पाकिस्तान की सियासत से जुड़े किस्से में हम आपको बताएंगे कि भारत और पाकिस्तान जब एक साथ ही आजाद हुए तो फिर पाकिस्तान को पहला आम चुनाव कराने में 23 साल क्यों लग गए जबकि भारत में 1951-52 में ही चुनाव करा लिए गए और एक स्थिर सरकार भी बना ली गई
हम आपके लिए सीरीज के रूप में पाकिस्तान की सियासत से जुड़े कुछ रोचक किस्से लेकर आए हैं.
भारत और पाकिस्तान का बंटवारा एक साथ हुआ. पाकिस्तान अपनी आजादी को 14 अगस्त को मनाता है तो वहीं भारत में 15 अगस्त को आजादी का जश्न मनाया जाता है. संविधान की बात करें तो भारत में आजादी के 2 साल 11 महीने और 18 दिन बाद संविधान बनकर तैयार हो गया था. वहीं पाकिस्तान का संविधान 1956 में बनकर पूरा हुआ.
पाकिस्तान का पहला प्रांतीय चुनाव
पाकिस्तान का पहला आम चुनाव 1970 में हुआ. लेकिन इससे पहले चार प्रांतीय चुनाव (Provincial Election) भी हुए थे.
मार्च 1951- पंजाब
नवंबर- दिसंबर: नार्थ वेस्ट फ्रंटियर प्रोविंस ( अब खैबर पख्तूनख्वा )
मई 1953- सिंध
अप्रैल 1954- पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश)
इन चुनावों के बाद 1956 में पाकिस्तान का संविधान बनकर तैयार हुआ. संविधान के मुताबिक तय हुआ कि देश में पहला आम चुनाव नवंबर 1958 में कराए जांएगे.लेकिन चुनाव को फरवरी 1959 तक टाल दिया गया, लेकिन इसी बीच 7 अक्टूबर 1958 के दिन देश में मार्शल लॉ लगा दिया गया.
मार्शल लॉ लगने के बाद राष्ट्रीय और प्रांतीय सरकारों को बर्खास्त कर दिया गया और सभी राजनीतिक दलों को भंग कर दिया. तब पाकिस्तान के राष्ट्रपति सैयद इस्कंदर अली मिर्जा ने मोहम्मद अयूब खान को सेनाध्यक्ष नियुक्त कर दिया था.
अप्रत्यक्ष चुनाव की शुरुआत
सेनाअध्यक्ष बनने के महज 20 दिन बाद जनरल अयूब खान ने राष्ट्रपति इस्कंदर मिर्जा का तख्तापलट कर दिया और खुद राष्ट्रपति बन गए.
इसके बाद साल 1960 में अयूब खान पर चुनाव कराने का दबाव बढ़ने लगा. अयूब खान ने चुनाव कराने के लिए एक नया नियम लागू किया. इस नियम के तहत पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिमी पाकिस्तान को 80 हजार छोटे-छोटे निर्वाचन क्षेत्रों में बांट दिया. इन छोटे निर्वाचन क्षेत्रों में से हर एक में औसतन 600 मतदाता थे.
600 मतदाता मिलकर एक सदस्य चुनते थे. इसके साथ ही पाकिस्तान में पहले स्थानीय निकाय चुनाव दिसंबर 1959 और जनवरी 1960 के बीच हुए थे. चूंकि राष्ट्रपति अयूब खान ने राजनीतिक गतिविधियों पर प्रतिबंध लगा दिया था और पार्टियों को अवैध घोषित कर दिया था, इसलिए चुनाव गैर-पार्टी आधार पर आयोजित किए गए थे. यानी उम्मीदवार का ताल्लुक किसी पार्टी से नहीं था और वह निर्दलीय चुनाव लड़ते थे.
देश भर में जिन 80 हजार लोगों को स्थानीय निकायों के जरिए चुना गया था, उनका एक निर्वाचक मंडल (Electoral College) बनाया गया. भारत में राष्ट्रपति का चुनाव इसी प्रक्रिया के जरिए होता है.
1960 के अप्रत्यक्ष चुनाव (Indirect Election) में पाकिस्तान के निर्वाचक मंडल के सदस्यों से पूछा गया, "क्या आपको राष्ट्रपति फील्ड मार्शल हिलाल-ए- जुरात मोहम्मद अयूब खान पर भरोसा है?
अयूब के पक्ष में 95.6 फीसद वोट पड़े और वह एक बार फिर से पाकिस्तान के राष्ट्रपति बन गए. इसके साथ ही अयूब खान को जनता ने एक ताकत दे दी थी जिसके दम पर वह पाकिस्तान की संविधान में बे-रोकटोक बदलाव कर सकते थे.
इसके बाद साल 1969 तक अयूब खान राष्ट्रपति पद पर बने रहे. इस बीच स्थानीय निकाय चुनावों के जरिए पाकिस्तान में राष्ट्रपति पद के लिए 2 चुनाव हुए और दोनों बार अयूब खान ने जीत दर्ज की.
8 जून 1962 को पाकिस्तान के जनरल याह्या खान ने अयूब खान का तख्तापलट दिया. लेकिन इसके साथ ही याह्या खान ने पाकिस्तान में आम चुनाव कराने का एलान किया.
पहला आम चुनाव और देश के दो धड़े
28 जुलाई 1969 को याह्या खान ने पाकिस्तान के चीफ जस्टिस अब्दुल सितार को मुख्य चुनाव आयुक्त बना दिया.
पाकिस्तान चुनाव आयोग ने 5 अक्टूबर को 1970 को चुनाव की तारीख दे दी. लेकिन पूर्वी पाकिस्तान में बाढ़ आने की वजह चुनाव को टालना पड़ा और 7 दिसंबर को देश के चुनाव की नई तारीख का ऐलान किया गया.
बहरहाल पूरे पाकिस्तान की 300 सीटों पर चुनाव कराए गए. चुनाव की नतीजों की बात करें तो पूर्वी पाकिस्तान की पार्टी आवामी लीग को 160 सीटें हासिल हुईं और पश्चिमी पाकिस्तान की पार्टी पाकिस्तान पीपुल्स लीग को महज 81 सीटें मिली.
नतीजों के बाद जनरल राष्ट्रपति याह्या खान आवामी पार्टी के शेख मुजीब रहमान को सत्ता सौंपने में देरी कर रहे थे और इस वजह से पूर्वी पाकिस्तान में हिंसा भड़क उठी.
हिंसा भड़कने के बाद पाकिस्तान सेना ने ऑपरेशन सर्चलाइट शुरु किया और शेख मुजीब रहमान को गिरफ्तार कर लिया. इसके बाद भारत की दखल के बाद पाकिस्तान दो हिस्सों में बंट गया.
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