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"नॉर्मलाइजेशन बर्दाश्त नहीं," प्रयागराज में PCS और RO/ARO अभ्यर्थियों का प्रदर्शन कब तक?

Prayagraj Student Protest: छात्र RO/ARO और PCS प्री परीक्षा को दो दिन और अलग-अलग पालियों में आयोजित करने के फैसले के खिलाफ हैं.

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"हम लोग पिछले 10 साल से तैयारी कर रहे हैं. हमारा साल-दो साल और बचा है. अगर हम लोग नॉर्मलाइजेशन के कारण छट जाते हैं तो हमारा क्या होगा? हमारे घर वालों को हमसे बहुत उम्मीदें हैं. हम चाहते हैं कि जो चल रहा है, सही तरीके से चले."

ये कहना है ज्ञान मिश्रा का, जो UPPSC के नए परीक्षा पैटर्न से नाराज हैं.

उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग (UPPSC) की RO/ARO-2023 और PCS प्रारंभिक परीक्षा-2024 को दो दिन और अलग-अलग पालियों में आयोजित करने के फैसले के खिलाफ प्रयागराज (Prayagraj) में हजारों छात्र चार दिनों से आयोग मुख्यालय के बाहर धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं.

गुरुवार, 14 नंवबर को छात्रों ने बैरिकेडिंग तोड़ दी और आयोग की तरफ बढ़ गए. छात्रों का आरोप है कि पुलिस जबरन उन्हें धरना स्थल से हटाने की कोशिश कर रही थी. मौके पर भारी पुलिस फोर्स तैनात किया गया है.

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सड़क पर क्यों उतरे छात्र?

UPPSC ने 5 नवंबर को घोषणा की थी कि PCS (प्रारंभिक) परीक्षा-2024 प्रदेश की 41 जिलों में 7 और 8 दिसंबर को दो पालियों में सुबह 9:30 से 11:30 बजे और दोपहर 2.30 से शाम 4.30 बजे तक आयोजित की जाएगी.

इसके साथ ही, समीक्षा अधिकारी (RO)/सहायक समीक्षा अधिकारी (ARO) (प्रारंभिक) परीक्षा-2023, 22 और 23 दिसंबर को आयोजित की जाएगी. यह परीक्षा तीन पालियों में- 22 दिसंबर को पहली पाली सुबह 9 बजे से 12 बजे तक, दूसरी पाली दोपहर 2.30 बजे से शाम 5.30 बजे तक और 23 दिसंबर को तीसरी पाली सुबह 9 बजे से 12 बजे तक- प्रदेश के विभिन्न जिलों में आयोजित होगी.

PCS प्री परीक्षा के मामले में आयोग ने यह कदम सरकार द्वारा निर्धारित मानकों के अनुसार परीक्षा केंद्र उपलब्ध न होने के कारण उठाया है. वहीं RO/ARO परीक्षा के मामले में आयोग ने सरकार के एक आदेश का हवाला दिया है, जिसमें कहा गया है कि एक पाली में अधिकतम 5 लाख अभ्यर्थी ही परीक्षा दे सकते हैं.

आयोग ने नॉर्मलाइजेशन फॉर्मूला भी लागू किया है. यह सिस्टम केवल उन मामलों में लागू होता है, जहां परीक्षाएं कई दिनों में आयोजित की जाती हैं. जब एक ही परीक्षा अलग-अलग दिनों में आयोजित की जाती है, तो प्रश्नपत्र भी अलग-अलग होते हैं. ऐसी स्थिति में यह संभावना बनी रहती है कि एक प्रश्नपत्र दूसरे प्रश्नपत्र से अधिक कठिन हो सकता है. इस अंतर को खत्म करने के लिए नॉर्मलाइजेशन की व्यवस्था लागू की जाती है.

छात्र इसी नॉर्मलाइजेशन व्यवस्था का विरोध कर रहे हैं. इसके साथ ही उन्होंने परीक्षा में धांधली की आशंका भी जताई है.

क्या है नॉर्मलाइजेशन सिस्टम?  

नॉर्मलाइजेशन सिस्टम को ऐसे समझ सकते हैं. अगर दो शिफ्ट में परीक्षा होगी तो दो अलग-अलग पेपर सेट करने होंगे. जब अलग-अलग पेपर होंगे तो इसके कठिन और सरल होने की संभावना होगी. ऐसे में कठिन पेपर में किसी को 70 नंबर मिले तो उसे 100 माना जाएगा और सरल पेपर में किसी को 100 नंबर मिले तो उसे 70 नंबर माना जाएगा. इस प्रक्रिया में एवरेज निकाला जाता है.

छात्रों का कहना है कि कोई छात्र ज्यादा नंबर लाकर भी छट सकता है और कोई कम नंबर लाकर भी मेंस परीक्षा के लिए सिलेक्ट हो सकता है.

क्विंट से बातचीत में ज्ञान मिश्रा कहते हैं, "नॉर्मलाइजेशन का फॉर्मूला कैसे लगाया जाएगा, ये सरकार को भी नहीं पता है. उसे खुद भी समझ नहीं आ रहा है. अगर समझ रही है तो बच्चों को बताए कि हम ऐसे फॉर्मूला लगाएंगे. सरकार और आयोग को आगे आकर अपनी बात रखनी चाहिए. हम सुनने के लिए तैयार हैं."

दिल्ली यूनिवर्सिटी में पीएचडी स्कॉलर विश्वविदित प्रताप सिंह बताते हैं कि नॉर्मलाइजेशन व्यवस्था के खिलाफ छात्रों ने इस महीने की चार तारीख को भी विरोध-प्रदर्शन किया था. "तब हमें आश्वासन दिया गया था कि छात्रों के हित में फैसला लिया जाएगा और नॉर्मलाइजेशन व्यवस्था लागू नहीं होगी और एक ही शिफ्ट में परीक्षा भी आयोजित होगी. लेकिन 5 तारीख को नोटिस आता है कि परीक्षा 7-8 दिसंबर को दो शिफ्ट में होगी और नॉर्मलाइजेशन भी होगा."

इसके साथ ही वे कहते हैं कि "नॉर्मलाइजेशन हमें बिल्कुल बर्दाश्त नहीं है."

नॉर्मलाइजेशन से धांधली की आशंका

नॉर्मलाइजेशन व्यवस्था की वजह से धांधली की आशंका जताते हुए शैलेंद्र सिंह कहते हैं, "नॉर्मलाइजेशन व्यवस्था से बैकडोर से धांधली बहुत ज्यादा बढ़ सकती है. वहीं दूसरी तरफ जब तक परीक्षा का रिजल्ट नहीं आ जाता, तब तक हम मेंस की तैयारी भी नहीं कर सकते क्योंकि नॉर्मलाइजेशन की वजह से हमारा सिलेक्शन होगा की नहीं, ये संशय बना रहेगा."

इसके साथ ही वे कहते हैं,

"RTI के जरिए भी हमें कुछ नहीं पता चल पाएगा. अगर हम कटऑफ मार्क्स, मैरिट और नंबर की जानकारी भी मांगे तो आयोग कह सकता है कि नॉर्मलाइजेशन की वजह से नंबर बढ़ा और घटा है. ऐसे में बैकडोर से पैसे वाले अंदर हो जाएंगे. RTI के जरिए भी हमें कोई प्रूफ नहीं मिलेगा."

विवेक गुप्ता कहते हैं कि "इस तरह की व्यवस्था को लागू करके आयोग अपनी जिम्मेदारी से भाग रहा है. इससे सिर्फ छात्रों को नुकसान ही होगा और उनकी समस्या ही बढ़ेगी."

UPPSC परीक्षा में धांधली के आरोप लगते रहे हैं. UPPCS-J 2022 मुख्य परीक्षा में उत्तर पुस्तिकाओं की अदला-बदली का मामला सामने आया था. RTI के जरिए इसका खुलासा हुआ था. आयोग पांच अधिकारी और कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई भी की थी.

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आयोग का क्या कहना है?

छात्रों के विरोध प्रदर्शन के बीच आयोग ने कहा, "चयन प्रक्रिया पूरी तरह से पारदर्शी और छात्र हितों को ध्यान में रखते हुए निर्धारित की गई है. देश के अन्य प्रतिष्ठित आयोगों और संस्थानों द्वारा भी इसी प्रक्रिया का पालन किया जाता है."

इसके साथ ही आयोग ने कहा,

"परीक्षा की शुचिता सुनिश्चित करने और अभ्यर्थियों के आग्रह पर ही दो पालियों में परीक्षा आयोजन का निर्णय लिया गया है."

आयोग ने ये भी कहा कि "कुछ अराजक तत्वों, अवैध कोचिंग संस्थानों, नकल माफिया द्वारा प्रतियोगी छात्रों को भ्रामक जानकारी देकर बरगलाने की कोशिश की जा रही."

हालांकि, ज्ञान मिश्रा कहते हैं, "हम लोग चाहते हैं कि सरकार इस बार नियमों में बदलाव न करे. सरकार नई वेकेंसी लाइए और शुरू में ही नोटिफिकेशन में बता दे कि ऐसे-ऐसे परीक्षा आयोजित होगी. बीच में ये सब न करें. सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा है कि आप बीच में कोई चीज नहीं बदल सकते हैं."

बात दें कि सुप्रीम कोर्ट ने हाल के अपने एक फैसले में कहा है कि सरकारी नौकरी की प्रक्रिया शुरू होने के बाद नियमों में बदलाव नहीं किया जा सकता है. शीर्ष अदालत ने राजस्थान हाईकोर्ट में नियुक्ति मामले में यह फैसला सुनाया था.

"सभी जिलों में एग्जाम सेंटर क्यों नहीं बनाया जा रहा?

विवेक गुप्ता कहते हैं, "नॉर्मलाइजेशन के पीछे कारण बताया जा रहा कि इससे नकल रुकेगा. ये एक बेबुनियाद तर्क है. नकल रोकने के लिए ये एक अपारदर्शी व्यवस्था है, जिससे छात्रों का नुकसान होगा. उत्तर प्रदेश में 75 जिले हैं, सभी जिलों में एग्जाम सेंटर क्यों नहीं बनाया जा रहा है. क्या सरकार के पास इतनी व्यवस्था नहीं है कि हर जिले में सेंटर बनाया जा सके. इनका जो कहना है वो बिल्कुल अतार्किक है."

वहीं विश्वविदित प्रताप सिंह कहते हैं, पिछली बार 53 सेंटर बना था. इस बार 41 सेंटर है. महाकुंभ का बजट 6000 करोड़ है, लेकिन इनके पास प्रश्न पत्र छापने के लिए अपना एक प्रिंटिंग प्रेस तक नहीं है. इससे साफ पता चलता है कि छात्रों का हित और छात्र इनके लिए कोई मायने नहीं रखते हैं."

हालांकि, आयोग का कहना है कि "परीक्षाओं की शुचिता और छात्रों के भविष्य को संरक्षित करने के उद्देश्य से परीक्षाएं केवल उन केन्द्रों पर कराई जा रही है, जहां किसी प्रकार की कोई गड़बड़ियों की कोई संभावना नहीं है."

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पेपर लीक से छात्र परेशान

बता दें कि इस साल फरवरी में आयोजित RO/ARO परीक्षा का पेपर लीक हो गया था, जिसके बाद सरकार ने परीक्षा रद्द कर दी थी. सरकार ने 6 महीने में दोबारा परीक्षा आयोजित करने की बात कही थी.

ज्ञान मिश्रा कहते हैं, "तीन साल तैयारी करने के बाद परीक्षा दो और फिर वो लीक हो जाए तो सोचिए आपके ऊपर क्या बीतेगी? घरवाले भी पूछ रहे हैं कि कुछ होगा या नहीं होगा. कह रहे हैं कि अगर कुछ नहीं होगा तो पढ़ाई छोड़कर कोई और नौकरी-धंधा कर लो या कोई दूसरा काम कर लोग. आधी उम्र बीत गई है, ऐसे कैसे काम चलेगा."

विश्वविदित बताते हैं कि पिछली बार भारी परेशानियों का सामना करते हुए वे RO/ARO की परीक्षा देने के लिए दिल्ली से सुल्तानपुर गए थे. लेकिन पेपर लीक हो गया. इस फिर उन्होंने फॉर्म भरा है.

6-7 साल से तैयारी कर रहे विवेक गुप्ता कहते हैं, "पेपर कैंसिल होने से छात्रों को बहुत परेशानी का सामना करना पड़ता है. हर छात्र की परिस्थिति एक जैसी नहीं होती है. नकल और पेपर आउट होना कोई नई बात नहीं है. लेकिन सरकार को इस व्यवस्था को दुरुस्त करना चाहिए न कि इस तरह की व्यवस्था लाकर छात्रों की परेशानी बढ़ानी चाहिए. हम एक समस्या से निकल रहे हैं और दूसरे में फंस जा रहे हैं."

वहीं शैलेंद्र सिंह कहते हैं, "हमारा हर दो साल में चार महीना आंदोलन में जाता है. पिछली बार RO/ARO का पेपर लीक हो गया. हम लोगों ने करीब 10 दिनों तक विरोध प्रदर्शन किया. हमें समझ में नहीं आता कि हम पढ़ाई करें या प्रदर्शन करें या फिर कोर्ट में लड़ें."

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