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इंदौर में कांग्रेस का बिना लड़े हारना BJP नेताओं की खुद को साबित करने की जद्दोजहद दिखा रहा

Lok Sabha Election 2024: राज्य विधानसभा चुनाव जीतने से पहले ही बीजेपी की मध्य प्रदेश इकाई में पावर को लेकर खींचतान शुरू हो गई थी.

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सूरत में जो हुआ, लगभग उसी को दोहराते हुए सोमवार, 29 अप्रैल को इंदौर से कांग्रेस लोकसभा उम्मीदवार अक्षय कांतिलाल बाम ने अपना नामांकन वापस ले लिया. बाद में खुद बीजेपी ज्वाइन कर लिया. इस तरह 2024 के लोकसभा चुनावों (Loksabha Election 2024) में भारतीय जनता पार्टी (BJP) को एक और आसान जीत थाली में परोस के मिलती दिख रही है.

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इंदौर से पहले खजुराहो में जो हुआ वो जानिए. यहां से INDIA ब्लॉक और समाजवादी पार्टी की उम्मीदवार मीरा यादव का नामांकन तकनीकी आधार पर रद्द किया गया. इस तरह यहां भी बीजेपी के उम्मीदवार और पार्टी के एमपी अध्यक्ष वीडी शर्मा के लिए मैदान साफ हो गया है.

एमपी में जो अबतक हुआ, वो दो बातों की ओर इशारा कर रहा:

  • मध्य प्रदेश कांग्रेस में पीढ़ीगत नेतृत्व बदलने का असफल प्रयास

  • राज्य में दबदबे के लिए बीजेपी के दिग्गज नेता संघर्ष कर रहें

कांग्रेस के नए एमपी अध्यक्ष के साथ समस्याएं?

राज्य के जो वरिष्ठ कांग्रेस नेता हैं, वो कमल नाथ के बाद पार्टी रैंक के भीतर कांग्रेस के नेतृत्व में पीढ़ीगत बदलाव को स्वीकार करने में झिझक की ओर इशारा करते हैं.

इंदौर के एक कांग्रेस नेता, अमीनुल खान सूरी ने द क्विंट से बात करते हुए कहा कि पार्टी ने टिकट बांटते वक्त खासकर इंदौर में सबकी सिफारिशों को दरकिनार किया और सिर्फ पार्टी अध्यक्ष की इच्छा को भाव दिया.

उन्होंने कहा, "बाम कोई कांग्रेस भक्त कार्यकर्ता नहीं थे. पार्टी चाहती थी कि जीतू पटवारी इंदौर से चुनाव लड़ें. वह पार्टी अध्यक्ष हैं. एक जाने-माने युवा नेता हैं, और मालवा क्षेत्र में उनका भारी प्रभाव है. लेकिन पार्टी की इच्छाओं का दरकिनार कर दिया गया. इसके बजाय, उनकी जगह पटवारी के एक करीबी सहयोगी को मैदान में उतारा गया- और उसका नतीजा आज सबके सामने है कि पार्टी आज कहां पहुंच चुकी है. अक्षय बाम ने अपना नामांकन वापस ले लिया है और बीजेपी को एकतरह से वॉकओवर दे दिया गया"

उन्होंने कहा, "अगर वे चुनाव लड़ते, तो परिणाम बहुत अलग होते और पार्टी को इस अपमान का सामना नहीं करना पड़ता".

इस सबके बीच, जीतू पटवारी ने आरोप लगाया कि बाम को बीजेपी ने डराया-धमकाया है और प्रताड़ित किया गया है. उन्होंने आगे दावा किया कि बीजेपी ने तानाशाही की है. लेकिन यह तथ्य कि बाम को पिछली रात प्रचार करते हुए देखा गया था, साथ ही बीजेपी के बड़े नेता कैलाश विजयवर्गीय के साथ उनकी तस्वीर वायरल होने से पहले उन्होंने सुबह कुछ कांग्रेस कार्यकर्ताओं से बात की थी, पार्टी के अंदर कम्युनिकेशन गैप पर सवाल उठाता है.

एक सूत्र ने द क्विंट से बात करते हुए आरोप लगाया कि अक्षय बाम पर बीजेपी का दबाव था, लेकिन मदद के गुहार के बावजूद पार्टी के भीतर किसी का ध्यान उनपर नहीं गया.

हालांकि, पार्टी के भीतर एक सूत्र ने कहा कि पार्टी अध्यक्ष और उनके करीबी सहयोगी बाम के पीछे हटने से अनजान थे. यह तब हुआ था जब बीजेपी ने एक सप्ताह पहले बाम के खिलाफ अपने चुनावी हलफनामे में एक गंभीर मामले का कथित खुलासा नहीं करने के कारण उनका नामांकन रद्द करने का प्रयास किया था.

बाम ने अपने खिलाफ चल रहे तीन कानूनी मामलों की घोषणा की थी, जिनमें से दो भूमि विवाद और तीसरा लापरवाही से गाड़ी चलाने से संबंधित है. 24 अप्रैल को, एक तरफ बाम ने नामांकन दाखिल दिया तो दूसरी तरफ एक स्थानीय अदालत ने बाम और उनके पिता के खिलाफ भूमि विवाद के मामलों में से एक के संबंध में हत्या के प्रयास के लिए IPC की धारा 307 के तहत आरोप जोड़ दिए. धारा 307 में दोषी ठहराए जाने पर 10 साल की जेल की सजा हो सकती है.
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इंदौर में बीजेपी के कानूनी मामलों को देखने वाले एक व्यक्ति ने बाम पर मामले की जानकारी सार्वजनिक नहीं करने का आरोप लगाया था लेकिन चुनाव अधिकारियों ने इन दावों को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि जिस दिन नामांकन पत्र दाखिल किए गए थे उसी दिन आरोप लगाए गए थे.

अक्षय बाम के पालाबदल के अलावा कई पूर्व विधायकों ने पिछले एक महीने में कांग्रेस पार्टी का साथ छोड़ा है. एक हैं संजय शुक्ला, जिन्होंने इंदौर-1 सीट का प्रतिनिधित्व किया था. विशाल पटेल भी पाला बदल चुके हैं जो देपालपुर से कांग्रेस के पूर्व विधायक हैं. एक नाम अंतर सिंह दरबार का है जो महू सीट से पूर्व विधायक हैं

राजनीतिक गलियारों में इस बात की अटकलें लगाई जा रही हैं कि पटवारी को 'अपनी भूख से बड़ा निवाला' दिया जा रहा है. लेकिन, जहां कांग्रेस अपनी मध्य प्रदेश इकाई के भीतर बिखराव से जूझ रही है, वहीं बीजेपी खेमे के अंदर भी सबकुछ सही नहीं चल रहा.

लाइमलाइट में रहने के लिए बीजेपी नेताओं का संघर्ष

तीन बार के विधायक मोहन यादव को मध्य प्रदेश में बीजेपी आलाकमान ने मुख्यमंत्री बना दिया. यह फैसला पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, प्रह्लाद पटेल जैसे केंद्रीय मंत्री और बीजेपी के महासचिव कैलाश विजयवर्गीय जैसे नेताओं का आसानी से नहीं पचा.

सूरत और खजुराहो में हुई राजनीतिक घटनाओं की तरह इंदौर का ममला भी बीजेपी के अंदर चल रहे वर्चस्व की लड़ाई और दबदबा कायम करने की कोशिशों की तरफ इशारा करता है.

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बीजेपी के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने कहा, केंद्रीय नेतृत्व के सामने खुद को साबित करने के लिए कुछ नेता छाती चौड़ा कर के सामने आ रहे हैं. सूरत में जो हुआ उसे इंदौर में दोहराने की कोई खास जरूरत नहीं थी, लेकिन ऐसा करने से कुछ नेताओं को लाइमलाइट में आने का मौका मिल रहा था.

2023 में राज्य विधानसभा चुनाव से पहले ही शिवराज सिंह चौहान के ऊपर से केंद्रीय नेताओं का हाथ हट गया. तबसे ही बीजेपी की मध्य प्रदेश इकाई में कंट्रोल कायम करने की लड़ाई चल रही है. साथ ही इस बार चुनाव अभियान का फोकस 'मोदी की गारंटी' की छत्रछाया में 'सामूहिक नेतृत्व' पर था.

लाडली बहन योजना (महिला मतदाताओं को ₹1000 प्रति माह) शुरू करने के बाद चौहान की बढ़ती लोकप्रियता को कम करने के लिए कई केंद्रीय मंत्री, सांसद, और पार्टी के महासचिव, राज्य चुनाव में मैदान में उतारे गए थे.

पार्टी ने 163 सीट हासिल कर बड़े अंतर से जीत दर्ज की. इस जीत के बाद नरेंद्र मोदी-अमित शाह की केंद्रीय नेतृत्व की जोड़ी ने राज्य के वरिष्ठ कैडर के मतों को नाकार कर मोहन यादव का पक्ष लिया और उन्हें सीएम बना दिया.

एक दशक से ज्यादा समय से बीजेपी को कवर करने वाले एक वरिष्ठ पत्रकार ने कहा कि राज्यों में भेजे गए पार्टी के केंद्रीय नेता अभी भी बड़े पद की तालाश में हैं.

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पत्रकार ने टिप्पणी की कि आम चुनाव के बाद अगर मोहन यादव को मुख्यमंत्री पद से हटाया जाता है तो ऐसे में कैलाश विजयवर्गीय और वीडी शर्मा जैसे केंद्रीय नेता अभी भी अपने लिए रास्ता बनाने की कोशिश कर रहे हैं. उन्हें पार्टी ने छोटे तालाब में भेजा था और अब वे सबसे बड़ी मछली पकड़ने के कोशिश में है.

राज्य के एक अन्य पत्रकार ने कहा कि अगर कैलाश विजयवर्गीय इंदौर में ऐसा नहीं करते तो उनके पास मौजूदा चुनावों में दिखाने के लिए कुछ भी नहीं होता.

"2024 के आम चुनावों में उनकी भूमिका और उपलब्धि के बारे में किसी भी सवाल पर कैलाश विजयवर्गीय का क्या जवाब होता? अब उनका जवाब यह हो सकता है कि उन्होंने एक कांग्रेस उम्मीदवार से उसका नामांकन वापस करवा दिया और जो सूरत में हुआ, उसको इंदौर में दोहराया."

(विष्णुकांत तिवारी मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ सहित अन्य मध्य भारतीय क्षेत्रों को कवर करने वाले पत्रकार हैं. वह माओवाद, राजनीति, जाति, अत्याचार, सांप्रदायिकता, अल्पसंख्यकों और अन्य महत्वपूर्ण घटनाओं को कवर करते हैं.)

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