सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने मंगलवार, 14 सितंबर को अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के प्रमोशन में आरक्षण (SC/ST Promotion Reservation) मामले में टिप्पणी करते हुए कहा कि एससी/एसटी प्रमोशन में आरक्षण को लेकर राज्यों को तय करना है कि वे इसे कैसे लागू करते हैं.
कोर्ट ने इस संबंध में अपना फैसला फिर से खोलने से इनकार कर दिया. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों के एससी/ एसटी आरक्षण में प्रमोशन देने में आ रही खास दिक्कतों को पहचानकर सामने लाने के लिए फिर से कहा. इससे पहले अपने पिछले आदेश में भी सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों को कहा था कि वह स्पष्ट दिक्कतों के साथ आएं ताकि मामले में आगे बढ़ा जा सके.
क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने ?
जस्टिस नागेश्वर राव, जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस बीआर गवई की तीन जजों की बेंच ने कहा "हम यह स्पष्ट कर रहे हैं कि हम नागराजा जरनैल सिंह के मामले को फिर से खोलने नहीं जा रहे क्योंकि इस मामले में अदालत के निर्धारित कानूनों के तहत ही विचार किया जाना चाहिए." सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि,
"हम ऐसा करने को तैयार नहीं हैं कुछ ऐसे मुद्दे हैं जो नागराज मामले में पहले ही तय हो चुके हैं और हम उन्हें फिर से उठाने नहीं जा रहे. हम बहुत स्पष्ट हैं कि हम मामलों को फिर से खोलने या उस कानून पर बहस करने के लिए किसी तर्क को अनुमति नहीं देंगे. इस मामले को अदालत के पहले से निर्धारित कानूनों के तहत निपटाया जा सकता है.
राज्य कैसे तय करें, कौन से समूह पिछड़े हैं?
सीनियर एडवोकेट इंदिरा जयसिंह ने बेंच के सामने कहा कि ये अभी तक तय नहीं है कि राज्य कैसे तय करेंगे कि कौन से समूह पिछड़े हैं.
उन्होंने कहा कि "यह विवादित तथ्यों का मामला नहीं है कुछ मामलों में राज्यों के हाईकोर्ट ने इस आधार पर मामले गिरा दिए कि पिछड़ापन नहीं दिखाया गया है कोई भी राज्य कैसे तय करेगा कि प्रतिनिधित्व पर्याप्त है. इसके लिए कोई बेंचमार्क होना चाहिए."
हालांकि सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि वो पहले ही पिछड़ेपन को निर्धारित करने की नीति के बारे में अपना आदेश पारित कर चुका है.
सुप्रीम कोर्ट ने काउंसिल को अगले 2 सप्ताह में लिखित में विशेष मामलों से संबंधित नोट्स जमा करवाने निर्देश दिया है. इस मामले की अगली सुनवाई 5 अक्टूबर को होगी.
कोर्ट का पिछला आदेश क्या था?
सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ ने 2018 में एससी और एसटी समुदाय को सरकारी नौकरियों में प्रमोशन के लिए कोटे को हरी झंडी दी थी. कोर्ट ने फैसले में कहा था कि इन समुदायों के बीच पिछड़ेपन को दिखाने के लिए राज्यों को डाटा इकट्ठा करने की जरूरत नहीं है.
हालांकि नागराज मामले में यह निष्कर्ष निकला था कि राज्यों को अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति के आंकड़े जुटाने हैं.
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