कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है वैसे-वैसे राजस्थान का सियासी पारा भी बढ़ता जा रहा है. गहलोत और पायलट खेमे की गुटबाजी भी तेज हो गई है. दोनों तरफ से अपने-अपने नेताओं के प्रति कार्यकर्ता और नेता अपनी निष्ठा दिखा रहे हैं. कैबिनेट मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास, प्रसादी लाल मीणा, अशोक चांदना और सुभाष गर्ग, गहलोत के प्रति अपनी निष्ठा स्थापित करने के लिए निरंतर बयान दे रहे हैं. ये नेता अशोक गहलोत को ही अपना मुखिया बता रहे हैं. इस बीच बीजेपी भी कांग्रेस और गहलोत पर निशाना साध रही है.
बागी तेवर अपनाने के मूड में गहलोत समर्थक विधायक
निर्दलीय विधायक संयम लोढ़ा ने कहा कि जिसके कारण विधायकों को होटलों में रहना पड़ा उस व्यक्ति को मुख्यमंत्री कैसे स्वीकार कर सकते हैं?
वहीं, संसदीय कार्य मंत्री शांति धारीवाल के घर पर गहलोत समर्थक विधायक जमा होने लगे हैं. उनके आवास के बाहर एक लग्जरी बस भी मंगवाई गई है. माना जा रहा है कि गहलोत समर्थक विधायक बगावती तेवर अपनाने के मूड में हैं.
फैसला लेते वक्त आलाकमान को पुरानी बातें याद रखनी चाहिए- मंत्री सुभाष गर्ग
राज्य सरकार में तकनीकी शिक्षा और आयुर्वेद राज्यमंत्री डॉ. सुभाष गर्ग ने अपने भरतपुर दौरे के दौरान पूरे मामले को लेकर बयान जारी किया है. गर्ग ने एक वीडियो जारी कर कहा कि उन्हें बेहद आश्चर्य और अफसोस है कि बीजेपी के साथ मिलकर अशोक गहलोत सरकार को उखाड़ने की साजिश रचने वाले मुख्यमंत्री बनने का ख्वाब देख रहे हैं.
उन्होंने कहा कि कांग्रेस आलाकमान को वो पुरानी बातें याद रखनी चाहिए कि मुख्यमंत्री बनने का ख्वाब देखने वाले लोगों ने किस तरह सरकार को अस्थिर करने का काम किया था.
उन्होंने कहा कि मेरा मानना है कि कांग्रेस आलाकमान जो भी फैसला करेगा सभी को मंजूर होगा, लेकिन कांग्रेस आलाकमान को पुरानी बातें भी ध्यान रखनी चाहिए. उन्होंने कहा कि राजस्थान की जनता और 102 विधायकों की राय लेकर ही कांग्रेस आलाकमान आगे का निर्णय करे तो ज्यादा बेहतर होगा
कांग्रेस की मीटिंग से पहले गहलोत गुट की मंत्री धारीवाल के घर बैठक
कांग्रेस, राजस्थान में किसे अगला मुख्यमंत्री का चेहरा बनाएगी उसे लेकर आज शाम को कांग्रेस आलाकमान की तरफ से भेजे गए प्रदेश प्रभारी अजय माकन और मल्लिका अर्जुन खड़गे मुख्यमंत्री के सरकारी निवास पर विधायकों से मुलाकात कर उनसे रायशुमारी करेंगे. दूसरी तरफ गहलोत समर्थक विधायक इस मीटिंग से पहले अलग से बैठक कर आगे की रणनीति तय करेंगे. नगरीय विकास मंत्री शांति धारीवाल के घर पर बैठक चल रही है. बताया जा रहा है कि यहीं से विधायक बैठकर एक साथ शाम को होने वाली मीटिंग में जाएंगे.
कांग्रेस और गहलोत पर बीजेपी साध रही निशाना
दूसरी तरफ बीजेपी, अशोक गहलोत के राष्ट्रीय अध्यक्ष निर्वाचन को लेकर दबे शब्दों में तंज कस रही है. राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि कांग्रेस पर जिस प्रकार गांधी परिवार का प्रभुत्व रहा है, वो अशोक गहलोत के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद भी जारी रहेगा. भले ही पहली बार गैर गांधी कोई कांग्रेस अध्यक्ष बने, लेकिन उस पर नियंत्रण गांधी परिवार का ही रहने वाला है. इसका उदाहरण अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री पद से मुक्त करना है.
चर्चा यह भी है कि कांग्रेस अध्यक्ष के लिए जब चुनाव परिणाम 20 अक्टूबर को आना है तो मुख्यमंत्री गहलोत को बदलने की इतनी जल्दबाजी क्यों दिखाई दे रही है? क्या गहलोत भी गांधी परिवार की कठपुतली की ही तरह काम करेंगे? यह भी कहा जा रहा है कि पार्टी में आलाकमान के नाम पर बड़े फैसले कार्यकर्ताओं पर थोप दिए जाते रहे हैं. अगर गहलोत के आलाकमान बनने के बाद भी खुद के गृह राज्य में अपनी मर्जी से मुख्यमंत्री चुनने की इजाजत नहीं है तो पार्टी के बाकी फैसले गहलोत कैसे स्वतंत्र रूप से लेंगे?
राहुल 'वन मैन, वन पोस्ट' पर अभी भी कायम
हालांकि, 'वन मैन, वन पोस्ट' को लेकर कांग्रेस और राहुल गांधी अभी भी अपने स्टैंड पर अड़े हुए हैं. ऐसे में तय है कि गहलोत तो मुख्यमंत्री नहीं रहने वाले हैं. लेकिन, कांग्रेस की तीन पीढ़ियों के विश्वस्त रहे गहलोत क्या इस बार भी कुछ जादू दिखा पाएंगे ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा.
पीछे हटने को राजी नहीं पायलट गुट
उधर, सचिन पायलट खेमा पूरी तरह से सक्रिय हो गया है. वो मुख्यमंत्री को बदलने की बात कर रहा है और मुख्यमंत्री के तौर पर सचिन पायलट को प्रोजेक्ट करने की बात कर रहा है. पायलट गुट भी पीछे हटने को तैयार नहीं है और ना ही गहलोत समर्थक विधायक पायलट पर राजी होते दिखाई दे रहे हैं, ऐसे में कांग्रेस आलाकमान क्या फैसला लेता है इस पर सभी की निगाहें टिकी हुई हैं.
दुविधा में कांग्रेस आलाकमान
इस समय कांग्रेस आलाकमान दुविधा में फंसा हुआ है. क्योंकि, गहलोत खेमा जो इस समय सचिन पायलट को लेकर आक्रामक है वो भी पायलट पर राजी नहीं है. वहीं, कांग्रेस आलाकमान के सामने पंजाब का राजनीतिक प्रदृश्य भी दिखाई दे रहा है कि कैसे पंजाब में परिवर्तन उसको सत्ता से दूर कर दिया. राजस्थान में भी अगले साल के अंत में चुनाव होने वाले हैं, अगर ऐसे ही उठापटक रही तो कांग्रेस के लिए अच्छी खबर नहीं है.
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