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फ्लिपकार्ट और ओला: मुकाबले से डर गए क्या?

विदेश से फंड तो भरपूर लो, लेकिन विदेशी कंपनियों को पनपने का मौका मत दो.

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  • ऑनलाइन बिजनेस कंपनी फ्लिपकार्ट और ऐप बेस्ड टैक्सी सर्विस कंपनी ओला दोनों चाहती हैं सरकार उन्हें विदेशी काॅम्पटीशन से बचाने के लिए नियमों का सहारा दे.
  • फ्लिपकार्ट में 3.2 अरब डॉलर का विदेशी फंड है. मॉर्गन स्टेनली ने फ्लिपकार्ट का वैल्युएशन एक साल में चौथी बार घटाकर सिर्फ 5.4 अरब डॉलर कर दिया है.
  • फ्लिपकार्ट में बड़ी हिस्सेदारी विदेशी है, इसमें फाउंडर सचिन बंसल और बिन्नी बंसल के पास मिलाकर सिर्फ 30 परसेंट हिस्सेदारी है.
  • ओला में भाविश और उनके पार्टनर अंकित भाटी की सिर्फ 10 परसेंट हिस्सेदारी है. बाकी ज्यादातर हिस्सेदारी विदेशी फंड हाउस की है.

ऑनलाइन बिजनेस कंपनी फ्लिपकार्ट और ऐप बेस्ड टैक्सी सर्विस कंपनी ओला दोनों चाहती हैं सरकार उन्हें विदेशी काॅम्पटीशन से बचाने के लिए नियमों का सहारा दे. बंगलुरू में टेक्नोलॉजी फोरम में फ्लिपकार्ट के फाउंडर सचिन बंसल और ओला के को-फाउंडर और सीईओ भाविश अग्रवाल दोनों ने कहा कि घरेलू स्टार्टअप्स को ताकतवर विदेशी कंपनियों से बचाने के लिए सरकार नए नियम कानून बनाकर मदद करे.

काॅम्पटीशन से घबराहट तो नहीं?

सवाल ये है कि खुद ही विदेशी फंड के सहारे चल रही ये दोनों कंपनियों को अब अचानक सरकार के सहारे की जरूरत क्यों महसूस हो रही है? अब तक स्टार्टअप हर मंच पर यही कहते रहे हैं कि स्टार्टअप की ग्रोथ के लिए लाइसेंस राज खत्म होना चाहिए, नियम कम से कम होना चाहिए. कहीं ओला और फ्लिपकार्ट काॅम्पटीशन से घबरा तो नहीं गए हैं?

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एक वक्त ई-कॉमर्स में सबसे तूफानी रफ्तार से बढ़ने वाली कंपनी फ्लिपकार्ट अब अमेरिकी ऑनलाइन कंपनी अमेजन के सामने असहाय नजर आ रही है. फ्लिपकार्ट में 3.2 अरब डॉलर का विदेशी फंड है.

लेकिन ग्रोथ के मामले में ये अमेजन से पिछड़ रही है. अमेजन ने तो भारत में ग्रोथ की भारी उम्मीदों की वजह से अगले कुछ सालों में 5 अरब डॉलर निवेश का ऐलान किया है. लेकिन फ्लिपकार्ट का मार्केट शेयर लगातार गिर रहा है.

मॉर्गन स्टेनली ने फ्लिपकार्ट का वैल्युएशन एक साल में चौथी बार घटाकर सिर्फ 5.4 अरब डॉलर कर दिया है. पिछले साल जून-जुलाई में मॉर्गन स्टेनली ने ही फ्लिपकार्ट को 15.5 अरब डॉलर की कंपनी बताया था.

खराब प्रदर्शन से वैल्युएशन गिर रहा है और इससे कंपनी को अब विदेश से नया फंड जुटाना मुश्किल हो गया है.

अभी भी फ्लिपकार्ट में बड़ी हिस्सेदारी विदेशी है, इसमें फाउंडर सचिन बंसल और बिन्नी बंसल के पास मिलाकर सिर्फ 30 परसेंट हिस्सेदारी है. ऐसे में फ्लिपकार्ट का सरकार से प्रोटेक्शन मांगना हैरानी की बात है.

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परफाॅर्मेंस के मोर्चे पर कमजोर

दरअसल, ऐप बेस्ड टैक्सी सर्विस कंपनी ओला और फ्लिपकार्ट दोनों ने नए स्मार्ट आइडिया की वजह से फंड तो खूब जुटा लिए, पर परफाॅर्मेंस के मोर्चे पर कमजोर साबित हुए हैं. शुरुआती सफलता के बाद दोनों कंपनियां अपने प्रतिद्वंदियों से पिछड़ रही हैं.

अमेजन की आक्रामक मार्केट स्ट्रैटेजी के सामने फ्लिपकार्ट को टिकने में दिक्कत हो रही है. जबकि ओला को अमेरिकी कंपनी ऊबर के सामने परेशानी हो रही है.

ओला और फ्लिपकार्ट की दलील है कि चीन ने भी घरेलू कंपनियों के हिसाब से स्टार्टअप के नियम बनाए हैं. जिसकी वजह से ऊबर को चीन से अपना कारोबार समेटना पड़ा, क्योंकि वो नियम-कानून की वजह से चीन के बाजार में टिक नहीं पाई.

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दबाव बनाने के लिए अजीब सी दलील



विदेश से फंड तो भरपूर लो, लेकिन विदेशी कंपनियों को पनपने का मौका मत दो.
सचिन बंसल (बाएं) और बिन्नी बंसल (दाएं). (फोटो: Flipkart)

फ्लिपकार्ट के सचिन बंसल तो दबाव बनाने के लिए अजीब सी दलील भी दे रहे हैं कि अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप के प्रेसिडेंट बनने और BREXIT के बाद अमेरिका और ब्रिटेन में घरेलू कंपनियों और स्थानीय लोगों को तरजीह मिलेगी, उसी तरह भारत में भी लोकल कंपनियों को बचाने के नियम बनने चाहिए.

ओला के को-फाउंडर भाविश अग्रवाल की दलील है कि चीन में कंज्यूमर इंटरनेट सेक्टर में घरेलू सेक्टर को नियमों के जरिए प्रोटेक्ट किया जा रहा है, और भारत को भी यही तरीका अपनाना चाहिए.

मतलब विदेश से फंड तो भरपूर लो, लेकिन विदेशी कंपनियों को पनपने का मौका मत दो.

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डबल स्टैंडर्ड क्यों?

खुद ओला के भाविश ने तो जमकर विदेशी फंड जुटाया. हालात ये है कि ओला में भाविश और उनके पार्टनर अंकित भाटी की सिर्फ 10 परसेंट हिस्सेदारी है. बाकी ज्यादातर हिस्सेदारी विदेशी फंड हाउस की है. लेकिन अब उन्हें लग रहा है कि ग्लोबल कंपनियां भारत में जो बड़े पैमाने पर भारी निवेश कर रही हैं वो भारत के बाजारों को नुकसान पहुंचा रहा है.

भाविश जी जब ओला में विदेशी निवेश है तो डबल स्टैंडर्ड क्यों?

निवेश का पैटर्न देखा जाए तो ओला और फ्लिपकार्ट दोनों एक तरह से विदेशी कंपनियां हैं. फ्लिपकार्ट तो सिंगापुर में रजिस्टर्ड है.

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दरअसल हुआ ये है कि फ्लिपकार्ट और ओला में भारी निवेश करने वाले निवेशकों ने अब हिसाब-किताब मांगना शुरू कर दिया है. वो खर्च कम करने का दबाव बना रहे हैं और पूछ रहे हैं कि मुनाफा कब से कमाना शुरू करेंगे?

काॅम्पटीशन ज्यादा होने और परफॉर्मेंस खराब होने की वजह से निवेशक अपनी हिस्सेदारी भी बेच नहीं पा रहे हैं क्योंकि सही कीमत नहीं मिल रही है.

प्रदर्शन और क्वालिटी सुधारने पर हो फोकस

लेकिन विदेशी निवेशकों को आकर्षित करने में जुटी मोदी सरकार के लिए ऐसे कोई भी नियम बनाने बहुत मुश्किल होंगे, क्योंकि विदेशी निवेशक इसका जमकर विरोध करेंगे.

फ्लिपकार्ट और ओला को नियमों का सहारा मांगने के बजाए अपना प्रदर्शन और क्वालिटी सुधारने पर फोकस करना चाहिए. आखिर अमेजन और ऊबर का मुकाबला क्वालिटी और अच्छे परफॉर्मेंस से ही किया जा सकता है, ना कि सरकारी सहारे से.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं. इस आलेख में प्रकाशित विचार उनके अपने हैं. आलेख के विचारों में क्‍व‍िंट की सहमति होना जरूरी नहीं है.)

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