अब्दुल करीम खान शेर खान, उर्फ करीम लाला... मुंबई अंडरवर्ल्ड का वो नाम, जिससे हर कोई वाकिफ था. 1960 के दशक में मुंबई में उसके नाम से लोग कांपते थे. और अब, इस खतरनाक अंडरवर्ल्ड गैंगस्टर की मौत के लगभग दो दशक बाद इसके नाम ने फिर विवाद खड़ा कर दिया है. शिवसेना सांसद संजय राउत ने कहा है कि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी दक्षिण मुंबई के पिधोनी में करीम लाला से मिला करती थीं.
अब जानिए कि मुंबई का ये डॉन लाला, कैसे इतना पॉवरफुल बना और 'सपनों के शहर' माने जाने वाले मुंबई में उसने कैसे राज किया.
कैसे बना करीम खान से करीम लाला?
अफगानिस्तान में कुनार प्रांत के रहने वाले, करीम खान का जन्म 1911 में हुआ था. ये साफ नहीं है कि वो किस साल मुंबई आया था. कहा जाता है कि वो 1930 दशक के आखिर और 1940 दशक के शुरू में पेशावर से मुंबई पहुंचा था. हुसैन जैदी की किताब, 'डोंगरी टू दुबई: सिक्स डिकेड्स ऑफ मुंबई' के मुताबिक, 7 फीट लंबे पाश्तुन करीम खान ने अपने करियर की शुरुआत डॉक में काम करके की थी.
दक्षिण मुंबई में जुए का एक अड्डा खोलने के बाद करीम खान मुंबई की इस अंधेरी दुनिया का हिस्सा बना. धंधे की मांग ने उसे सूदखोर बना दिया. जुआ खेलने आने वालों को वो ब्याज पर पैसे देने लगा. और इस तरह करीम खान का नाम बदलकर करीम लाला हो गया.
1950 और 60 के दशक में, लाला ने जबरन वसूली, शराब की तस्करी, किराएदारों को बेदखल करने, सोने की तस्करी और अन्य गैरकानूनी गतिविधियों के बीच धीरे-धीरे अपना कारोबार फैलाया. करीम लाला पैसा लेकर अलग-अलग पक्षों के बीच विवादों को सुलझाने का भी काम करने लगा. दक्षिण बंबई में पठानों की बड़ी संख्या और उसके नेता के रूप में लाला के साथ, 'पठान गिरोह' काफी मजबूत हो गया.
गैंगस्टर तिकड़ी
1970 के दशक के आसपास, करीम लाला हाजी मस्तान और वरदराजन मुदलियार के साथ आ गया.
तमिलनाडु से आने वाला वरदराजन ने हाजी मस्तान की मदद से अवैध शराब बेची, कई जुए के अड्डे कोले और डॉक कार्गो की चोरी भी की. धारावी और सायन-कोलीवाड़ा जैसे क्षेत्रों में वो बड़ा नाम बन गया था.
वहीं, करीम लाला, पिधोनी, नागपाड़ा, कामठीपुरा और नागदा जैसे दक्षिण बंबई के इलाकों में अपना धंधा करता था. लाला ने प्रॉफिट के बदले तस्करी के सामान की सुरक्षा के लिए प्रस्ताव पर हाजी मस्तान के साथ काम करने का फैसला किया.
जैसा कि हुसैन जैदी ने अपनी किताब 'डोंगरी टू दुबई: सिक्स डिकेड्स ऑफ मुंबई माफिया’ में लिखा है- तीनों ने एक तरह से 1970 और 1980 के बीच, मुंबई पर राज किया.
राजनीतिक दबदबा और पतन
अपने अवैध धंधों के अलावा, करीम लाला के तीन वैध बिजनेस भी थे. उसके पास दो होटल-अल करीम होटल और न्यू इंडिया होटल थे. इतना हीं नहीं, उसके पास न्यू इंडिया टूर्स एंड ट्रैवल्स नाम की एक ट्रैवल और पासपोर्ट एजेंसी भी थी.
1960 में खुदाई खिदमतगर और पख्तूनिस्तान जिगर-ए-हिंद संगठनों को शुरू करने के बाद उसका राजनीति में दबदबा बढ़ा. इन संगठनों की शुरुआत उसने पठानों को काम दिलवाने के लिए की थी.
दाऊद इब्राहिम और छोटा राजन जैसे गैंगस्टर्स के उदय के साथ ही, लाला की शख्सियत फीकी पड़ने लगी. 20 फरवरी 2002 को दिल का दौरा पड़ने से करीम लाला की मौत हो गई.
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