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कोविड महामारी में हेल्थकेयर तक पहुंच का अंतर बढ़ा - Oxfam रिपोर्ट

Oxfam Report: जिन राज्यों में हेल्थ पर जीडीपी खर्च ज्यादा है, वहां कोविड से रिकवरी का रेट ज्यादा रहा.

Published
भारत
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भारत में पब्लिक हेल्थ सिस्टम तक लोगों की पहुंच में पहले ही काफी असामनताएं थीं. कोविड महामारी (Coronavirus Pandemic) के दौरान इसमें और इजाफा हुआ है. ऑक्सफैम इंडिया की नई रिपोर्ट में ये खुलासा हुआ है. रिपोर्ट में ये भी सामने आया है कि जिन राज्यों ने समाज के अलग-अलग वर्गों में स्वास्थ्य को लेकर असमानताएं कम करने की दिशा में काम किया, वहां कोविड के कंफर्म केस कम थे.

ऑक्सफैम इंडिया की नई रिपोर्ट 'असमानता रिपोर्ट 2021: भारत की असमान हेल्थकेयर स्टोरी' में कहा गया है कि मौजूदा असमानताओं को कम करने और स्वास्थ्य पर ज्यादा खर्च वाले राज्यों में कोविड के कंफर्म मामले कम देखने को मिले.
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वहीं, जिन राज्यों में हेल्थ पर जीडीपी खर्च ज्यादा है, वहां कोविड से रिकवरी का रेट ज्यादा रहा. ऑक्सफैम इंडिया में रिसर्चर, अपूर्वा महेंद्र ने द इंडियन एक्सप्रेस से कहा, "हमने जो पाया है उसके दो पहलू हैं. पहला, वो राज्य जो पिछले कुछ सालों से असमानताओं को कम कर रहे हैं, जैसे कि जनरल कैटेगरी और एससी-एसटी आबादी के बीच स्वास्थ्य तक पहुंच में असमानता, वहां कोविड के कम कंफर्म्ड मामले हैं– जैसे तेलंगाना, हिमाचल प्रदेश और राजस्थान. दूसरी ओर, जिन राज्यों में हेल्थ पर जीडीपी खर्च ज्यादा है, जैसे कि असम, बिहार और गोवा, वहां कोविड का रिकवरी रेट ज्यादा है."

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कोविड में सामने आई असमानता

रिपोर्ट में बताया गया है कि उच्च आय वर्ग और हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर तक पहुंच वाले लोगों को निम्न-आय वर्ग के लोगों की तुलना में अस्पतालों और कोविड सेंटरों में कम जाना पड़ा. निम्न आय वर्ग के लोगों को भी उच्च आय वर्ग के लोगों की तुलना में कोविड पॉजिटिव पाए जाने पर पांच गुना ज्यादा भेदभाव का सामना करना पड़ा.

एससी और एसटी समुदायों के 50 प्रतिशत से ज्यादा लोगों को, जनरल कैटेगरी के 18.2 प्रतिशत लोगों की तुलना में गैर-कोविड मेडिकल सुविधाओं तक पहुंचने में मुश्किलों का सामना करना पड़ा.

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वैक्सीनेशन में 'डिजिटल विभाजन'

रिपोर्ट बताती है कि कोविड के खिलाफ वैक्सीनेशन अभियान देश के डिजिटल विभाजन की अनदेखी करता है. महामारी की शुरुआत में, केवल 15 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों के पास इंटरनेट कनेक्शन था, वहीं ग्रामीण भारत में स्मार्टफोन यूजर्स शहरी क्षेत्रों के मुकाबले लगभग आधे थे. रिपोर्ट के मुताबिक, 12 राज्यों में 60 फीसदी से ज्यादा महिलाओं ने कभी इंटरनेट का इस्तेमाल नहीं किया.

ऑक्सफैम इंडिया के सीईओ अमिताभ बेहर ने कहा, "जनरल कैटेगरी के लोग, एससी-एसटी से बेहतर प्रदर्शन करते हैं, मुसलमानों की तुलना में हिंदू बेहतर प्रदर्शन करते हैं, अमीर गरीब से बेहतर प्रदर्शन करते हैं, पुरुष महिलाओं की तुलना में बेहतर हैं, और अलग-अलग हेल्थ इंडिकेटर्स पर शहरी आबादी, ग्रामीण आबादी से बेहतर है."

बेहर ने कहा कि भारत ने हेल्थकेयर में प्रगति की है, लेकिन ये पब्लिक के मुकाबले, प्राइवेट हेल्थकेयर में सपोर्ट ज्यचादा रहा है, जिससे वंचित लोगों को ज्यादा नुकसान हुआ है.
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अस्पतालों में खर्च बढ़ा, गरीबों को लेना पड़ा लोन

रिपोर्ट के मुताबिक, 2004 और 2017 के बीच प्रति अस्पताल में भर्ती का औसत मेडिकल खर्च तीन गुना बढ़ गया है, जिससे गरीब और ग्रामीण परिवारों के लिए बड़ी समस्या पैदा हो गई है. रिपोर्ट में कहा गया है कि अस्पताल में भर्ती होने पर खर्च किए गए हर 6 रुपये में से 1 रुपये उधार के जरिये आते हैं; इसके लिए जहां शहरी परिवार बचत पर निर्भर थे, वहीं ग्रामीण परिवारों को लोन का सहारा लेना पड़ा. इससे हाशिए पर पड़े लोगों को हेल्थकेयर से और दूर कर दिया. 2015-16 में देश में एक तिहाई से भी कम परिवारों को सरकारी बीमा योजना के तहत कवरेज मिली.

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महिलाओं की साक्षरता दर जनरल कैटेगरी में सबसे ज्यादा

जनरल कैटेगरी और एससी-एसटी के बीच का अंतर साक्षरता दर में भी देखने को मिला. जनरल कैटेगरी की महिलाओं की साक्षरता दर, एससी महिलाओं की तुलना में 18.6 प्रतिशत और एसटी महिलाओं की तुलना में 27.9 प्रतिशत ज्यादा है. इसका मतलब है कि जनरल कैटेगरी की महिलाओं को न केवल हेल्थकेयर की बेहतर समझ है, बल्कि उनकी बेहतर पहुंच भी है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि सिखों और ईसाइयों में महिला साक्षरता दर 80 प्रतिशत से ज्यादा है. इसके बाद हिंदुओं में 68.3 प्रतिशत और मुसलमानों में 64.3 प्रतिशत है.

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