Haryana Exit Poll 2024: हरियाणा में अबकी बार कांग्रेस की बहुमत वाली सरकार बनने जा रही है. ऐसा अनुमान अलग-अलग एग्जिट पोल्स में लगाए गए हैं. एक तरफ कांग्रेस 10 सालों बाद सत्ता में वापसी करती दिख रही है. दूसरी तरफ बीजेपी के जीत की हैट्रिक का सपना टूटता दिख रहा है.
हरियाणा विधानसभा की कुल 90 सीटों के लिए शनिवार, 5 अक्टूबर को वोटिंग हुई. चुनाव आयोग के मुताबिक, शाम 7 बजे तक 61.19 फीसदी मतदान दर्ज हुआ है.
पोल ऑफ एग्जिट पोल्स
पोल ऑफ एग्जिट पोल्स का अनुमान है कि हरियाणा में कांग्रेस पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बना रही है. पांच एग्जिट पोल्स के औसत को देखें तो कांग्रेस को 57 सीटें मिल सकती है. वहीं बीजेपी के खाते में 25 सीटें आ सकती है. INLD गठबंधन को दो सीट मिलने की संभावना है. जबकि अन्य के खाते में 6 सीट जा सकती है. 2019 में 10 सीटें जीतने वाली जेजेपी के लिए बुरी खबर है. पार्टी को 1 भी सीट मिलती नहीं दिख रही है.
बता दें कि 2019 विधानसभा चुनाव में बीजेपी 40 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनी थी. उसका वोट शेयर 36.49 फीसदी था. वहीं कांग्रेस को 31 सीटें मिली थी और उसका वोट शेयर 28.08% था. जेजेपी के खाते में 10 सीटें आईं थी और उसका वोट शेयर 14.80% था. वहीं INLD को 2.44% वोट शेयर के साथ 1 सीट मिली थी. गोपाल कांडा की पार्टी ने भी 1 सीट पर कब्जा जमाया था. निर्दलीय उम्मीदवारों के खाते में 7 सीटें गई थी.
बीजेपी की हार के 5 बड़े कारण
1. किसान, पहलवान और जवान: प्रदेश में इस बार तीन मुद्दों की खूब चर्चा थी- किसान, पहलवान और जवान. शुरू से ही माना जा रहा था कि किसान बीजेपी से नाराज हैं. एमएसपी की लीगल गारंटी की मांग को लेकर अंबाला में शंभू बॉर्डर (Shambhu Border) पर पिछले सात महीने से किसान धरना दे रहे हैं. वहीं इससे पहले 2020 से 2021 के बीच 13 महीने अन्नदाताओं ने आंदोलन किया था. माना जा रहा है कि किसानों के आंदोलन से ग्रामीण क्षेत्रों में बीजेपी के खिलाफ माहौल बना, जिससे पार्टी को चुनावों में नुकसान हुआ है.
दूसरी तरफ कांग्रेस ने किसानों के मुद्दे को पुरजोर तरीके से उठाया और इसे अपने मैनिफेस्टो में भी शामिल किया. पार्टी ने किसान आयोग के गठन और न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की गारंटी दी है. जिससे पार्टी को लाभ मिलता दिख रहा है.
इसके साथ ही चुनाव में पहलवानों का मुद्दा भी हावी रहा. पहलवान आंदोलन का चेहरा रहीं विनेश फोगाट और बजरंग पूनिया कांग्रेस में शामिल हो गए. पार्टी ने जुलाना से विनेश को उम्मीदवार बनाया था.
ओलंपिक में विनेश की अयोग्यता के बाद खाप ने भी उनका समर्थन किया था. खाप ने गोल्ड मेडल से उन्हें सम्मानित किया और यहां तक की उनके लिए भारत रत्न की मांग तक कर डाली थी. विनेश के लिए खाप का समर्थन चुनावों में कांग्रेस की तरफ ट्रांसफर होता दिख रहा है.
हरियाणा देश में सबसे ज्यादा फौजी देने वाले राज्यों में से एक है. मोदी सरकार की अग्निपथ योजना से यहां के युवाओं में नाराजगी थी, जो एग्जिट पोल्स में झलक रही है. हालांकि, बीजेपी ने अपने संकल्प पत्र में सभी हरियाणवी अग्निवीरों को सरकारी नौकरी देने का वादा किया था.
वहीं बेरोजगारी को लेकर भी युवाओं में नाराजगी थी. द क्विंट की रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2022 में हरियाणा सरकार में 32,000 पदों के लिए परीक्षा देने वाले 8 लाख उम्मीदवारों को अभी तक नौकरी नहीं मिली है.
2. जाटों की नाराजगी: हरियाणा में करीब 27% जाट आबादी है, जो 90 विधानसभा सीटों में से करीब 40 पर प्रभाव रखते हैं. ये समुदाय सबसे अधिक संख्या में वोट देने वाले समूह है. परंपरागत रूप से उनका राज्य में सबसे अधिक राजनीतिक प्रभाव भी रहा है. ऐसे में बीजेपी को जाटों की नाराजगी भारी पड़ी है.
एक तरफ, कांग्रेस ने चुनाव के दौरान जाट वोटरों पर फोकस किया. पार्टी ने कथित तौर पर एक तिहाई टिकट जाटों को दिए, जिसमें गढ़ी सांपला किलोई से पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा भी शामिल हैं.
वहीं दूसरी तरफ बीजेपी गैर-जाट वोटरों को एकजुट करने की कोशिश में थी- जिसमें ब्राह्मण, बनिया, पंजाबी/खत्री और राजपूत शामिल हैं. गैर-जाटों को लुभाने के लिए पार्टी ने ब्राह्मण समुदाय से संबंध रखने वाले मोहन लाल बडौली को अपना प्रदेश अध्यक्ष तक बनाया था. लेकिन उसका फायदा होता नहीं दिख रहा है.
कांग्रेस को दलित वोटरों का भी साथ मिलता दिख रहा है. हरियाणा की आबादी में दलितों की हिस्सेदारी करीब 20 प्रतिशत है. एग्जिट पोल्स के आंकड़े दर्शाते हैं कि कांग्रेस को दलित समुदाय का भी साथ मिला है.
3. मोदी फैक्टर नहीं चला: एग्जिट पोल के आंकड़े बताते हैं कि हरियाणा में इस बार मोदी फैक्टर नहीं चला. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रदेश में चार रैलियां की और कांग्रेस पर तुष्टिकरण की राजनीति और “दलित विरोधी” होने का आरोप लगाया. लेकिन कांग्रेस ने बेरोजगारी, अग्निवीर और किसानों के मुद्दों के जरिए इसका जवाब दिया.
दूसरी तरफ मतदाताओं को लुभाने के लिए राहुल गांधी ने प्रदेश में तीन दिवसीय विजय संकल्प यात्रा निकाली और बीजेपी सरकार पर निशाना साधा.
जानकारों की मानें तो 2024 लोकसभा चुनाव के बाद से 'मोदी मैजिक' का असर कम हुआ है. 400+ का नारा देने वाली बीजेपी को 240 सीटें ही मिली थी. हरियाणा में भी पार्टी को झटका लगा था और 10 में से सिर्फ 5 सीट ही खाते में आई थी. बीजेपी 2019 के प्रदर्शन को दोहराने में नाकामयाब रही थी. वहीं कांग्रेस को 5 सीटें मिली थी.
4. दलबदल और अंदरूनी कलह: माना जा रहा है कि बीजेपी को दलबदलू नेताओं और अंदरूनी कलह की वजह से भी नुकसान हुआ है. चुनाव से ठीक दो दिन पहले यानी 3 अक्टूबर को हरियाणा के वरिष्ठ नेता अशोक तंवर BJP छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गये थे.
चुनाव से करीब एक हफ्ता पहले बीजेपी ने अपने 8 बागी नेताओं को पार्टी से निकाल दिया था. इसमें पूर्व मंत्री रणजीत चौटाला और पूर्व विधायक देवेंद्र कादयान का नाम भी शामिल था.
5. एंटी इनकंबेंसी: पिछले 10 सालों से प्रदेश की सत्ता में काबिज बीजेपी के लिए इस चुनाव में एंटी इनकंबेसी एक बहुत बड़ा मुद्दा था. पार्टी ने इससे निपटने के लिए सरकार से लेकर संगठन तक में बदलाव किए. चुनाव से 6 महीने पहले मुख्यमंत्री बदल दिया. मनोहर लाल की जगह नायब सैनी को कमान सौंपी गई, लेकिन उसका कोई खास असर नहीं दिख रहा.
सत्ता विरोधी लहर से मुकाबला करने के लिए पार्टी ने टिकट बंटवारे में भी कैंची चलाई. बीजेपी ने इस बार एक तिहाई विधायकों के टिकट काट दिए. वहीं चार मंत्रियों को भी दोबारा चुनाव मैदान में नहीं उतारा.
क्या बोले हुड्डा और सैनी?
एग्जिट पोल के नतीजों के बाद कांग्रेस नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने ट्वीट किया, "हरियाणा में 10 वर्षों के कुशासन का अंत करने के लिये बाबा साहब के संविधान से मिले मतदान के अधिकार का प्रयोग करने के लिये सभी मतदाताओं का धन्यवाद. चुनाव अभियान के दौरान आपने अपार समर्थन, सम्मान और आशीर्वाद दिया, उसके लिए मैं सदा आभारी रहूंगा."
वहीं हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने कहा, "पूरे बहुमत से भाजपा की सरकार आएगी. 8 अक्टूबर को पूर्ण बहुमत के साथ BJP आएगी. हमें पूरा विश्वास है कि पिछले 10 सालों में हरियाणा के लोगों ने जो काम देखा है, हर वर्ग के लिए काम हुए हैं, हरियाणा को क्षेत्रवाद से मुक्ति दिलाई, परिवारवाद और भेद-भाव से मुक्ति दिलाने का काम हमारी सरकार ने 10 सालों में किया है."
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