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संडे व्यू: क्या भारत में संभव है मुस्लिम PM,वंशवादी छाया से कांग्रेस मुक्त होगा?

पढ़ें आज पी चिदंबरम, करन थापर, तवलीन सिंह, आदिति फडणीस के विचारों का सार.

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भारत
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पी चिदंबरम ने इंडियन एक्सप्रेस में लिखा है कि वित्त मंत्रालय ने हर महीने की आर्थिक समीक्षा के बजाय छह युवा और उत्साही अर्थशास्त्रियों के एक समूह से निबंध लिखवाए. इन निबंधों में जानबूझकर बेरोजगारी, कुपोषण, भूख और गरीबी जैसे शब्दों से परहेज किया गया. तैंतीस पेज के इस दस्तावेज में तीन  पेज ग्राफ और चार्ट के साथ बिंदुवार तथ्य हैं. समीक्षा के मुताबिक राजस्व में उछाल है, पूंजीगत व्यय बढ़ रहा है, व्यय की गुणवत्ता में सुधार हुआ है और अगस्त तक वित्तीय स्थिति सेहतमंद थी. चिदंबरम बताते हैं कि

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वित्तीय समीक्षा में यह स्वीकार किया गया है कि सरकारी उधारी से सार्वजनिक ऋण में वृद्धि हो सकती है. कई सूचकांकों के हवाले से निष्कर्ष निकाले गये हैं कि सेवा क्षेत्र, अंतर-राज्यीय व्यापार, पर्यटन, होटल, उद्योग, हवाई यातायात, परिवहन और रियल एस्टेट में उत्साहजनक रुझान हैं.

वो आगे लिखते हैं- यूएनडीपी और ऑक्सपोर्ड एचडीआई ने 17 अक्टूबर 2022 को जारी रिपोर्ट में अनुमान लगाया है कि 2020 में भारत मे 22.8 करोड़ लोग ‘गरीब’ थे. ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत 121 देशों में 107वें नंबर पर है. 16.3 प्रतिशत भारतीय कुपोषित हैं. 19.3 प्रतिशत बच्चे दुर्बल और 35.5 प्रतिशत अविकसित हैं. बेरोजगारी की दर 8 प्रतिशत से ज्यादा है. यूपी में ग्रेड सी की नौकरी के लिए 37 लाख उम्मीदवार परीक्षा दे रहे हैं. आश्चर्य की बात यह है कि 22 अक्टूबर को सुबह वित्त मंत्रालय चेतावनी देता है कि ‘यह उत्सव और शालीनता का समय नहीं है’ और शाम को आर्थिक समीक्षा में विपरीत विचार पेश किए जाते हैं.

पढ़ें आज पी चिदंबरम, करन थापर, तवलीन सिंह, आदिति फडणीस के विचारों का सार.

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इंग्लैंड और कोरिया में किस राह पर चले भारत?

टीएन नाइनन ने बिजनेस स्टैंडर्ड में लिखा है कि ब्रिटेन की पूर्व प्रधानमंत्री लिज ट्रस ने ‘कम कर, उच्च वृद्धि’ की संरचना का नाम खराब किया. इनकम टैक्स की दर और आर्थिक वृद्धि के बीच वास्तव में कोई स्पष्ट संबंध नहीं होता. विकसित अर्थव्यवस्थाओं में कर की दर उभरती पूर्वी एशियाई अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में अधिक है. पूर्वी एशिया की सफल मध्यम आय वाली अर्थव्यवस्थाओं में सरकार का आकार छोटा और बजट कम होता है। इन देशों में जीडीपी की तुलना में घाटे का स्तर भी अन्य देशों की तुलना में कम है. अत्यधिक सफल दक्षिण कोरिया में सरकारी व्यय जीडीपी की एक चौधाई के बराबर और घाटा जीडीपी के महज 2.8 फीसदी के बराबर है.

तुलनात्मक रूप से भारत सरकार का आकार काफी बड़ा है. करीब जीडीपी की एक तिहाई के बराबर. केंद्र और राज्य का समेकित घाटा करीब 10 फीसदी है. कोरिया का कर्ज उसकी जीडीपी के आधे से कम है जबकि भारत में यह 85 प्रतिशत है. नाइनन लिखते हैं कि वास्तविक फर्क उच्च कर की दर से नहीं बल्कि सरकार के आकार से पड़ता है. ब्रिटेन या अन्य विकसित देश कम कल्याणकारी बजट के लिए क्या मानेगा? कम कर दरों और छोटी सरकार के बदले स्वास्थ्य सेवाओं के छोटे आकार को स्वीकार करेगा? नाइनन लिखते हैं कि

भारत की सरकार का आकार जीडीपी की तुलना में काफी बड़ा है. फिर भी हमारे यहां सरकारी सेवाओं की हालत बहुत खराब है और रक्षा क्षेत्र पर हम जरूरत से कम व्यय कर रहे हैं. बांग्लादेश में कर दर कम है और बजट का आकार भारत से आधा यानी जीडीपी के 15 फीसदी के बराबर है. यहां सरकारी ऋण जीडीपी के 34 फीसदी के बराबर है. भारत को सावधान रहने की जरूरत है कि कहीं वह इंग्लैंड की राह पर न बढ़ चले.
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क्या भारत में संभव है मुस्लिम पीएम?

करन थापर ने लिखा है कि दिवाली के दिन 42 वर्षीय हिन्दू ऋषि सुनक इंग्लैंड में कंजरवेटिव पार्टी की सरकार के प्रधानमंत्री बन गये. 200 साल के इतिहास में सबसे कम उम्र के पीएम. सवाल उठता है कि क्या भारत ब्रिटेन से सबक लेगा? इंग्लैंड में 6.8 फीसदी आबादी एशियाई मूल के लोगों की है. 2.3 फीसदी भारतीय मूल के हैं. फिर भी कंजरवेटिव्स ने भारतीय मूल के प्रवासी ऋषि सुनक को देश का 57वां राष्ट्रपति चुना. हमारे देश में यह हर्ष का विषय भी है और आश्चर्य का भी.

भारत में 14.3 फीसदी आबादी मुसलमानों की है. लोकसभा में इस हिसाब से 78 के बजाए केवल 27 मुस्लिम सांसद हैं. भारत के 28 राज्यों में किसी एक में भी मुसलमान मुख्यमंत्री नहीं है. 15 राज्यों में एक भी मुस्लिम मंत्री नहीं हैं, जबकि 10 राज्यो में एक-एक मुस्लिम मंत्री हैं और वह भी अल्पसंख्यक मामलों का मंत्रालय देखने के लिए.

बीजेपी के पास संसद में एक भी मुस्लिम सांसद नहीं है. 20 फीसदी मुस्लिम आबादी वाले यूपी में एक भी मुसलमान विधायक नहीं है बीजेपी के पास. गुजरात मे 1998 के बाद लोकसभा या विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने कभी मुस्लिम उम्मीदवार नहीं दिया जबकि वहां 9 फीसदी मुसलमान हैं.
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करन थापर लिखते हैं कि आकार पटेल की किताब ‘आवर हिन्दू राष्ट्र’ खुलासा करती है कि केंद्रीय और प्रांतीय सरकारी कर्मचारियो में 4.9 फीसदी, अर्धसैनिक बलों में 4.6 फीसदी, भारतीय प्रशासनिक सेवाओं, भारतीय विदेश और पुलिस सेवाओं में 3.2 फीसदी और सेना में संभवत: 1 फीसदी मुसलमान हैं.

भारत में 20 करोड़ से ज्यादा मुसलमान रहते हैं. हम उन्हें दीमक, बाबर की औलाद, अब्बा जान कहते हैं और लगातार उनके लिए पाकिस्तान चले जाने की बात दोहराते हैं. ऐसे में ऋषि सुनक के पीएम बनने के बाद सवाल उठता है कि क्या भारत में मुस्लिम पीएम संभव है?

वंशवादी छाया से कांग्रेस को मुक्त होना ही होगा

इंडियन एक्सप्रेस में तवलीन सिंह लिखती हैं कि दो दशक बाद कांग्रेस को ऐसे अध्यक्ष मिले हैं जिनके नाम के आगे ‘गांधी’ नहीं है. लेखिका याद दिलाती हैं कि कांग्रेस पार्टी ने उन पर तोहमत लगायी थी कि उन्होंने जानबूझकर तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर ऑफिशियल सेक्रेट एक्ट 1923 के उल्लंघन का आरोप लगाया था. जबकि, वह केवल इतना कहना चाह रही थीं कि सोनिया गांधी को सरकारी फाइलो तक पहुंच बनाने दी गयी जबकि उन्होंने गोपनीयता की कोई शपथ नहीं ली थी. वह सरकारी नीतियां बनाने में शामिल थीं.

तवलीन सिंह लिखती हैं कि डॉ मनमोहन सिंह सरकार के कई मंत्रियों ने स्वीकार किया है कि मनरेगा और फूड सिक्योरिटी एक्ट का श्रेय सोनिया गांधी को है. खुद मनमोहन सिंह बोल चुके थे कि जैसे ही राहुल गांधी तैयार हो जाएंगे वे प्रधानमंत्री का पद छोड़ देंगे. स्पष्ट है कि वे विरासत संभाल रहे थे. लेखिका जोर देकर लिखती हैं कि अगर डॉ मनमोहन सिंह को काम करने दिया जाता तो 2014 का आम चुनाव नरेंद्र मोदी नहीं जीतते.

बगैर जिम्मेदारी वाले राजनेताओं को वह मान्यता नहीं देतीं. उनका मानना है कि 2004 में आम चुनाव जीतने के बाद सोनिया गांधी को अंदर की आवाज सुननी चाहिए थी. उन्होंने अस्वस्थ परंपरा की शुरुआत की. नरेंद्र मोदी की तारीफ होती है क्योंकि वे देश की जनता से बात करते हैं बीजेपी अध्यक्ष से नहीं. मल्लिकार्जुन खड़गे ने अपने पहले भाषण में ही यह साफ कर दिया है कि सोनिया गांधी उनकी पथ प्रदर्शक बनीं रहेंगी. लेखिका का मानना है कि जब तक वंशवादी अधिकार कांग्रेस नहीं छोड़ती और मोदी को सत्ता हड़पने वाले के तौर पर देखना बंद नहीं करती, कांग्रेस खुद को हासिल नहीं कर पाएगी.
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कर्नाटक में बीजेपी की मुश्किलें बढ़ीं

आदिति फडणीस ने बिजनेस स्टैंडर्ड में लिखा है कि कर्नाटक ईकाई की कार्यकारिणी की बैठक में अमित शाह के नहीं पहुंचने से स्थानीय नेताओं का उत्साह ठंडा दिखा. यहां तक कि दोपहर के भोजन के बाद नेता लौट गये. अमित शाह की जगह कर्नाटक पहुंचे अरुण सिंह ने बोम्मई को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया. बैठक में स्पष्ट रूप से चेतावनी दे दी गयी कि बचे हुए पांच महीने में मंत्री और विधायक मेहनत करें तभी अगले पांच साल के लिए सत्ता मिल सकती है. आदिति फडणीस ने लिखा है-

पूर्व केंद्रीय मंत्री बसनगौड़ा यतनाल खुले तौर पर कह रहे हैं कि अगर बोम्मई ने येदियुरप्पा के साथ राज्य का दौरा किया तो बीजेपी को मात खानी पड़ेगी. येदियुरप्पा समर्थक मानते हैं कि यतनाल जैसे नेता दिल्ली में मौजूद शीर्ष नेतृत्व के मौन समर्थन के बिना ऐसे बयान नहीं दे सकते.

कर्नाटक बीजेपी अध्यक्ष नलिन कुमार कतील कार्यकाल खत्म होने के बाद भी अपने पद पर बने हुए हैं. मुख्यमंत्री बोम्मई को केंद्रीय संसदीय कार्यमंत्री प्रह्लाद जोशी से मजबूत समर्थन मिल रहा है. बोम्मई के नेतृत्व में बीजेपी की बड़ी चिंता है कि ‘भारत जोड़ो यात्रा’ से कांग्रेस की पहुंच का दायरा बढ़ रहा है. मल्लिकार्जुन खड़गे के कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद कर्नाटक की 224 सीटों में से एससी और एसटी सीटों पर अब चुनौती बढ़ गयी है. ऐसे में बीजेपी के भीतर गुटीय घमासान को रोकना पार्टी के लिए प्राथमिकता बन गयी है.

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