भारत और ईरान (India-Iran Agreement) के बीच सोमवार को चाबहार (Chahbahar) के एक बंदरगाह के संचालन को लेकर समझौता हुआ है. इस समझौते को पाकिस्तान और चीन के लिए चुनौती के तौर पर देखा जा रहा है. इसके साथ ही अमेरिका भी इस समझौते से खफा दिख रहा है.
भारत और ईरान ने चाबहार के शाहिद बेहेस्ती बंदरगाह के संचालन के लिए समझौता किया है. ये समझौता इंडिया पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड और पोर्ट्स एंड मैरीटाइम ऑर्गेनाइजेशन ऑफ ईरान के बीच किया गया है. चाबहार में दो अलग-अलग बंदरगाह हैं - शाहिद बेहेश्ती और शाहिद कलंतारी. इसमें भारत शाहिद बेहेस्ती का संचालन करेगा.
इंडिया पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड साल 2018 से ही शाहिद बेहेस्ती बंदरगाह की जिम्मेदारी संभाल रहा है. जानकारी के अनुसार, ऐसा पहली बार है जब भारत किसी विदेशी बंदरगाह का संचालन करने जा रहा है. समझौते के तहत भारत शाहिद बेहेस्ती बंदरगाह का संचालन 10 सालों तक करेगा और फिर समझौता आगे बढ़ता जाएगा.
शाहिद बेहेस्ती बंदरगाह के संचालन के समझौते की नींव साल 2016 में पड़ी थी लेकिन अमेरिकी प्रतिबंधों और कई वजहों से ये टलता गया. समझौते के पूरे होने में हुई देरी की एक वजह भारत और ईरान की रिश्ते पर जमीं बर्फ को भी बताया जाता रहा है.
इस आर्टिकल में रेशा-रेशा समझेंगे चाबहार बंदरगाह समझौते से भारत को क्या हासिल होगा और पाकिस्तान और चीन को इससे क्या चुनौती मिलेगी, इसके साथ ही समझेंगे कि इस समझौते को पूरा होने में इतना वक्त कैसे लग गया?
चाबहार बंदरगाह को लेकर बातचीत साल 2003 से चल रही है. लेकिन लंबे वक्त से इस प्रोजेक्ट पर काम नहीं हो रहा था या काफी धीमी गति से हो रहा है. चाबहार बंदरगाह पश्चिम की ओर स्वेज नहर और पूर्व में मलक्का जलडमरूमध्य दोनों के माध्यम से व्लादिवोस्तोक की ओर मौजूदा रास्तों की दूरी को कम करता है.
सोमवार को भारत के जहाजरानी मंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने अपने ईरानी समकक्ष के साथ मिलकर इस समझौते पर साइन किया.
भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने इस समझौते को ईरान और भारत के द्विपक्षीय रिश्ते की 'नई इबारत' करार दिया है. रणधीर जायसवाल ने एक्स पर एक पोस्ट में लिखा, "इंडिया पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड और पोर्ट्स एंड मैरीटाइम ऑर्गनाइजेशन ऑफ ईरान के बीच चाबहार में शाहिद बेहेश्ती पोर्ट के संचालन के लिए दीर्घकालिक समझौते पर हस्ताक्षर किए गए. इस समझौते के जरिए अफगानिस्तान, मध्य एशिया और यूरेशिया के साथ क्षेत्रीय कनेक्टिविटी और भारत के संबंधों को बढ़ावा मिलेगा."
ईरान स्थित भारतीय दूतावास ने एक्स पर एक पोस्ट में लिखा, "चाबहार के विकास के लिए भारत ईरान के साथ है. हमने चाबहार से संबंधित विकास के लिए 250 मिलियन अमरीकी डॉलर के बराबर INR क्रेडिट विंडो की पेश किया है."
भारत के लिए क्यों अहम है चाबहार बंदरगाह?
चीन-पाकिस्तान मिलकर ईरान की सरहद से सटे ग्वादर बंदरगाह को लंबे वक्त से विकसित कर रहा है, इससे भारत के लिए इस इलाके में अपना अस्तित्व बनाए रखने के लिए चाबहार बंदरगाह जरूरी थी.
चाबहार बंदरगाह से गुजरात के कांडला बंदरगाह की दूरी करीब-करीब 1000 किलोमीटर दूर है. वहीं पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह से चाबहार बंदरगाह की दूरी (समुद्री रास्ते से) करीब 140 किलोमीटर है. चाबहार के जरिए भारत चीन और पाकिस्तान पर इस इलाके में नजर भी रख सकेगा और अफगानिस्तान में अपनी पहुंच बनाने के लिए भारत को पाकिस्तान पर आश्रित नहीं रहना होगा. पाकिस्तान हमेशा से अफगानिस्तान और उससे आगे भारत के जमीन मार्ग का विरोध करता रहा है. चाबहार बंदरगाह के बनने से चाबहार-जाहेदान रेलवे परियोजना का निर्माण फिर से हो सकेगा, जो लंबे वक्त से ठहरा हुआ था. 2016 में दोनों देशों ने चाबहार बंदरगाह के विकास और विस्तार के लिए इस रेलवे लाइन को मिलकर तैयार करने निर्णय लिया था. ये रेल लाइन अफगानिस्तान के जाहेदान तक जाएगी.
इसके साथ ही चाबहार बंदरगाह अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे (INSTC) प्रोजेक्ट के लिहाज से भी अहम है.
माना जा रहा है कि ये बंदरगाह भारत के लिए काफी अहम है, इससे भारत के कूटनीतिक और रणनीतिक हितों को खाद पानी मिलेगी. रॉयटर्स के मुताबिक, इंडिया पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड करीब 120 मिलियन डॉलर का निवेश चाबहार बंदरगाह समझौते के तहत करेगी. इस निवेश के अतिरिक्त 250 मिलियन डॉलर की वित्तीय मदद भी दी जाएगी. इससे ये समझौता करीब 370 मिलियन डॉलर का हो जाएगा.
भारत के लिए इस बंदरगाह से क्या फायदे हैं इसे लेकर मध्य पूर्व मामलों के जानकार क़मर आगा ने क्विंट हिंदी को बताया, "चाबहार बंदरगाह इसलिए भी अहम है क्योंकि सेंट्रल एशिया में दाखिल होने के लिए ईरान गेटवे है. यहां से फिर पूर्वी यूरोप और रूस तक रास्ता आसान हो जाता है. इसके अलावा गुजरात के कांडला बंदरगाह से चाबहार की दूरी बहुत ज्यादा नहीं है, ये दूरी करीब चार दिन के समुद्री रास्ते की है. ये ओमान की खाड़ी के पास ही है. वहीं ग्वादर बंदरगाह से इसकी दूरी बहुत ज्यादा नहीं है. अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे (INSTC) को जोड़ने के लिहाज से ये बंदरगाह अहम है. मिसाल के तौर पर भारत से कोई भी सामान जहाज के जरिए चाबहार चला जाएगा. उसके बाद वहां से INSTC के रेल-रोड कनेक्टिविटी के जरिए आर्मेनिया, अजरबैजान, कजाकिस्तान , किर्गिज गणराज्य , ताजिकिस्तान , तुर्कमेनिस्तान और उज़्बेकिस्तान और फिर रूस तक हमारी पहुंच बन जाएगी."
विदेश मामले के जानकार रॉबिंद्र सचदेव ने क्विंट हिंदी से कहा, "भारत के लिए चाबहार समझौते के कई फायदे हैं. सबसे अव्वल तो सेंट्रल एशिया और रूस से लॉजिस्टिक और ट्रेड के लिए भारत के लिए नए रास्ते खुल जाएंगे. चाबहार के बनने से यूरोप के साथ भी कनेक्टिविटी हो जाएगी, इस रास्ते से स्वेज नहर के मुकाबले 15 दिनों का समय बच सकेगा. दूसरी बात ये है कि पाकिस्तान ने चीन के साथ मिलकर सेंट्रल एशिया में भारत को ब्लॉक कर रखा है. भू-राजनीतिक तौर पर चाबहार की वजह से इस इलाके में भारत के एक्सेस मजबूत हो जाएगा."
सेंट्रल एशिया का क्षेत्र लैंडलॉक रीजन है यानी चारों ओर जमीन से घिरा हुआ है. यहां पहुंच बनाने के लिए रूस या तुर्किए, अजरबैजान से होकर गुजरना पड़ता है. इस इलाके में खनिज पदार्थ भरपूर मात्रा में है.
रॉबिंद्र सचदेव कहते हैं, "एक ओर चीन बीआरआई से ग्वादर बना रहा है तो भारत की ओर से इसे चीन को काउंटर के तौर पर देखा जाता है. इसके अलावा भारत और ईरान के ये समझौता दर्शाता है कि भारत अपने कूटनीतिक और रणनीतिक फैसले लेने में कितना ज्यादा स्वतंत्र है, वह भी ऐसे वक्त पर जब वैश्विक राजनीति अपने खराब दौर से गुजर रही है. मध्य पूर्व में हो रहे तनाव के बावजूद भारत ने ईरान के साथ इस समझौते को पूरा किया है."
"अगर भारत ये समझौता न करता तो चीन बाजी मार ले जाता"
चीन ने ईरान में 400 बिलियन डॉलर का निवेश किया हुआ है. चीन ने इस निवेश को करते वक्त जाहिर किया था कि इस निवेश के जरिए वह सेंट्रल एशिया क्षेत्र में बड़ी भूमिका निभाने की बढ़ती महत्वाकांक्षा पर काम कर रहा है जो दशकों से अमेरिका के लिए रणनीतिक रूप से सक्रिय रहा है. चीन और ईरान के बीच 400 बिलियन डॉलर के निवेश के जरिए चीन ईरान में अगले 25 वर्षों में बैंकिंग, दूरसंचार, बंदरगाह, रेलवे, स्वास्थ्य देखभाल और सूचना प्रौद्योगिकी सहित दर्जनों क्षेत्रों में भागीदारी बनाएगा.
रॉबिंद्र सचदेव कहते हैं, " भारत जानता था कि अगर वह इस समझौते (चाबहार बंदरगाह) में देरी करता है तो यह चीन के हाथ में चला जाएगा. क्योंकि भारत और ईरान के बीच इस बंदरगाह के विकास को लेकर इस बात पर मतभेद थे. ईरान भारत पर बंदरगाह के विकास में देरी के आरोप लगाता रहा है. ऐसे में भारत अगर ये समझौता न करता तो चीन बाजी मार ले जाता."
ईरान भी चाहता है कि वह सेंट्रल एशिया में एक संतुलन बनाकर रखे और भारत के साथ रणनीतिक साझेदारी कर वह चीन को दूर रखना चाहता है. रूस भी नहीं चाहता है कि इस क्षेत्र में चीन हर जगह अपना अस्तित्व बनाए रखे.क़मर आगा, विदेश मामलों के जानकार
अमेरिका और भारत के रिश्ते में खटाई, चाबहार तक असर?
भारत-ईरान के बीच चाबहार बंदरगाह पर हुए समझौते के बाद सोमवार, "13 मई को अमेरिकी विदेश विभाग ने कहा था, "ईरान के साथ व्यापारिक सौदों पर विचार करने वाली किसी भी संस्था को प्रतिबंधों के संभावित जोखिम के बारे में पता होना चाहिए."
हालांकि अमेरिका के ये रुख उसके 2018 के बयानों से उलट है जब उसने कहा था कि वह इस समझौते में किसी भी तरह के दखल से छूट देता है क्योंकि इससे अफगानिस्तान को फायदा पहुंच रहा है. गौरतलब है कि उस वक्त अफगानिस्तान में अमेरिका समर्थित सरकार थी लेकिन मौजूदा वक्त में अफगानिस्तान में तालिबान की सरकार है.
चाबहार बंदरगाह पर अमेरिका की टिप्पणी पर विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा:
"मैंने कुछ टिप्पणियां देखीं जो की गई थीं, लेकिन यह संवाद करने, समझाने और लोगों को यह समझाने का सवाल है कि यह वास्तव में सभी के लाभ के लिए है. मुझे नहीं लगता कि लोगों को इसके बारे में संकीर्ण दृष्टिकोण रखना चाहिए और उन्होंने अतीत में ऐसा नहीं किया है. यदि आप अतीत में चाबहार के प्रति अमेरिका के अपने रवैये को भी देखें, तो अमेरिका इस तथ्य की सराहना करता रहा है कि चाबहार की व्यापक प्रासंगिकता है. इसलिए हम इस पर काम करेंगे."
रॉबिंद्र कहते हैं, "अमेरिकी ईरान की वजह से इस समझौते को लेकर कई बार आगाह करता रहा है. फिलहाल अमेरिका की नीति है कि वो ईरान के साथ किसी देश या कंपनी को व्यापार या किसी तरह के समझौता करने पर प्रतिबंध लगाने की बात कहता है. लेकिन बीते दिन अमेरिकी विदेश विभाग का जो बयान सामने आया उसमें कोई नई बात नहीं है. अमेरिकी प्रवक्ता ने अमेरिकी नीति को दोहराया है, लेकिन कई बार अमेरिका किसी भी मुद्दे पर अपनी नीतियों को नजरअंदाज करता रहा है और अपने भू-राजनीतिक हितों को तरजीह देता है. फिलहाल अमेरिका के लिए ये बंदरगाह बनने से चीन पर नकेल कसने में मदद मिलेगी."
चाबहार समझौता होने में इतना वक्त क्यों लगा?
चाबहार बंदरगाह को लेकर भारत और ईरान के बीच साल 2003 में समझौते की नींव रखी गई. फिर अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में इस बंदरगाह को लेकर एक समझौता तय हुआ, हालांकि इसमें कई प्रोजेक्ट शामिल थे. लेकिन अमेरिकी प्रतिबंध की वजह से ये प्रोजेक्ट लंबे वक्त तक ठंडे बस्ते में रहा.
इसके बाद साल 2015 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार में इस प्रोजेक्ट को लेकर दोबारा सुगबुगाहट हुई. साल 2018 में इंडिया पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड को चाबहार पोर्ट के ऑपरेशन का जिम्मा मिला. लेकिन ये लंबे वक्त के लिए समझौता नहीं था.
रॉबिन्द्र सचदेव कहते हैं, "ईरान और भारत के बीच इस समझौते की शर्तों पर सहमति नहीं बन पा रही थी. भारत चाहता था कि लंबी अवधि के लिए चाहबहार बंदरगाह का संचालन और ऑपरेशन उसके हाथ में रहे लेकिन ईरान इसपर सहमत नहीं हो पा रहा था. इससे पहले के समझौतों में भारत को सिर्फ ऑपरेशन्स का जिम्मा दिया जा रहा था, वह भी करीब डेढ़ साल के समझौते की अवधि थी. इसके अलावा ईरान का मानना था कि भारत इस बंदरगाह के विकास को लेकर समय लगा रहा है."
रॉबिन्द्र सचदेव कहते हैं,
"समझौते को पूरा होने में हुई देरी के पीछे एक वजह अमेरिकी प्रतिबंध है. अमेरिकी प्रतिबंध की वजह से भारत को इस बंदरगाह को बनाने के लिए जरूरी मशीनरी नहीं मिल पा रही थी. ये मशीनरी पश्चिमी यूरोपीय देश जर्मनी, हॉलैंड जैसे देशों के पास थी. ये देश अपनी मशीनरी देने से हिचक रहे थे क्योंकि अगर वे ईरान में बंदरगाह बनाने के लिए अपनी मशीनरी देते तो उनपर अमेरिकी प्रतिबंध लग जाता."
क़मर आगा भी ऐसा ही मानते हैं, "अमेरिकी प्रतिबंध की वजह से काम लंबे वक्त तक अटका रहा है."
क्या चाबहार बंदरगाह बनकर तैयार है?
चाबहार में दो बंदरगाह हैं, शाहिद बेहेश्ती और शाहिद कलंतारी. भारत के साथ समझौते में शाहिद बेहेश्ती बंदरगाह के संचालन का जिम्मा इंडिया पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड को मिला है. फिलहाल ये बंदरगाह विकसित किया जा रहा है. हालांकि साथ-साथ बंदरगाह का परिचालन भी जारी है. फिलहाल इस बंदरगाह की क्षमता 8.4 मिलियन टन सालाना है लेकिन जब यह पूरी तरह तैयार से हो जाएगा तब इसकी क्षमता 80-86 मिलियन टन सालाना हो जाएगी.
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