टीम इंडिया को धर्मशाला टेस्ट मैच को खत्म करने में चौथे दिन सिर्फ 83 मिनट का समय लगा. टीम इंडिया ने मैच जीतने के साथ बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफी पर भी कब्जा कर लिया.
फाइनल टेस्ट में टीम इंडिया पर दबाव था. सीरीज 1-1 से बराबरी पर थी. टीम इंडिया अपने नियमित कप्तान के बिना मैदान पर उतरी थी,और धर्मशाला का एचपीसीए स्टेडियम ऑस्ट्रेलिया के होम ग्राउंड की तरह ही था. इस तरह के मैदानों पर ऑस्ट्रलियाई बचपन से खेलते रहे हैं.
इन सभी परिस्थियों के बावजूद अजिंक्य रहाणे की अगुवाई में टीम इंडिया जीत दर्ज करने में कामयाब हुई. सुबह करीब 10 बजकर 53 मिनट का समय था. केएल राहुल ने जैसे ही गेंद को बल्ले से पुश किया, टीम इंडिया 8 विकेट से जीत दर्ज करने में कामयाब हो गई. धर्मशाला टेस्ट जीतने के साथ ही टीम इंडिया ने 2-1 से बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफी अपने नाम कर ली.
ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 2-1 से सीरीज जीतने के साथ ही टीम इंडिया उस जगह को भरने में कामयाब हो गई जो अब तक खाली थी. अब टेस्ट क्रिकेट खेलने वाली सभी 9 टीमों के खिलाफ टीम इंडिया पिछली सीरीज में जीत दर्ज कर चुकी है.
टेस्ट क्रिकेट के इतिहास में बहुत कम ही इस तरह की उपलब्धि हासिल हुई हैं.
कई कारण रहे जिनकी वजह से टीम इंडिया ये सीरीज जीतने में कामयाब हुई है.
ऑस्ट्रेलियाई टीम की तरफ से जो भी चुनौतियां पेश की गईं, टीम इंडिया ने करारा जवाब दिया. यह जवाब सिर्फ कैप्टन विराट कोहली ने ही नहीं बल्कि दूसरे लोगों ने भी दिया.
दरअसल, टीम इंडिया ने फर्स्ट हॉफ होम सीजन में सिर्फ और सिर्फ जीत देखी. ये सबकुछ विराट कोहली, आर. आश्विन और रवीन्द्र जडेजा के प्रदर्शन की बदौलत मुमकिन हो पाया. समय-समय पर दूसरे लोगों ने भी अपना योगदान दिया, लेकिन ये तीन लोग सभी पर भारी पड़ गए.
विराट नहीं हैं, कोई बात नहीं!
ऑस्ट्रलिया के खिलाफ सीरीज से पहले, विराट कोहली इकलौते भारतीय खिलाड़ी थे जिन्होंने होम सीजन में 1000 से ज्यादा रन बनाये थे. वो पिछली चार सीरीज में डबल सेंचुरी लगा चुके थे. कोहली जिस तरह की प्राइम फॉर्म में थे, उसे देखते हुए ये उम्मीद की जा रही थी कि ऑस्ट्रेलियाई गेदबाजों की भी खैर नहीं.
लेकिन, ऐसा नहीं हुआ. इंडियन कैप्टन पहले तीन टेस्ट मैच में सिर्फ 46 रन ही बना सके. इस सीरीज में उनका सर्वाधिक स्कोर 15 रन था, जो उन्होंने कंधे में चोट लगने से पहले बनाया था.
ये विराट कोहली का टेस्ट सीरीज (एक मैच को छोड़कर) में सबसे खराब प्रदर्शन था.
फिर भी, टीम इंडिया का सीरीज जीतना बेहद संतोषजनक रहा. और टीम के प्रदर्शन से आप कह सकते हैं कि ड्रेसिंग रुम में कितना टैलेंट मौजूद है.
केएल राहुल और चेतेश्वर पुजारा पूरी सीरीज में टीम इंडिया की दीवार बनकर खड़े रहे. लेकिन ये नहीं भूलना चाहिए कि बाकी बल्लेबाजों ने भी रन बनाए.
रहाणे ने बेंगलुरु टेस्ट मैच की दूसरी पारी में शानदार हॉफ सेंचुरी बनाई. ऋद्धिमान साहा ने रांची टेस्ट मैच में नंबर 8 पर आकर बेहतरीन शतक लगाया और टीम को कठिन परिस्थियों से बाहर निकाला. धर्मशाला टेस्ट मैच में रवींद्र जडेजा ने निचले क्रम में आकर 63 रन की बेशकीमती पारी खेली और इस वजह से टीम इंडिया लीड लेने में कामयाब हो गई.
इस सीरीज की जीत का क्रेडिट किसी एक बल्लेबाज को नहीं दिया जा सकता है क्योंकि कई बल्लेबाजों ने कठिन परिस्थितियों में अपना अमूल्य योगदान दिया.
गेंदबाजी में आर आश्विन ने बेहतरीन प्रदर्शन किया. 30 वर्षीय अश्विन ने ऑस्ट्रलिया के खिलाफ पहले दो मैच में 15 लोगों को अपना शिकार बनाया था, जबकि आखिरी दो मैच में सिर्फ 6 विकेट ही हासिल कर पाये.
रवींद्र जडेजा पूरी सीरीज में छाये रहे और ऑस्ट्रेलिया पर कहर की तरह बरपे. आखिरी दो टेस्ट मैच में जडेजा ने 13 विकेट हासिल किए और ICC टेस्ट बॉलिंग रैंकिंग में अश्विन को पछाड़कर नंबर-1 पायदान पर पहुंचे.
भारत की सफलता में दो यादवों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उमेश यादव ने अपने करियर का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए 17 विकेट हासिल किए. जबकि कुलदीप यादव ने धर्मशाला में अपने डेब्यू मैच में ही अपना जलवा बिखेरा.
भुवनेश्वर कुमार दो विकेट ही लेने में कामयाब हुए, लेकिन उन्होंने काफी कीमती विकेट हासिल किया. उनमें से एक स्टीव स्मिथ का विकेट था.
अगर सीरीज की जीत में योगदान की बात करें, तो सभी का बराबर योगदान रहा.
विराट कोहली की गैर-मौजूदगी में अजिंक्य रहाणे ने बेहतरीन कप्तानी की. धर्मशाला मैच से पहले रहाणे ने फर्स्ट क्लास क्रिकेट को छोड़कर कभी भी कप्तानी नहीं की थी. लेकिन फिर भी उनके ज्यादातर फैसले सही थे.
शुरूआत प्लेइंग इलेवन से हुई. कुलदीप यादव को डेब्यू करने का मौका दिया, फील्डिंग सजाने में काफी सावधानी बरती. रहाणे तमाम मौकों पर खरे उतरे.
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