ये एक ऐसा गजल है जो तमाम प्रदर्शनों, अवसरों पर शासन-प्रशासन के खिलाफ अपने 'हक-हकूक की आवाज' बनकर गूंजा. अब ऐसी नई पंक्तियां दोबारा सुनने को नहीं मिलेंगी. 11 अगस्त को आशिकी, हुकूमत, जिंदगानी पर सैंकड़ों नज्म छोड़ गए राहत इंदौरी ने अपनी आखिरी सांसे लीं.
आज उर्दूनामा के इस खास एपिसोड में याद करेंगे राहत इंदौरी को जिनके शेर सालों से गूंजते रहे हैं और आगे भी गूंजते रहेंगे.
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टॉपिक: उर्दू शायरी urdunama
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