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‘क़ुरबतें’ - तन्हाई की ऐसी दवा जिसके ख्याल ही से राहत है 

उर्दूनामा के इस एपिसोड में ‘वस्ल’ और ‘क़ुरबत’ के बीच के फासले को समझिए फबेहा सय्यद के साथ.

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होस्ट, लेख, और साउंड डिजाइन: फबेहा सय्यद

एडिटर: शैली वालिया

म्यूजिक: बिग बैंग फज

महबूब का जिंदगी में ना मिलना शायर के लिए सबसे बड़ी ट्रैजेडी की वजह होता है. इसलिए शायर को कभी ना खत्म होने वाली क़ुरबतों यानी नजदीकियों के सिलसिला के ही तसव्वुर से बड़ा सुकून मिलता है. मिसाल के तौर पर, इस शेर में क़ुरबत शब्द नहीं है लेकिन शायर अपने महबूब के नजदीक आने की ख्वाहिश करता है. शकील बदायुंनी लिखते हैं:

कैसे कह दूं की मुलाकात नहीं होती

रोज मिलते हैं मगर बात नहीं होती

और महबूब से मिलने की आरजू जब हकीकत बन जाती है तो उसे 'विसाल' या 'वस्ल' कहते हैं, जिसका मतलब होता है मिलन या मुलाकात जो शायर की सबसे बड़ी ख्वाहिश होती है. कई बार 'वस्ल' और 'क़ुरबत' के इस्तेमाल को लेकर कन्फ्यूजन होना लाजमी है क्यूंकि दोनों ही शब्द महबूब से फासला कम होने की कैफियत बयान करते हैं.

ऊर्दूनामा के इस एपिसोड में ना सिर्फ 'क़ुरबतों' के मायने जानेंगे, बल्कि शायर के नज़दीक इस कैफियत की क्या एहमियत है, उस पर भी बात करेंगे. साथ ही 'वस्ल' और 'क़ुरबत' के बीच के फासले को भी समझने की कोशिश करेंगे.

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