के एल राहुल ने साउथ अफ्रीका के खिलाफ पहले टेस्ट मैच में शतक लगाकर ना सिर्फ टीम इंडिया की स्थिति मैच में मजबूत की बल्कि एक बल्लेबाज और भविष्य के कप्तान के तौर पर भी उन्होंने अपना दावा और मजबूत कर लिया. राहुल की इस शतकीय पारी के मायने महज एक शतक से ज्यादा है. सबसे पहली बात आप ये देखें कि अब तक अपने टेस्ट करियर के पहले 6 शतक में से 5 शतक विदेशी जमीं पर भारत की तरफ से कितने बल्लेबाजों ने लगाए थे? सिर्फ 1 और उस बल्लेबाज का नाम सचिन तेंदुलकर है.
विदेशी पिचों पर राहुल का कमाल
आप अंदाजा लगा सकते हैं कि राहुल किस क्लास वाले बल्लेबाज हैं. अगर तेंदुलकर के शतक मैनचेस्टर, सिडनी,पर्थ,जोहानिसबर्ग, चेन्नई, कोलंबो में आये तो राहुल भी इस मामले में उनसे भी एक कदम आगे निकल गए हैं. राहुल के पहले 7 शतकों में 6 विदेशी जमीं पर आए हैं. सिडनी, कोलंबो, किंग्सटन, चेन्नई, लंदन(ओवल और लार्ड्स दोनों मैदानों पर) और अब सेंचुरियन.
विदेशी जमीं पर अपना लोहा मनवाना बचपन से ही राहुल का एक बड़ा सपना रहा है. अब जिनके पिता का ही सपना ये रहा हो कि बेटा राहुल द्रविड़ की ही तरह विदेशी पिचों पर अपनी बल्लेबाजी से हर किसी को प्रभावित करे तो आप सोच ही सकते हैं कि के एल के लिए राहुल नाम की अहमियत क्या है! आज द्रविड़ उनके लिए कोच भी हैं और बचपन के आदर्श भी. लेकिन, अब तक का जो खेल कर्नाटक के इस खिलाड़ी ने दिखाया है उससे ये साफ दिख रहा है कि भविष्य में टीम इंडिया की कप्तानी के लिए अब वो दौड़ में रिषभ पंत को पछाड़ चुके हैं. चयनकर्ताओं ने पहले ही इस बात के संकेत दे दिये.
जब रोहित शर्मा टेस्ट सीरीज के लिए अनफिट हो गये तब टेस्ट टीम के लिए अनुभवी अंजिक्य रहाणे को हटाकर राहुल को ये जिम्मेदारी दी गई . आईपीएल में भी राहुल को कप्तानी देने के लिए टीमों के बीच होड़ मची हुई थी. उनकी पुरानी टीम पंजाब चाहती थी कि राहुल ही 2022 में कप्तानी करें क्योंकि उन्होंने इस खिलाड़ी पर पिछले कुछ सालों से इंवेस्ट किया था लेकिन लखनऊ की टीम राहुल की अगुवाई में अपना पहला कदम बढ़ाना चाहती है.
तीनों फॉरमेट में सहज दिखते हैं राहुल
तो ऐसा क्या है राहुल में जिसके चलते उन्हें टीम इंडिया का अगला महना बल्लेबाज माना जा रहा है? रोहित शर्मा को टेस्ट क्रिकेट में अपना डंका बजाना अभी भी बाकि है जबकि उनकी उम्र 33 साल की हो चुकी है लेकिन राहुल तो तीनों फॉरमेट में सहज नजर आते हैं. अपने पहले ही वन-डे में शतक के साथ शुरुआत करने वाले (वो भी विदेशी जमीं पर) राहुल टी20 में अगर बेहतरीन तकनीक का नजारा पेश करते हुए स्ट्राइक रेट पर भी नियंत्रण रखते हैं तो टेस्ट क्रिकेट में हर तरह के शॉट्स अपने तरकश में होने के बावजूद वो टीम की जरूरत को देखते हुए धैर्य वाली पारी खेलने की काबिलियत भी रखते हैं.
आप पंत के साथ ये बात नहीं कह सकते हैं जो अब तक सिर्फ एक ही गियर में बल्लेबाजी करना जानते हैं. पंत को ये समझना होगा कि वीरेंद्र सहवाग का अंदाज भले ही निराला और विस्फोटक हुआ करता था लेकिन कप्तानी की जिम्मेदारी के लिए चयनकर्ताओं को बाकी फैक्टर भी ध्यान में रखना पड़ता है.
राहुल के साथ एक और फायदा ये भी है कि वो जरूरत पड़ने पर विकेटकीपिंग की दोहरी भूमिका भी निभा सकते हैं. ये भी द्रविड़ वन-डे क्रिकेट में किया करते थे. इतना ही नहीं अगर टीम चाहे तो उन्हें बल्लेबाज के तौर पर ओपनर भी बना सकती है और मिडल ऑर्डर में भी भेज सकती है.
जहां द्रविड़ कभी भी ओपनिंग करना मर्जी से नहीं करना चाहते थे, राहुल ये काम खुशी-खुशी करने को तैयार दिखते हैं. लेकिन, द्रविड़ की ही तरह राहुल प्रेस के सामने हिंदी, अंग्रेजी, कन्नड़ और यहां तक तक कि मराठी में भी सहज दिखते हैं, ठीक द्रविड़ की ही तरह. अब देखने वाली बात यही है कि क्या अपने कोच और आदर्श द्रविड़ की ही तरह उन्हें भी हर फॉर्मेट में कप्तानी करने का मौका मिलता है या नहीं क्योंकि बल्लेबाज के तौर पर तो वो हर फॉर्मेट में खुद की योग्यता साबित कर चुके हैं. सेंचुरियन की सेंचुरी ने सिर्फ उस विश्वास को और मजबूत किया है.
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