भारत के पड़ोसी देश श्रीलंका के जैसा ही हाल मिडिल ईस्ट के देश इराक (Iraq Political Crisis) में देखने को मिला. शक्तिशाली इराकी मौलवी मुक्तदा अल-सदर के सैकड़ों समर्थकों ने बुधवार, 28 जुलाई को राजधानी बगदाद के उच्च सुरक्षा वाले ग्रीन जोन में स्थित संसद पर धावा बोला और अंदर पहुंचकर डांस किया, गाना गाया और ईरान विरोधी नारे भी लगाए.
चलिए जानते हैं कि इराक में क्या हो रहा है और इराक में राजनीतिक अराजकता इस हद तक कैसे पहुंच गयी.
सबसे पहले आपको बता दें कि इराक में अक्टूबर 2021 में हुए संसदीय चुनावों को नौ महीने से अधिक का समय गुजर चुका है, लेकिन इसके बावजूद यहां के नेता आम सहमति बनाने और सरकार बनाने में असमर्थ रहे हैं.
इराक का यह राजनीतिक संकट उस समय चरम पर पहुंच गया, जब भ्रष्टाचार और प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवारों में से एक के विरोध में प्रदर्शनकारियों ने बुधवार को इराकी संसद पर धावा बोल दिया. इनमें से अधिकतर इराक के सबसे शक्तिशाली लोगों में से एक- शिया नेता मौलवी मुक्तदा अल-सदर के समर्थक थे.
संसद में सरकार बनाने में विफल रहने के बाद अल-सदर ने जून में अपने संसदीय ब्लॉक को सामूहिक रूप से इस्तीफा देने का आदेश दिया था.
संसद क्यों पहुंचे प्रदर्शनकारी?
दरअसल इराक के ये सैकड़ों प्रदर्शनकारी प्रधानमंत्री पद के लिए एक ईरान समर्थित गठबंधन के उम्मीदवार- मोहम्मद शिया अल-सुदानी के नामांकन का विरोध कर रहे थे.
मोहम्मद शिया अल-सुदानी इराक के पूर्व मंत्री और पूर्व-प्रांतीय गवर्नर हैं. उन्हें इराक के प्रधानमंत्री पद के लिए ईरान-समर्थक गठबंधन- कोर्डिनेशन फ्रेमवर्क ने अपना उम्मीदवार बनाया है. हालांकि दूसरी तरफ मौलवी अल-सदर ने उनकी उम्मीदवारी को खारिज कर दिया है.
प्रदर्शनकारी संसद में अल-सदर की तस्वीर लिए पहुंचे थे और उन्होंने अल-सदर के समर्थन में नारे भी लगाए. प्रदर्शनकारियों ने संसद को तभी खाली किया जब मौलवी अल-सदर ने ट्विटर पर लिखा कि मुझे आपका मैसेज मिल गया है, अब आप घर चले जाइए.
चुनाव के 9 महीने बाद भी इराक में सरकार क्यों नहीं बन पाई?
इराक में अक्टूबर 2021 में हुए चुनाव के बाद से नई सरकार नहीं बन पाई है. इराक के 329 सीटों वाली संसद में अल-सदर के गुट ने 74 सीटें जीतीं हैं, जिससे यह सबसे बड़ा गुट है.
चुनाव में शानदार प्रदर्शन के बाद अल-सदर ने इराक में सुन्नी मुसलमानों और कुर्दों जैसे विभिन्न संप्रदायों का प्रतिनिधित्व करने वाली "राष्ट्रीय बहुमत वाली सरकार" बनाने की बात की. लेकिन उन्होंने अपने साथ अनिवार्य रूप से शिया गुट- कोर्डिनेशन फ्रेमवर्क को दरकिनार कर दिया, जिसमें उनके पुराने दुश्मन और पूर्व प्रधान मंत्री नूरी अल मलिकी हैं.
हालांकि वो ऐसा नहीं कर सके और इराकी संसद द्वारा सरकार बनाने में बार-बार विफल होने के लगभग आठ महीने बाद अल-सदर ने अपने सांसदों को वापस बुला लिया, जिसमें उनकी पार्टी के 74 सांसदों को इस्तीफा देने का आदेश दिया गया.
मालूम हो कि अल-सदर खुद को इराक में ईरानी और अमेरिकी, दोनों के प्रभाव का आलोचक बताते हैं. एक्सपर्ट्स का कहना है कि यदि अल-सदर के नेतृत्व में "राष्ट्रीय बहुमत वाली सरकार" बन जाती तो यह इराक की मुहाससा (कोटा-आधारित) व्यवस्था (muhasasa arrangement) को कमजोर करती. मुहाससा व्यवस्था इराक में शिया, सुन्नी और कुर्द समूहों के बीच मिलकर सत्ता चलाने की बात करती है.
इसके अलावा यह इराक में ईरान के राजनीतिक प्रभाव के लिए भी एक बड़ा झटका होगा, क्योंकि ईरान आमतौर पर शिया समूहों का समर्थन करता है जो बहुमत बनाने के लिए अन्य शिया मुसलमानों के साथ आए हैं.
अल-सदर की चुनावी जीत के बावजूद इराकी कानून के अनुसार यहां राष्ट्रपति का चुनाव करने के लिए दो-तिहाई के बहुमत की आवश्यकता होती है, जो उनके पास नहीं था. इराक में राष्ट्रपति के चुने जाने के बाद ही सरकार बन सकती है.
इराक में आगे क्या हो सकता है?
अपने गुट के सांसदों को इस्तीफे का आदेश देकर मौलवी अल-सदर ने सरकार बनाने के लिए प्रतिद्वंदी कॉर्डिनेशन फ्रेमवर्क के लिए रास्ता खोल दिया है. ऐसा इसलिए है, क्योंकि कायदे से इराक में अगर कोई सांसद इस्तीफा देता है, तो चुनाव में दूसरे स्थान पर रहने वाला उम्मीदवार को वह खाली सीट दे दी जाती है.
हालांकि बुधवार को अल-सदर के समर्थकों ने जब संसद पर धावा बोला, अल-सदर ने यह दिखा दिया कि उनको कम नहीं आंका जा सकता और अगर सरकार अल-सुदानी के नेतृत्व में कॉर्डिनेशन फ्रेमवर्क की सरकार बनाती भी है तो उसकी राह आसान नहीं होने वाली.
अल-सदर ने दिखाया है कि भले ही उनके समर्थक संसद में नहीं बैठे हों, लेकिन उन्हें इराक के राजनेताओं द्वारा नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है, और वो अपनी बात रखने के लिए कभी भी प्रदर्शनकारियों को इकट्ठा कर सकते हैं.
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