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गुलजार : शब्दों से अहसासों की पेंटिंग

गुलजार साहब ने नेशनल अवार्ड से लेकर हॉलीवुड के ऑस्कर और ग्रैमी तक जीते हैं.

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चाहे फिल्मों की कहानियां हों, गाने और डायलॉग लिखना हो, कोई किताब लिखनी हो या फिर फिल्म की या किसी ऐड फिल्म की डायरेक्शन. गुलजार इन में जिस भी चीज के लिए अपना कलम निकालें समझिए उसका 'कविता' की तरह होना लाजमी है.

रात-भर सर्द हवा चलती रही, रात-भर हमने अलाव तापा. मैंने माज़ी से कई ख़ुश्क सी शाख़ें काटीं, तुम ने भी गुज़रे हुए लम्हों के पत्ते तोड़े.

गोले, बारूद, आग, बम, नारे

बाज़ी आतिश की शहर में गर्म है

मुल्क की तकसीम से पहले, पाकिस्तान में सूबा पंजाब के झेलम जिले में, 18 अगस्त 1934 में गुलज़ार पैदा हुए. उनका पैदाइशी नाम सम्पूर्ण सिंह कालरा रखा गया. लिखने का शौक बचपन से था लेकिन इनके पिता, माखन सिंह कालरा ने हमेशा तल्ख अंदाज में विरोध ही किया. लेकिन पिता के विरोध के बावजूद, विभाजन के बाद पाकिस्तान से हिंदुस्तान आना, और शायर बनने से पहले गैराज में काम करते-करते पेंटिंग करने की तरफ रुझान बढ़ना - गुलज़ार की ये कहानी सुनिए उर्दूनामा के इस इस खास एपिसोड में...

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