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155 साल पुराने लोहे के पुल के बगल में बन रहा यमुना ब्रिज क्यों 2 दशक लेट हुआ?

Delhi के लोहा पुल को अंग्रेजों ने 44 लाख और 6 साल लगाकर सन 1867 में बनाया था

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दिल्ली के यमुना (Yamuna) पर बने 155 साल पुराने रेलवे पुल का बोझ जल्द ही कम हो जाएगा. नए पुल का निर्माण अब आखिरी चरण में है और ये पुल अगले साल सितंबर तक बनकर तैयार हो जाएगा.

लाल किले के पीछे सलीमगढ़ किले के पास यमुना पर बने पुराने लोहे के पुल के बराबर में बन रहे नए ब्रिज का काम रफ्तार पकड़ रहा है, रेलवे का कहना है कि ये पुल सितंबर 2023 में बनकर तैयार हो जाएगा. ब्रिज से आगे जितने हिस्से पर नई रेलवे ट्रैक बिछाई जानी है, उसका काम 67 फीसदी पूरा हो गया है और अपने आखिरी चरण में है.

इस नए ब्रिज का सफर बड़ा लंबा और मुश्किलों भरा रहा है. 2003 में नए पुल को बनाने का काम शुरू किया गया था. काम शुरू होने के बाद इतने रोड़े अटके कि जो 3-4 साल में बनकर तैयार हो जाना चाहिए था, वह दो दशक बीतने के बाद भी पूरा नहीं हो पाया. इस पुल से गुजरने वाली रेलवे लाइन को करीब के सलीमगढ़ के किले के कुछ हिस्से से होकर ले जाना था. लेकिन, बाद में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने इसकी अनुमति देने से इनकार कर दिया. इसके चलते इस पुल का निर्माण बीच में रोकना पड़ा. बाद में पुल का एलाइनमेंट बदलकर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण से इसके निर्माण की अनुमति मिलने पर फिर शुरू किया गया. इसके अलावा निर्माणस्थल पर जमीन के नीचे चट्टानी पत्थर मिलने पर कुछ पिलर की नींव में भी बदलाव करना पड़ा। इन सभी कारणों से इसके काम में कई साल की देरी हुई.

पुराने लोहे के ब्रिज को अंग्रेजों ने 1867 में बनाया था. लंबे समय से इसकी जगह दूसरा ब्रिज बनाने की बात चल रही थी. यमुना नदी पर नए ब्रिज की मंजूरी तो 1997-98 में मिल गई थी, लेकिन काम शुरू हो पाया 2003 में. उस समय इस पुल की लागत करीब 91.38 करोड़ रुपये थी. पहले जब इसका काम शुरू किया गया था, तब इसे पूरा करने की समय सीमा वर्ष 2008 रखी गई थी. लेकिन, पुल बनाने में आई अड़चनों के बाद और समय सीमा बढ़ने के साथ इस पुल की मौजूदा अनुमानित लागत 139.95 करोड़ रुपये हो गई है, जिनमें से 91.38 करोड़ खर्च हो चुके हैं.

रेलवे ने नए कैलाश नगर की साइड में बने ब्रिज के गार्डर आखिरी पिलर तक पहुंचा दिए हैं. साथ ही रेलवे ट्रैक बिछाने के लिए मिट्टी की लेबलिंग का काम भी पूरा कर लिया गया है. रेलवे के साइड इंजीनियरों के अनुसार पुरानी रेलवे ट्रैक के लेबल तक एक फीट की मिट्टी और कंक्रीट की 10 परतें बिछाई गई हैं. यहां से लेकर सीलमपुर तक नई ट्रैक बिछाई जाएगी. जब नया ब्रिज बनकर तैयार हो जाएगा तो सीलमपुर के बाद ट्रेन वापस पुरानी पटरी पर ही दौड़ेगी.

अंग्रेजों द्वारा 1867 में बनाए इस पुराना यमुना पुल का निर्माण, 44,46,300 रुपये की लागत से किया गया था. देश के सबसे पुराने रेलवे पुलों में शामिल ये पुल देश के सबसे व्यस्त दिल्ली-हावड़ा रेल रूट का ट्रैक है. इंजीनियरिंग के इस बेजोड़ नमूने को बनाने की शुरूआत 1859 में हुई थी. छह साल में यह तैयार भी हो गया था. ब्रिटिश इंजीनियर रेंडल की डिजाइन और इंजीनियर सिवले की देखरेख में बने इस पुल पर ट्रेनों का आवागमन 15 अगस्त 1865 में शुरू हुआ था. इसके बाद से ही यह पुल अपने मजबूत कंधों पर दिल्ली-हावड़ा के बीच ट्रेन संचालन की जिम्मेदारी संभाले हुए है जबकि इसके बाद बने तमाम रेलवे पुलों की उम्र पूरी हो चुकी है.

वर्तमान में प्रतिदिन 200 से अधिक यात्री ट्रेनें और मालगाड़ियां इस पुल से गुजरती हैं. हालांकि सुरक्षा कारणों से यहां पैसेंजर ट्रेन को मात्र 15 किलोमीटर प्रति घंटे की स्पीड से ही गुजारने की अनुमति है. वहीं, अन्य सवारी व मालगाड़ी के लिए 30 किलोमीटर प्रति घंटे की गति प्रतिबंधित है। यमुना में बाढ़ आने या स्वतंत्रता दिवस आदि अवसरों पर सुरक्षा कारणों से इसका संचालन कुछ घंटों के लिए बंद कर दिया जाता है.

--आईएएनएस

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