उत्तर प्रदेश की सियासत में समाजवादी पार्टी (SP) और बहुजन समाज पार्टी (BSP), नदी के दो किनारों की तरह थे. दोनों एक दूसरे को फूटी आंखों नहीं सुहाते थे. लेकिन बदलते वक्त ने बहुत कुछ बदल दिया. राजनीति के इस नए दौर में अब दोनों पार्टियां एक मंच पर हैं. या यूं कह लें कि मोदी को हराने की मजबूरी ने, दोनों को एक कर दिया.
लखनऊ में ज्वॉइंट प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान मायावती और अखिलेश ने गठबंधन का ऐलान कर दिया. 38-38 सीटों के फॉर्मूले का भी खुलासा हो गया. मीडिया के चमचमाते कैमरों के सामने दोनों आत्मविश्वास से भरे नजर आए.
चेहरे के हाव-भाव और बॉडी लैंग्वेज से ये जताने की कोशिश कर रहे थे कि न सिर्फ दोनों दल मिले हैं, बल्कि दिलों का भी मिलन हुआ है. दोनों पार्टियों की ओर से ये संदेश देने की कोशिश हो रही थी कि पच्चीस साल पहले रिश्तों पर जमी बर्फ अब पिघल चुकी है. लेकिन क्या वाकई ये सब कुछ इतना आसान है?
मायावती के सामने ये है बड़ी चुनौती
पिछले लोकसभा चुनाव में मोदी की आंधी में यूपी की दोनों ताकतवर पार्टियां तिनके की तरह उड़ गई थीं. समाजवादी पार्टी अपने गढ़ तक सीमित हो गई तो बहुजन समाज पार्टी का खाता तक नहीं खुला.दोनों पार्टियों को अपमान का ऐसा घूंट पीना पड़ा, जिसकी टीस उन्हें सालों तक सालती रहेगी.
यूपी की राजनीति में अस्तित्व को बचाने के लिए दोनों पार्टियों के सामने सिर्फ और सिर्फ गठबंधन ही एक रास्ता बचा था. प्रेस कॉफ्रेंस में मायावती की बातों से साफ लग रहा था कि वो बीजेपी को हराने के लिए एसपी के साथ पुरानी दुश्मनी को भुलाकर साथ खड़ी हैं. लेकिन उन्हें अपने वोटर्स की भी पूरी चिंता है. मायावती ने स्पष्ट कहा कि वो कांग्रेस से गठबंधन इसलिए भी नहीं करना चाह रहीं क्योंकि कांग्रेस का वोट ट्रांसफर नहीं होता.
साल 1996 में कांग्रेस के साथ गठबंधन में इसका नुकसान वह भुगत चुकी हैं. ऐसे में मायावती बड़े दिल के साथ समाजवादी पार्टी के साथ बैठी तो हैं लेकिन उनकी सतर्क निगाहें समाजवादी पार्टी के वोटरों पर बनी रहेंगी.
गेस्टहाउस कांड पर मायावती ने तोड़ी चुप्पी
गठबंधन के पहले ये कहा जा रहा था कि क्या वाकई मायावती गेस्टहाउस कांड को भुलाकर एसपी के साथ जाएंगी ? क्या सत्ता के लालच में मायावती पच्चीस साल पहले मिले अपमान को किनारे कर देंगी ?
मायावती को करीब से जानने वाले लोगों के मुताबिक, ये सब कुछ इतना आसान नहीं था. फिर भी मायवाती ने किया.
प्रेस कॉन्फ्रेंस की शुरुआत मायावती ने1995 के गेस्ट हाउस कांड से की. उन्होंने बताने की कोशिश की यह गठबंधन, राष्ट्रहित में गेस्ट हाउस कांड से कहीं बड़ा है. आशय स्पष्ट था कि जिस गेस्ट हाउस कांड को बीएसपी के कार्यकर्ता भी नहीं भूले. उसे वह कैसे भूल सकती हैं?
विरोधियों को जब भी बीएसपी के जख्मों को हरा करना होता है, तो वे गेस्ट हाउस कांड का जिक्र छेड़ देते हैं. मायावती यह बताना चाह रही थीं कि वो भी गेस्ट हाउस कांड को भूली नहीं है लेकिन उनके लिए पहली प्राथमिकता गठबंधन है.
अखिलेश के कंधों पर बड़ी जिम्मेदारी
गठबंधन की पहल चूंकि एसपी सुप्रीमो अखिलेश यादव की ओर हुई, लिहाजा इसे बचाने की बड़ी जिम्मेदारी भी उनके कंधों पर है. गठबंधन के लिए अखिलेश की बेकरारी आप यूं समझे कि, वो जूनियर पार्टनर बनने को भी तैयार थे. कई बार उन्होंने भरे मंच से कहा कि अगर जरुरत पड़ी तो वो दो कदम पीछे भी हट जाएंगे. हालांकि अखिलेश मायावती के तुनकमिजाजी को समझते हैं.
मायावती कब किस बात पर भड़क जाएं, ये कोई नहीं जानता? लिहाजा, गठबंधन की डोर को संभालकर चलना इतना आसान भी नहीं होगा. गठबंधन की कमजोर कड़ियों को समझते हुए प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान अखिलेश ने कहीं न कहीं ये जताने की कई बार कोशिश की कि वो बहन जी का अपमान बर्दाशत नहीं कर सकते. उन्होंने साफ तौर पर कहा कि मायावती का अपमान अखिलेश का अपमान होगा.
बीएसपी के कार्यकर्ता आमतौर पर शांत नजर आते हैं तो वहीं समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं में उत्साह ज्यादा होता है. वो कब क्या बोल देंगे इसकी कोई सीमा नहीं होती. लिहाजा, इन्हें संयमित रखना सबसे जरुरी है. जिस पर अखिलेश ने ठीक तरीके से फोकस किया.
कांग्रेस को किया किनारे तो RLD को दिखाया ठेंगा
बीएसपी सुप्रीमो ने कांग्रेस को अपनी पार्टी के लिए हानिकारक बताया. कहा कांग्रेस ने इतने सालों तक शासन किया पर जनता से जुड़े हर मुद्दों पर वो नाकाम साबित हुई. कहाकि कांग्रेस और बीजेपी दोनों की नीतियां ही जनविरोधी और देश विरोधी है. ऐसे में एसपी और बीएसपी को कांग्रसे को साथ लेने में कोई खास फायदा होता नहीं दिख रहा है. बावजूद इसके उन्होंने अमेठी और रायबरेली की सीट कांगेस के लिए छोड़ दी है.
मायावती और अखिलेश ने 80 में से 78 सीटों का हिसाब तो गिनाया लेकिन दो सीटों पर कुछ नहीं बोले. माना जा रहा है कि ये दो सीटें आरएलडी के लिए छोड़ी गईं हैं. लेकिन आरएलडी जाट लैंड की दस सीटों की मांग कर रही है. उनका दावा है कि वो जाट वोट बैंक के जरिए इन सीटों पर बड़ा उलटफेर कर सकते हैं.
इधर गठबंधन की चाहत है कि भले ही आरएलडी को दो सीट ही दी जाएं, लेकिन हाल ही में हुए कैराना लोकसभा उपचुनाव की तर्ज पर एसपी के सिंबल पर आरएलडी के प्रत्याशी चुनाव लड़ें. यही नहीं मायावती ने शिवपाल की पार्टी को बीजेपी की ‘बी’ टीम बताया. उन्होंने आरोप लगाया कि बीजेपी चाहती है कि वोटों का बंटवारा हो, जिससे कि उन्हें फायदा हो. इसके लिए बीजेपी पानी की तरह पैसा बहा रही है.
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