सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने शुक्रवार 10 फरवरी को 2002 के गुजरात दंगों पर बनी डॉक्यूमेंट्री इंडिया: द मोदी क्वेश्चन के प्रसारण की वजह से बीबीसी (BBC) पर प्रतिबंध लगाने की मांग वाली हिंदू सेना की जनहित याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया. न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि अदालत सेंसरशिप नहीं लगा सकती है, यह याचिका गलत है.
पीठ में शामिल न्यायमूर्ति एम.एम. सुंदरेश ने याचिकाकर्ता के वकील वरिष्ठ वकील पिंकी आनंद से पूछा, "एक डॉक्यूमेंट्री देश को कैसे प्रभावित कर सकती है.. आप चाहते हैं कि हम पूरी तरह से सेंसरशिप लगा दें."
वकील ने पीठ से याचिकाकर्ता को सुनने का आग्रह किया. पीठ ने कहा, यह (याचिका) क्या है? वकील ने इस बात पर जोर दिया कि मामले की सुनवाई की जानी चाहिए
अदालत ने याचिका को पत्रकार एन. राम, वकील प्रशांत भूषण और तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा और वकील मनोहर लाल शर्मा की एक अन्य लंबित संयुक्त याचिका के साथ टैग करने के आनंद के अनुरोध को भी अस्वीकार कर दिया.
इस महीने की शुरुआत में सुप्रीम कोर्ट ने एन.राम और अन्य की दलीलों पर कार्रवाई करते हुए केंद्र से पीएम मोदी पर बीबीसी डॉक्यूमेंट्री को ब्लॉक करने के अपने फैसले से संबंधित मूल रिकॉर्ड पेश करने को कहा था.
याचिका खारिज करते हुए शीर्ष अदालत ने कहा, हमें और समय बर्बाद नहीं करना चाहिए, रिट पूरी तरह गलत है. इसमें कोई योग्यता नहीं है.
पिंकी आनंद ने पीठ से उस पृष्ठभूमि की जांच करने का आग्रह किया, जिसमें भारत आर्थिक शक्ति के रूप में उभरकर शक्तिशाली हुआ है और भारतीय मूल का व्यक्ति ब्रिटेन का प्रधानमंत्री बना है.
केंद्र ने लगाया डॉक्यूमेंट्री पर बैन
शीर्ष अदालत ने पूछा कि वह बीबीसी पर प्रतिबंध लगाने की अपनी याचिका के समर्थन में इन सब पर बहस कैसे कर सकती हैं.
केंद्र ने सोशल मीडिया और ऑनलाइन चैनलों पर डॉक्यूमेंट्री पर प्रतिबंध लगा दिया है, हालांकि इसे देश भर के विभिन्न कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में प्रदर्शित किया गया है.
हिंदू सेना के अध्यक्ष विष्णु गुप्ता और अन्य द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि याचिकाकर्ता ने नेटवर्क पर प्रतिबंध लगाने के लिए जनवरी में केंद्र को एक अभ्यावेदन दिया था, लेकिन आज तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है.
याचिका में कहा गया है कि बीबीसी उन लोगों का मुखपत्र है, जिन्होंने भारत की छवि खराब करने के लिए उसे निशाना बनाया.
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