग और एलएनजेपी हॉस्पिटल में आग लगने से अफरा-तफरा मच गई थी. लेकिन इसके बावजूद भी दिल्ली के अस्पतालों में आग से बचाव के लिए क्लियरेंस सर्टिफिकेट नहीं हैं. मेडिकल डॉयलॉग्स की खबर के मुताबिक सरकारी आंकड़ों के अनुसार दिल्ली (NCT) में 1,478 पंजीकृत अस्पताल, नर्सिंग होम, प्रसूति गृह और स्वास्थ्य उप-केंद्र हैं. इनमें से सिर्फ 103 संस्थानों के पास दमकल विभाग से क्लीयरेंस सर्टिफिकेट है.

2016 से 2020 के बीच आग से देशभर में रोज औसतन 35 लोगों की मौत हुई है-रिपोर्ट

CNN News18 की एक रिपोर्ट के दिल्ली में केंद्र सरकार के चार बड़े हॉस्पिटल में फायर सेफ्टी के पर्याप्त इंतजाम नहीं हैं. इन अस्पतालों के पास दमकल विभाग की ओर से जारी होने वाला एनओसी भी नहीं है, जो कि आग से सुरक्षा के लिए अनिवार्य है. इसके अलावा दिल्ली की बाजारों में भी फायर सेफ्टी के पर्याप्त इंतजाम नहीं हैं.

हरिनगर में स्थित डीडीयू हॉस्पिटल के ट्रामा सेंटर के पास फायर सेफ्टी क्लीयरेंस ही नहीं है. वहीं, एलएनजेपी हॉस्पिटल का ऑपरेशन वार्ड और कैजुअल वार्ड का फायर सिस्टम तय मानकों पर खरा नहीं उतरता. यही नहीं, दिल्ली के बड़े हॉस्पिटल में शामिल आरएमएल के पास फायर एनओसी भी नहीं है.

सभी तरह के छोटे-बड़े हॉस्पिटल और नर्सिंग होम्स में आग से सुरक्षा के पर्याप्त उपाय होने के साथ-साथ उन्हें फायर सेफ्टी के सभी मापदंड़ों पर खरा उतरना चाहिए.
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बाजार, रेस्टोरेंट और गेस्ट हाउस में भी नहीं हैं पूरे इंतजाम 

व्यस्त इलाकों से भरी हुई दिल्ली आग के ढेर पर बैठी है. संकरी गलियों में अवैध निर्माण में चल रही हजारों दुकानों में कभी भी आग घटना जैसी भयानक घटना घट सकती है, लेकिन इसको लेकर कोई भी सक्रिय नहीं है. सब मौन हैं. जबकि आगजनी की कई घटनाएं हो चुकी हैं.

एमसीडी और फायर डिपार्टमेंट के अधिकारियों के मुताबिक दिल्ली के करीब 70 फीसदी रेस्टोरेंट और गेस्ट हाउस में फायर सेफ्टी नियमों का पालन नहीं होता है. CNN News18 की अगस्त 2021 की एक रिपोर्ट में बताया गया था कि दिल्ली के सबसे पॉश इलाके में शुमार लुटियंस खान मार्केट में 30 में से केवल तीन रेस्टोरेंट के पास दिल्ली फायर सर्विस का वैध एनओसी सर्टिफिकेट था. उस रिपोर्ट में फायर सर्विस के अधिकारी ने यह भी कहा था दिल्ली में 2000 से ज्यादा ऐसे रेस्टोरेंट हैं जिनके पास वैलिड फायर सेफ्टी क्लियरेंस नहीं है.

2016 से 2020 के बीच आग से देशभर में रोज औसतन 35 लोगों की मौत हुई है-रिपोर्ट
चांदनी चौक, जामा मस्जिद, कश्मीरी गेट, मोरी गेट, सदर बाजार, आजाद मार्केट, करोलबाग, कनॉट प्लेस, सरोजनी नगर, द्वारका, लाजपत नगर समेत कई मार्केट्स में पैर रखने की जगह नहीं होती है ऐसे में किसी फायर फाइटर वाहन का अंदर जाना काफी चुनौतीपूर्ण होता है.
2016 से 2020 के बीच आग से देशभर में रोज औसतन 35 लोगों की मौत हुई है-रिपोर्ट

गांधी नगर में कपड़े की बड़ी मंडी है, वहीं, सीलमपुर, शाहदरा, जाफराबाद, नरेला, लक्ष्मी नगर जैसे इलाकों की हालत काफी गंभीर है. दिल्ली की अधिकांश मार्केट में फायर फाइटिंग के इंतजाम नहीं हैं.

पूर्वी दिल्ली के लक्ष्मी नगर इलाके में दर्जनों कोचिंग सेंटर्स चलते हैं जहां आग से सुरक्षा के नाम पर कुछ भी नहीं है. गलियां बेहद संकरी हैं. यहां कभी किसी कारण से एक चिंगारी भी भड़की तो बड़ा हादसा होने का खतरा है. यह जानते हुए भी कोई ठोस कदम नहीं उठा रहा है. जाहिर है कि जब तक इस इलाके से कोई डरावनी खबर नहीं आएगी, तब तक किसी की नींद नहीं खुलने वाली है.

कुछ इलाकों की गलियों में रिक्शा तक नहीं जा सकता 

मार्केट्स के अलावा कई रेसीडेंसियल कॉलोनियां का हाल भी काफी बुरा है, ऐसी तंग गलियां हैं जहां आदमी ठीक से पैदल नहीं चल पाता है वहां फायर ब्रिगेड कैसे पहुंचेगी? गलियां सिकुड़ गई हैं तो कहीं आसमान में लटकते तार की चुनौती है. दिल्ली के लक्ष्मी नगर, दिल्ली-6, लक्ष्मी नगर, बवाना क्षेत्र और जहांगीरपुरी की झुग्गियां समेत कई ऐसे इलाके हैं जहां गाड़ियों का पहुंचना दूर की कौड़ी है.

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अवैध कब्जा, निर्माण और घरों में फैक्टरी

रिहायशी क्षेत्र में अवैध फैक्ट्रियां भी धड़ल्ले से चल रही हैं. वहीं कॉलोनी और बाजार की संकरी गलियों में अवैध निर्माण जोरों पर हुआ है, जिसके चलते दमकल वाहनों को यहां पहुंचने में दिक्कत होती है. इस समस्या पर भी ध्यान देना जरूरी है. कई बार जब कहीं रिहायशी इलाके में आग लगती है तो ऐसे मामले सामने आते हैं कि घरों के अंदर फैक्टरी चल रही थी. फैक्टरी में कई लोग काम कर रहे थे.

2016 से 2020 के बीच आग से देशभर में रोज औसतन 35 लोगों की मौत हुई है-रिपोर्ट

दमकल विभाग के डायरेक्टर अतुल गर्ग ने एक रिपोर्ट में कहा है कि हौज खास विलेज, खान मार्केट, सरोजनी नगर मार्केट, डिफेंस कॉलोनी समेत तमाम मार्केट्स के पास फायर एनओसी नहीं है. यही नहीं, इन मार्केट्स में दमकल की गाड़ियों के पहुंचने के लिए भी तय मानकों के मुताबिक रास्‍ते नहीं हैं. इस वजह से आग लगने की छोटी घटनाएं बड़े हादसे का रूप ले सकती हैं.

दिल्ली में एक तरफ एमसीडी अवैध निर्माण, कब्जा हटाने के लिए बुलडोजर चलवाती है, लेकिन दूसरी ओर एक हकीकत यह भी है कि लगभग पूरी दिल्ली के हर इलाके में अवैध कब्जे देखने को मिल जाएंगे और व‌र्षों से न तो एमसीडी और न ही पुलिस, किसी ने इसकी सुध ही नहीं ली है.

अहम सरकारी इमारतों के पास भी नहीं था एनओसी

हॉस्पिटल, रेस्टोरेंट या रिहायशी इलाकों के अलावा सरकारी इमारतों के पास भी फायर सेफ्टी के एनओसी नहीं मिले. दिल्ली फायर सर्विस ने 2019 में नॉर्थ ब्लॉक और साउथ ब्लॉक समेत कुल 24 सरकारी इमारतों को फायर सेफ्टी के मामले में खतरनाक बताया था केन्द्र सरकार से इन इमारतों में फायर सेफ्टी के जरुरी इंतजाम करने के लिए कहा था.

2019 की एक रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली फायर सर्विस की वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी के अनुसारी कई सरकारी इमारतों के पास एनओसी नहीं था जिसमें शास्त्री भवन, इंद्रप्रस्थ भवन, जवाहरलाल नेहरु स्टेडियम, सीजीओ कॉम्प्लेक्स जैसी अहम इमारतों के नाम शामिल थे.

दिल्ली फायर सर्विस ने जिन सरकारी इमारतों को खतरनाक बताया था, उनमें नीति आयोग, निर्वाचन सदन, शास्त्री भवन, संचार भवन, उद्योग भवन, निर्माण भवन और कृषि भवन जैसी महत्वपूर्ण और संवेदनशील इमारतें शामिल थीं. दिल्ली फायर सर्विस ने इन इमारतों का रख-रखाव करने वाले सेंट्रल पब्लिक वर्क्स डिपार्टमेंट (CPWD) को भी इन इमारतों की सूची भेजकर समस्या के बारे में जानकारी दी थी.

2016 से 2020 के बीच आग से देशभर में रोज औसतन 35 लोगों की मौत हुई है-रिपोर्ट

इनमें से कई इमारतों के फायर सेफ्टी सर्टिफिकेट जनवरी 2018 में एक्सपायर हो गए थे लेकिन उसके बाद कई महीनों तक इन्हें रीन्यू नहीं करवाया गया था. कुछ इमारत के बारे में 2011 और 2017 में आगाह किया गया था लेकिन 2019 तक इस पर सीपीडब्लूडी की तरफ से कोई जवाब नहीं दिया गया था.

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फायर सेफ्टी विभाग में पद हैं खाली

दिल्ली अग्निशमन सेवा (डीएफएस) कर्मचारियों की कमी से जूझ रहा है. 2019 में दायर की गई एक आरटीआई के जवाब में पता चला था कि विभाग में 32 फीसदी पद खाली हैं. RTI के जरिए जुटाए गए आंकड़ों के अनुसार, डीएफएस में फायरमैन के लिए कुल पद 2,367 थे, जिसमें से 1,598 पदों पर नियुक्ति की गई, जबकि 769 पद खाली रह गए. 1598 फायरमैन में से 500 नई नियुक्तियां थी. आरटीआई जवाब के मुताबिक, अग्निशमन विभाग (फायर फाइटिंग सेक्शन) के कुल 3,127 पदों में से 913 पद रिक्त हैं. मुख्य अग्निशमन अधिकारी के पांच स्वीकृत पदों में से तीन पद रिक्त हैं.

2016 से 2020 के बीच आग से देशभर में रोज औसतन 35 लोगों की मौत हुई है-रिपोर्ट

2019 की एक रिपोर्ट के मुताबिक फायर अधिकारियों की 3195 पद स्वीकृत थे, लेकिन उनमें से 1495 पद खाली थे. वहीं 90 स्टेशन में से 59 स्टेशन बिना स्टेशन ऑफिसर के संचालित थे. वरिष्ठ अधिकारियों के लिए 44 पद स्वीकृत थे लेकिन इनमें से 10 रिक्त थे.

2019 में आरटीआई से प्राप्त जानकारी के अनुसार संचार विभाग में भी स्थिति अच्छी नहीं है. रेडियो टेलीफोन आपरेटरों के 100 स्वीकृत पदों में से कुल 65 पद रिक्त हैं. संचार अधिकारी के दो पद और वायरलेस अधिकारी के एक पद भी रिक्त पड़े हैं.

2018 में अग्निशमन विभाग में अधिकारियों और कर्मचारियों की बड़े पैमाने पर कमी को दूर करने की मांग पर हाईकोर्ट ने आम आदमी पार्टी (AAP) सरकार से जवाब मांगा था.

पिछले पांच साल के तीन बड़े अग्निकांड 77 मौतें, लेकिन सबक जीरो (0)

2016 से 2020 के बीच आग से देशभर में रोज औसतन 35 लोगों की मौत हुई है-रिपोर्ट

मुंडका अग्निकांड से पहले दिल्ली में पिछले पांच साल के तीन बड़े अग्निकांड की बात करें तो उसमें अनाज मंडी सदर बाजार की घटना (8 दिसंबर 2019), होटल अर्पित पैलेस करोल बाग अग्निकांड (11-12 फरवरी 2019) और बावना औद्योगिक क्षेत्र की घटना (20 जनवरी 2018) अहम हैं. इनमें क्रमश: 43,17 और 17 लोगों की मौत हो गई थी. लेकिन हाल ही में मुंडका में हुई भीषण घटना और उसकी वजहों को देखते हुए ऐसा लगता है कि जैसे किसी ने कोई सबक नहीं लिया.

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2016 से 2020 के बीच आग्नि हादसों से रोजाना 35 मौतें

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो NCRB द्वारा एक्सीडेंटल डेथ्स एंड सुसाइड्स इन इंडिया (ADSI) की एक रिपोर्ट के अनुसार 2016 से 2020 के बीच पांच वर्षों में आग से संबंधित दुर्घटनाओं से देशभर में रोजाना औसतन 35 लोगों की मौत हुई है. हालांकि एक तथ्य यह भी है कि इस अवधि के दौरान आग दुर्घटनाओं की संख्या में 44 फीसदी की कमी आई.

2016 से 2020 के बीच आग से देशभर में रोज औसतन 35 लोगों की मौत हुई है-रिपोर्ट
देशभर में पिछले पांच वर्ष (2016-2020) में सबसे ज्यादा आकस्मिक आग की घटनाओं वाले राज्याें की बात करें तो इस सूची में महाराष्ट्र (9,344 ) सबसे ऊपर है. इसके बाद मध्य प्रदेश (9,065) है.

पिछले 5 सालों में देशभर में आग की घटनाएं, मृतकों और घायलों की संख्या इस प्रकार रही है :-

2016 से 2020 के बीच आग से देशभर में रोज औसतन 35 लोगों की मौत हुई है-रिपोर्ट
  • 2016 में 16,695 घटनाएं 16,900 मौतें 998 घायल

  • 2017 में 13,397 घटनाएं 13,159 मौतें 348 घायल

  • 2018 में 13,099 घटनाएं 12,748 मौतें 777 घायल

  • 2019 में 11,037 घटनाएं 10,915 मौतें 441 घायल

  • 2020 में 9,329 घटनाएं 9,110 मौतें 468 घायल

    स्रोत : NCRB की ADSI रिपोर्ट के अनुसार

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