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CWG: वाराणसी से बर्मिंघम तक, विजय यादव ने कॉमनवेल्थ गेम्स में फहराया विजय पताका

Commonwealth Games 2022: कॉमनवेल्थ गेम्स में वाराणसी के लाल विजय यादव ने जूडो में ब्रॉन्ज़ मेडल जीता है.

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CWG: वाराणसी से बर्मिंघम तक, विजय यादव ने कॉमनवेल्थ गेम्स में फहराया विजय पताका
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कॉमनवेल्थ गेम्स 2022 (Commonwealth Games 2022) में वाराणसी के विजय यादव (Vijay Yadav Win Bronze) ने जूडो में ब्रॉन्ज मेडल अपने नाम किया. उनकी इस उपलब्धि पर पूरे देश को गर्व है. लेकिन विजय की इस सफलता के पीछे संघर्ष की एक लंबी दास्तान है. वाराणसी से बर्मिंघम का सफर इतना आसान नहीं था. विजय ने अपने जुनून से सभी बाधाओं को पार कर देश का नाम रौशन किया है.

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जिद और जुनून की कहानी

विजय यादव वाराणसी के सुलेमापुर गांव के रहने वाले हैं. विजय 10 साल की उम्र से ही गांव के अखाड़े में कुश्ती के दांव-पेंच सीखने लगे थे. धीरे-धीरे खेल के प्रति उनका रुझान बढ़ता गया और वो कुश्ती के रास्ते जूडो में आ गए. घर की माली हालत ठीक नहीं थी. पिता एक छोटे किसान थे, जो दूध बेचकर किसी तरह परिवार चलाते थे. 5 भाई बहनों के परिवार में विजय के लिए अच्छी ट्रेनिंग और डाइट मिल पाना मुश्किल था. लेकिन विजय ने कभी हार नहीं मानी.

विजय के पिता दशरथ यादव बताते हैं कि वह अपने हौसले और मेहनत से गोरखपुर पहुंचे. वहां से जूडो की प्रैक्टिस शुरू की. रुंधे गले से पिता ने आगे बताया की वो विजय की जरुरतों को पूरा नहीं कर पाते थे. कई बार उसके पास गोरखपुर जाने के लिए किराया भी नहीं होता था. लेकिन खेल के प्रति उसका जुनून ऐसा था की वह बेहिचक घर से निकल जाता था.

विजय की तारीफ करते हुए उन्होंने आगे बताया की बेटे ने कभी शिकायत भी नहीं की. कभी ऐसी डिमांड नहीं रखी जो पूरा न कर पाने पर पिता को शर्मिंदा होना पड़े. इसके साथ ही उन्होंने बताया कि गोरखपुर जाने से पहले विजय घंटों साइकिल चलाकर वाराणसी के लालपुर प्रैक्टिस करने जाते थे.

विजय यादव

(फोटो: क्विंट)

पढ़ाई नहीं खेल में लगता था मन

दशरथ यादव बताते हैं कि विजय का मन पढ़ाई में कम और खेल में ज्यादा लगता था. वह टीचर की मार से बचने के लिए दो पैंट पहन कर स्कूल जाते थे. उन्होंने आगे बताया कि विजय ने गांव से पांचवी तक की पढ़ाई की. इसके बाद साल 2011 में गोरखपुर स्पोर्ट्स हॉस्टल से जूडो ट्रेनिंग की. इसके साथ ही कुश्ती की तैयारी भी चलती रही. साल 2013 में सहारनपुर स्पोर्ट्स हॉस्टल गए. इसके बाद 2016 में लखनऊ स्पोर्ट्स हॉस्टल गए. दो साल पहले विजय एक्सीलेंसी भोपाल चले गए, जहां उन्होंने जूडो में महारथ हासिल की.

परिवार और गांव में खुशी का माहौल

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश का नाम रोशन करने वाले विजय के परिवार और गांव में भी खुशी की लहर है. विजय के भाई अजय कहते हैं की वह जूडो को जीता है. जूडो में सांस लेता है और जूडो के ही सपने देखता है. जूडो उसकी जिंदगी है.

विजय यादव का परिवार

(फोटो: क्विंट)

बेटे की जीत पर मां चिंता देवी भी फूले नहीं समा रही हैं. वह बताती हैं कि विजय को बनारसी भरवा कचौड़ी बहुत पसंद है. उन्हें विजय के घर आने का बेसब्री से इंतजार है. उन्होंने कहा कि जिस दिन वह घर आएगा उस दिन भरवा कचौड़ी और लस्सी पिलाऊंगी. वहीं गांव वालों को भी विजय का बेसब्री से इंतजार है.

गांव के पप्पू यादव और पांचू यादव कहते हैं कि विजय की जीत से हमारा हौसला बढ़ा है. विजय ने गांव का नाम रोशन किया है. अन्य बच्चों के लिए भी रास्ता खुल गया है.

प्रधानमंत्री ने जीत की बधाई दी

कॉमनवेल्थ गेम्स में विजय के मेडल जीतने पर प्रधानमंत्री ने ट्वीट कर उन्हें बधाई दी है. पीएम ने अपने ट्वीट में लिखा, "विजय कुमार यादव ने कॉमनवेल्थ गेम्स में जूडो में कांस्य पदक जीतकर देश को गौरवांवित किया है. उनकी सफलता भारत में खेलों के भविष्य के लिए शुभ संकेत है. वह आने वाले समय में हर दिन नई ऊंचाई को छूते रहें."

पीएम के बधाई संदेश पर विजय के पिता ने आभार जताया है. उन्होंने कहा कि मैं प्रधानमंत्री जी का शुक्रगुजार हूं.

इनपुट: चंदन पांडेय

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