महाराष्ट्र में सियासी संकट के बीच सुप्रीम कोर्ट ने शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस की याचिका पर 26 नवंबर की सुबह 10:30 बजे तक आदेश सुरक्षित रख लिया है. बता दें कि जस्टिस एनवी रमन, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस संजीव खन्ना की बेंच ने 25 नंवबर को इस याचिका पर लगातार दूसरे दिन सुनवाई की.
सुनवाई के दौरान केंद्र की तरफ से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने महाराष्ट्र में सरकार बनाने के लिए राज्यपाल की तरफ से बीजेपी को न्योते वाली चिट्ठी सुप्रीम कोर्ट को सौंपी.
शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस ने सुप्रीम कोर्ट से महाराष्ट्र के राज्यपाल द्वारा देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाए जाने का फैसला रद्द करने की मांग की है. इन पार्टियों ने अपनी याचिका में ‘खरीद-फरोख्त रोकने के लिए’ जल्दी से फ्लोर टेस्ट कराए जाने की मांग भी की है.
जस्टिस संजीव खन्ना ने ऐसे ही मामलों में सुप्रीम कोर्ट के पुराने आदेशों का हवाला देते हुए कहा कि ज्यादातर मामलों में 24 घंटों में फ्लोर टेस्ट कराया गया था, कुछ मामलों में यह 48 घंटों में हुआ था.
25 नवंबर को तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट से कहा
- महाराष्ट्र के राज्यपाल को जब ये लगा था कि कोई भी पार्टी सरकार बनाने की स्थिति में नहीं है, उन्होंने तभी राष्ट्रपति शासन की सिफारिश की थी
- राज्यपाल को 22 नवंबर को अजित पवार से एनसीपी के 54 विधायकों के समर्थन वाली चिट्ठी मिली थी. इस चिट्ठी में लिखा था कि वह (अजित पवार) एनसीपी विधायक दल के नेता हैं
- 22 नवंबर को राज्यपाल को दी गई अजित पवार की चिट्ठी में लिखा था कि वह राज्य में स्थायी सरकार चाहते हैं और राष्ट्रपति शासन अनिश्चित काल तक जारी नहीं रह सकता. इसके अलावा चिट्ठी में लिखा गया था कि बीजेपी ने पहले भी सरकार बनाने के लिए अजित पवार से साथ आने को कहा था, मगर उस वक्त उन्होंने एनसीपी विधायकों के अपर्याप्त समर्थन की वजह से इनकार कर दिया था
- मौजूदा स्थिति में राज्यपाल ने सदन में बहुमत वाले गठबंधन को सरकार बनाने के लिए बुलाया था. देवेंद्र फडणवीस ने अजित पवार की चिट्ठी के बाद 11 निर्दलीयों और अन्य विधायकों के समर्थन पत्र के साथ दावा पेश किया था
- राज्यपाल ने अपने विवेक के आधार पर सबसे बड़ी पार्टी के नेता को न्योता भेजा था, देवेंद्र फडणवीस के पास 170 विधायकों का समर्थन है
शिवसेना की तरफ से पेश हुए कपिल सिब्बल ने कहा कि शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस के पास 154 विधायकों के समर्थन वाला हलफनामा है, अगर बीजेपी के पास संख्याबल है तो उसे 24 घंटो में बहुमत साबित करने के लिए कहा जाना चाहिए.
एनसीपी-कांग्रेस की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा
- अगर दोनों पक्ष फ्लोर टेस्ट के लिए तैयार हैं तो इसे टाला क्यों जा रहा है? क्या यहां एनसीपी के एक भी विधायक ने कहा है कि हम बीजेपी में शामिल होंगे
- बीजेपी गठबंधन ने कोर्ट को 54 एनसीपी विधायकों के जो हस्ताक्षर दिखाए हैं, वो अजित पवार को पार्टी के विधायक दल का नेता चुनने के लिए किए गए थे. इन विधायकों ने सरकार बनाने के लिए बीजेपी के साथ गठबंधन के लिए हस्ताक्षर नहीं किए थे. राज्यपाल इसे अनदेखा कैसे कर सकते हैं
सिंघवी ने रिकॉर्ड पर 154 विधायकों के समर्थन वाला हलफनामा भी रखा. मगर सुप्रीम कोर्ट ने इसे स्वीकार करने से इनकार कर दिया. उसने कहा कि वो याचिका के दायरे को बढ़ाना नहीं चाहता. इसके बाद सिंघवी ने हलफनामा वापस ले लिया.
24 नवंबर को कोर्ट में क्या-क्या हुआ
सुप्रीम कोर्ट ने 24 नंवबर को शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस की याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र, महाराष्ट्र सरकार, देवेंद्र फडणवीस और अजित पवार को नोटिस जारी किए. इसके अलावा कोर्ट ने कहा, ''हम सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से अनुरोध करते हैं कि वह कल (25 नवंबर) सुबह 10:30 बजे तक बीजेपी को सरकार बनाने के लिए न्योते वाले लेटर से लेकर विधायकों के समर्थन वाले लेटर तक संबंधित दस्तावेज सौंपें.''
इससे पहले शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस की याचिका के लिए दलील देते हुए कपिल सिब्बल ने कहा
- 23 नवंबर की सुबह राष्ट्रपति शासन हटा दिया गया. इसके बाद सुबह 8 बजे दो शख्स सीएम पद और डिप्टी सीएम पद की शपथ लेते हैं. कौन से दस्तावेज दिए गए थे?
- जिस तरह से देवेंद्र फडणवीस और अजित पवार को शपथ दिलाई गई, राज्यपाल सीधे दिल्ली के निर्देशों पर काम कर रहे थे.
- चुनाव से पहले के गठबंधन को पहले मौका मिलना चाहिए. हालांकि चुनाव से पहले वाला गठबंधन टूट चुका है. अब हम चुनाव के बाद वाले गठबंधन की बात कर रहे हैं
- अगर फडणवीस के पास संख्याबल है तो वह इसे फ्लोर टेस्ट में साबित करें
कांग्रेस-NCP की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा
- जब (22 नवंबर को) शाम 7 बजे इस बात का ऐलान हो गया था कि हम सरकार बनाने के लिए दावा कर रहे हैं और उद्धव ठाकरे इसकी अगुवाई करेंगे, तो क्या राज्यपाल इंतजार नहीं कर सकते थे
- यह लोकतंत्र की हत्या है
- कल (23 नवंबर) एनसीपी ने फैसला किया कि अजित पवार उसके विधायक दल के नेता नहीं हैं. अगर उनकी अपनी पार्टी से उनको समर्थन नहीं मिल रहा तो वह डिप्टी सीएम कैसे बने रह सकते हैं
- आज (24 नवंबर) या कल (25 नवंबर) फ्लोर टेस्ट कराया जाना चाहिए
- यह कैसे संभव हो सकता है कि कल (23 नवंबर) जिसने बहुमत का दावा करते हुए शपथ ली हो, वो आज फ्लोर टेस्ट से संकोच कर रहा है
वहीं महाराष्ट्र बीजेपी विधायकों की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने कहा
- मुझे नहीं पता कि यह सुनवाई रविवार को क्यों हो रही है, रविवार को सुनवाई नहीं होनी चाहिए
- मेरे मुताबिक (शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस की याचिका का) यह मामला लिस्टेड ही नहीं होना चाहिए था
- राज्यपाल के फैसले में कुछ भी गैरकानूनी नहीं था, फ्लोर टेस्ट की तारीख को लेकर कोर्ट को आदेश नहीं देना चाहिए
- क्या सुप्रीम कोर्ट राज्यपाल को एडवांस फ्लोर टेस्ट का आदेश दे सकता है? उनके (शिवसेना-कांग्रेस-एनसीपी) दावों का समर्थन करने वाला कोई भी दस्तावेज नहीं है
बता दें कि 23 नवंबर की सुबह महाराष्ट्र की राजनीति में बड़ा उलटफेर देखने को मिला, जब बीजेपी नेता देवेंद्र फडणवीस ने सीएम पद और एनसीपी नेता अजित पवार ने डिप्टी सीएम पद की शपथ ली.
इससे पहले महाराष्ट्र में शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस की सरकार बनना लगभग तय माना जा रहा था. 22 नवंबर की शाम शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस के शीर्ष नेताओं के बीच बैठक हुई थी. बैठक से बाहर निकलते हुए एनसीपी चीफ शरद पवार ने कहा था- ''मुख्यमंत्री के तौर पर उद्धव ठाकरे के नाम पर हम सबके बीच सहमति बनी है.''
वहीं कांग्रेस नेता और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने बैठक के बाद कहा था, ''सभी (तीनों) पार्टियों के नेता मौजूद थे. बातचीत सकारात्मक रही. बातचीत कल भी जारी रहेगी.'' इन बयानों के आने के बाद मीडिया में शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस के बीच सत्ता साझेदारी के फॉर्मूले भी आने लगे थे.
ये भी देखें: महाराष्ट्र में किसके पास है नंबर, BJP-सेना में कौन सच्चा-कौन झूठा?
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)