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उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के बांदा (Banda) जिले की एक महिला जज ने भारत के चीफ जस्टिस न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ (DY Chandchud) को एक ओपन लेटर लिखकर 'इच्छा मृत्यु' की अनुमति मांगी. पत्र में कहा गया कि उन्हें अपने सीनियर द्वारा कथित यौन उत्पीड़न किए जाने पर 'निष्पक्ष जांच' की कोई उम्मीद नहीं है. कथित तौर पर यह आरोप छह महीने पहले उनकी पिछली पोस्टिंग से जुड़ा हुआ है.
गुरुवार, 14 दिसंबर को जारी किए गए और द क्विंट द्वारा एक्सेस किए गए दो पेज के पत्र में, सिविल जज ने कहा कि वह "बेहद दर्द और निराशा" में अपने "सबसे बड़े अभिभावक" को लिख रही है.
जज ने लिखा कि मैं बहुत उत्साह और इस यकीन के साथ न्यायिक सेवा में शामिल हुई कि मैं आम लोगों को इंसाफ दिलाऊंगी. मुझे क्या पता था कि मैं जल्द ही हर दरवाजे पर इंसाफ के लिए भिखारी बन जाऊंगी.
उन्होंने चीफ जस्टिस को लिखा कि मुझे अब जीने की कोई इच्छा नहीं है. पिछले डेढ़ साल में मुझे चलती-फिरती लाश बना दिया गया है. इस निष्प्राण शरीर को अब इधर-उधर ढोने का कोई मतलब नहीं है. मेरे जीवन का कोई उद्देश्य नहीं बचा है.
Bar and Bench की रिपोर्ट के मुताबिक इसके एक दिन बाद, CJI चंद्रचूड़ के निर्देश पर सुप्रीम कोर्ट ने महिला न्यायिक अधिकारी के आरोपों की जांच की स्थिति पर इलाहाबाद हाईकोर्ट प्रशासन से स्थिति की रिपोर्ट मांगी.
'मैं दूसरों को क्या इंसाफ दूंगी...': खुले पत्र में जज
महिला जज ने आरोप लगाया कि एक जिला न्यायाधीश (जो उनसे वरिष्ठ थीं) और उनके सहयोगियों ने उनका यौन उत्पीड़न किया.
जज ने लिखा कि "मेरी सेवा के थोड़े से समय में मुझे खुली अदालत में डायस पर दुर्व्यवहार का दुर्लभ सम्मान मिला है. मेरे साथ हर लिमिट तक यौन उत्पीड़न किया गया है. मेरे साथ पूरी तरह से कूड़े जैसा व्यवहार किया गया है. मुझे ऐसा लगता है कि मैं बेकार कीड़ा-मकोड़ा हूं.
अपने पत्र में जज ने कहा कि उन्होंने 2022 में इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस और हाईकोर्ट के प्रशासनिक न्यायाधीश से शिकायत की थी, लेकिन दावा किया कि उन्होंने कार्रवाई नहीं की.
उन्होंने जुलाई 2023 में हाईकोर्ट की आंतरिक शिकायत समिति (ICC) से भी शिकायत की. पत्र में कहा गया है कि जांच शुरू करने में छह महीने और एक हजार ईमेल लगे.
जज ने आगे कहा कि उन्होंने मांग की थी कि जांच लंबित रहने तक सीनियर जज का तबादला कर दिया जाए, लेकिन उनकी गुजारिश नहीं मानी गई.
'मैं जज हूं, लेकिन सिस्टम से नहीं लड़ सकी'
प्रस्तावित जांच भी एक दिखावा है. जांच में गवाह जिला न्यायाधीश के तत्काल अधीनस्थ हैं. समिति कैसे गवाहों से अपने बॉस के खिलाफ गवाही देने की उम्मीद करती है, यह मेरी समझ से परे है. यह बहुत बुनियादी बात है कि निष्पक्ष जांच के लिए गवाह को प्रतिवादी (अभियुक्त) के प्रशासनिक नियंत्रण में नहीं होना चाहिए.यूपी की पीड़ित महिला जज
उन्होंने आगे कहा कि जांच अब सभी गवाहों के नियंत्रण में जिला जज के साथ की जाएगी. हम सभी जानते हैं कि इस तरह की जांच का क्या हश्र होता है.
जज ने "भारत में कामकाजी महिलाओं" से "सिस्टम के खिलाफ लड़ने" का कोशिश न करने को भी कहा है.
उन्होंने आगे लिखा कि अगर कोई महिला सोचती है कि आप सिस्टम के खिलाफ लड़ेंगी. मैं आपको बता दूं, मैं नहीं कर सकी और मैं जज हूं. मैं अपने लिए निष्पक्ष जांच भी नहीं जुटा सकी, न्याय तो दूर की बात है. मैं सभी महिलाओं को खिलौना या निर्जीव वस्तु बनना सीखने की सलाह देती हूं.
पत्र के आखिरी में महिला जज ने सवाल किया: "जब मैं खुद निराश हूं तो मैं दूसरों को क्या इंसाफ दूंगी?"
उन्होंने लिखा कि कृपया मुझे अपना जीवन सम्मानजनक तरीके से खत्म करने की अनुमति दें. मेरे जीवन को खारिज कर दिया जाए.
Bar and Bench की रिपोर्ट के मुताबिक बुधवार, 13 दिसंबर को जज ने मामले में निष्पक्ष जांच की मांग के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया. हालांकि, जस्टिस हृषिकेश रॉय की अगुवाई वाली बेंच ने उनकी याचिका खारिज कर दी.
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