ADVERTISEMENTREMOVE AD

CoA Vs BCCI अब बन चुकी है CoA Vs CoA: अमृत माथुर

CoA vs CoA के बीच इस जंग को खत्म करने के अलावा SC की कोशिश BCCI में सुधारों को भी जल्द से जल्द लागू कराने की होगी

Published
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा

17 जनवरी, गुरुवार को जब सुप्रीम कोर्ट बीसीसीआई से जुड़े मुद्दे की सुनवाई करेगा, तो उसका ध्यान सुधारों की स्थिति पर कम, सुधार लागू करने वालों की स्थिति पर ज्यादा होगी.

विनोद राय रसूखदार हैं और नौकरशाह के रूप में उनका अतीत मशहूर रहा है. लेकिन डायना एडल्जी पर उनके रसूख का कोई असर नहीं है. प्रशासक कमेटी (CoA) में बराबरी की हिस्सेदारी ही डायना की ताकत है. बेमेल व्यक्तित्व से वो भयभीत नहीं हैं और उनका जोर अपना कद ऊंचा करने पर है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

ऐसी स्थिति में प्रशासक कमेटी को दोनों सदस्य लगभग हर मुद्दे पर एक दूसरे से इत्तिफाक न रखें तो कोई अनहोनी नहीं. दोनों का बैकग्राउंड भिन्न है, उनका नजरिया अलग है और क्रिकेट की समझ एक-दूसरे से पूरी तरह बेमेल है.

जहां तक क्रिकेट से संबंध का सवाल है, तो डायना एडल्जी का शानदार अतीत रहा है. वो भारतीय क्रिकेट महिला टीम की पूर्व कप्तान रही हैं, करीब डेढ़ दशक तक अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खेल चुकी हैं और अर्जुन पुरस्कार, पद्मश्री जैसे पुरस्कारों से सम्मानित हैं.

क्रिकेट के वातावरण में अन्य महारथियों के मुकाबले वो काफी काबिल हैं. क्रिकेट की भाषा में कहें तो उन्हें शॉर्ट लेग से लेकर शॉर्ट फाइन लेग और स्क्वायर कट जैसे तमाम विकल्पों की पूरी जानकारी है.

उनके बारे में ये कहना भी सही होगा कि अगर कोई बॉलर अपने लिए तय दायरा पार करता है, तो उस बॉल को नो बॉल करार देना भी उन्हें आता है.

जब भी उन्होंने किसी विषय पर आपत्ति जताई है, तो वो विषय प्रक्रिया से जुड़ी रही है. मसलन, जब उन्होंने पुरुषों या महिलाओं की क्रिकेट टीम के चयन को लेकर आपत्ति जताई, तो वो CAG (क्रिकेट सलाहकार समिति) की अनदेखी को लेकर थी.

‘Me Too’ जांच के तहत सीईओ राहुल चौधरी से पूछताछ और पांड्या-केएल राहुल के मामलों में उनका सख्त रुख भी बीसीसीआई और भारतीय क्रिकेट की छवि के प्रति उनकी चिन्ता बताती थी. कुल मिलाकर उनका रुख लैंगिक मतभेद के प्रति उनकी जागरूकता का भी परिचायक रहा है.

प्रशासक कमेटी बनाम प्रशासक कमेटी के बीच इस जंग को समाप्त करने के अलावा सुप्रीम कोर्ट की कोशिश बीसीसीआई में सुधारों को भी जल्द से जल्द लागू कराने की होगी. इस बाबत सर्वोच्च न्यायालय को आदेश दिए दो साल हो चुके हैं, लेकिन इरादों में मजबूती के बावजूद वास्तविकता में कमजोरी बनी हुई है. प्रशासन में अब तक सुधार नहीं आया है. हर ओर अनिश्चितता है और हर कोई इन्हें लागू करने के उपायों को लेकर अनभिज्ञ है.

अगर कोई प्रगति देखने को नहीं मिल रही, तो कई लोगों के लिए कोई आश्चर्य की बात नहीं है. उम्मीद थी कि सुधारों से बीसीसीआई की मौलिक परेशानियां दूर होंगी. जब बीसीसीआई ने इन सुधारों का प्रतिरोध किया, तो सुधारों को लागू करने की दिशा में उनका छिपा हुआ भय खुलकर सामने आ गया.

अपनी ताकत और अधिकारों पर खतरा देखते हुए बीसीसीआई ने कई प्रतिरोध पैदा किए. ये गांधीवादी 'असहयोग आंदोलन' का बिलकुल नया रूप था. बीसीसीआई में रुकावटों से निराश प्रशासक कमेटी सुप्रीम कोर्ट में स्थिति की रिपोर्ट देने के सिवाय और कुछ न कर सकी, जिसमें न्यायिक प्रक्रिया में बाधा पहुंचाने की शिकायत के अलावा कुछ भी न था.

तो स्थिति ये है: क्रिकेट जहां था, वहीं है. सुधारों का सुराग मिलता नहीं दिख रहा और निकट भविष्य में चुनावों का भी अता-पता नहीं.

इस अपरिवर्तनीय स्थिति के पीछे जिम्मेदार व्यक्तियों की स्थिति में लगातार परिवर्तन होना, व्यक्तित्वों में टकराव, ताकत के लिए संघर्ष और अहंकार का टकराना है. नतीजा ये है कि आज भी बीसीसीआई एक ही सुप्रीम के नियंत्रण में है, उसी के आत्महितों और आत्मपोषण की देख-रेख करती है.

कांटों भरा बीसीसीआई का खेल

चरण 1 ने प्रशासन समिति और बीसीसीआई के बीच संघर्ष देखा. प्रशासक समिति ने सुप्रीम कोर्ट की दी ताकत का पूरा इस्तेमाल किया. अधिकारियों को अनावश्यक बताते हुए उनके अधिकार कम किये गए, उनकी वित्तीय और अन्य सुविधाओं में भारी कटौती की गई, यात्राओं पर रोक लगी और उनके कार्यालय के कर्मचारी हटा लिये गए.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

चरण 2 में नया घुमाव आया, जब पुरानी बीसीसीआई ने पेशेवर रूप से काम कर रही बीसीसीआई पर विश्वासघात करने का आरोप लगाया. प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से जिनपर नए फैसलों का असर पड़ा, उनके विद्रोही स्वरूप से नए फैसलों को लागू करना अधिक कठिन हो गया.

चरण 3 प्रशासक कमेटी बनाम प्रशासक कमेटी के रूप में नई हास्यास्पद स्थिति पैदा हो गई. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसलों को लागू करने के लिए जिन लोगों को नियुक्त किया था, उनमें आपस में ही टकराव आरम्भ हो गया. आपसी टकराव इस कदर बढ़ गया कि प्रशासक कमेटी के सदस्य सहकर्मी की बजाय एक-दूसरे के विरोधी बन बैठे.

टीम इंडिया के कोच के चयन को लेकर पैदा मतभेद एक भद्दे आरोप में सीईओ की जांच, महिला क्रिकेट मुद्दा, वित्तीय असहमति और अब पांड्या-केएल राहुल विवाद को लेकर बढ़ते गए. हर मुद्दे पर कड़वे बयान, लीक किये गए मेल और मीडिया में प्रायोजित लेखों के जरिये व्यक्तिगत मतभेद सार्वजनिक रूप से दिखने लगे.

जहां तक बीसीसीआई के सदस्यों का सवाल है, तो वो इन गतिविधियों को प्रसन्नता और संतोष के साथ देख रहे हैं. उन्हें इस बात की खुशी है कि सुप्रीम कोर्ट के सुधार आखिरकार अप्रायोगिक और लागू न करने योग्य साबित हो रहे हैं और क्रिकेट के प्रबंधन में उनकी भूमिका के दोषमुक्त होने की पैरोकारी कर रहे हैं.

जब सुप्रीम इन परेशानियों के साथ सिर खपा रही होगी, क्रिकेट फैन इन मामलों के समाप्त होने की उम्मीद लगाए बैठे होंगे. ये मामला कुछ इस कदर लम्बा खिंच गया है कि क्रिकेट के स्लो मोशन फुटेज की तरह परिवर्तन भी बेहद धीमी रफ्तार से हो रहे हैं. लिहाजा अब इस स्लो मोशन क्रिकेट को 20-20 की रफ्तार देने के लिए एक सख्त फैसले की जरूरत है.

(अमृत माथुर वरिष्ठ पत्रकार, बीसीसीआई के पूर्व महाप्रबंधक और भारतीय क्रिकेट टीम के मैनेजर हैं. उनसे @AmritMathur1 पर सम्पर्क किया जा सकता है.)

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×