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मांकड की मांकडिंग अब क्रिकेट का कलंक नहीं,जानें इस विचित्र रनआउट के चर्चित मामले

ICC ने मांकडिंग को लेकर नियमों में बदलाव किया है, जिससे मांकडिंग अब किसी बैटर को आउट करने का जायज तरीका बन गया है.

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अगर आप क्रिकेट के दीवाने हैं तो आपको 25 मार्च 2019 को आईपीएल में घटी एक घटना जरूर याद होगी, जिसने खेल जगत में काफी सुर्खियां बटोरी थीं. उस दिन किंग्स इलेवन पंजाब (अब पंजाब किंग्स) के खिलाड़ी आर अश्विन ने नॉन स्ट्राइकर छोर पर खड़े राजस्थान रॉयल्स के बल्लेबाज जोस बटलर को गेंद फेंके जाने से पहले ही क्रीज से बहुत आगे निकल जाने पर मांकडिंग तरीके से रन आउट कर दिया था. तब अश्विन की काफी आलोचना हुई थी.

मांकडिंग के द्वारा किसी बल्लेबाज को आउट करना अब तक क्रिकेट में खेल भावना के विपरीत ही माना जाता रहा है, पर अब ऐसा नहीं होगा. क्रिकेट में मांकडिंग अब किसी बैटर को आउट करने का वेलिड तरीका बन गया है. ICC ने मांकडिंग को लेकर अपने नियमों में बड़ा बदलाव किया है. अब इसे लॉ 38 में यानी रन आउट के तहत एक लीगल तरीके के रूप में शामिल कर लिया गया है. पहले यह लॉ 41 में आता था, जिसे खेल भावना के खिलाफ माना जाता था.

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मांकडिंग के चर्चित मामले

कपिल देव- पीटर कर्स्टन (1992)

मांकडिंग का एक चर्चित मामला भारत के दिग्गज ऑलराउंडर कपिल देव और गैरी कर्स्टन के सौतेले भाई पीटर कर्स्टन के बीच का है. साल 1992 में 9 दिसंबर के दिन भारत और दक्षिण अफ्रीका के बीच सेंट जॉर्ज पार्क ग्राउंड पर वनडे मैच खेला जा रहा था. दक्षिण अफ्रीका भारत के 147 रनों के टारगेट का पीछा कर रही थी. क्रीज पर पीटर कर्स्टन और केपलर वेसल्स की जोड़ी थी. वे आसानी से टारगेट की ओर बढ़ रहे थे, तभी मैच के नौवें ओवर में कपिल देव ने बॉल फेंकने से पहले नॉन स्ट्राइकर क्रीज से काफी आगे निकल चुके हैं पीटर कर्स्टन की गिल्लियां बिखेर दीं. हालांकि दक्षिण अफ्रीका वह मैच जीत गया पर अगले दिन साउथ अफ्रीकन मीडिया ने कपिल देव को निशाने पर ले लिया.

कीमो पॉल- रिचर्ड नगारवे (2016)

मांकडिंग का एक बेहद चर्चित मामला अंडर-19 विश्व कप में भी हुआ है. यह साल 2016 की बात है जब वेस्टइंडीज और जिंबाब्वे के बीच एक महत्वपूर्ण मैच था. इसे जीतकर दोनों में से कोई एक टीम अगले दौर में जाती. वेस्टइंडीज अपनी बैटिंग कर चुकी थी और जिंबाब्वे बाद में उसके दिए 226 रन के लक्ष्य का पीछा कर रही थी. मैच बेहद रोमांचक स्थिति में जब मैच आखिरी ओवर में आ गया और जीतने के लिए केवल तीन रन की जरूरत थी, तब वेस्टइंडीज के तेज बॉलर कीमो पॉल ने जिंबाब्वे के रिचर्ड नगारवे को नॉन स्ट्राइकर एंड पर मांकडिंग से आउट कर दिया. आखिरी ओवर में इस तरह से किसी बल्लेबाज का विकेट लेने के कारण घटना अंडर-19 मैच की होने के बावजूद भी काफी चर्चित हो गई थी. कीमो पॉल के उस मांकडिंग रन आउट से वेस्टइंडीज की टीम न सिर्फ अगले राउंड में पहुंची, बल्कि उसने फाइनल में भारत की युवा टीम को हराकर विश्वकप अपने नाम कर लिया था.

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चार्ली ग्रिफिथ-इयान रेडपथ (1969)

मांकडिंग का एक चर्चित मामला दुनिया की दो सर्वश्रेष्ठ टीमों ऑस्ट्रेलिया और वेस्टइंडीज के बीच 1969 में खेले गए टेस्ट मैच में भी घटा. उस मैच में ऑस्ट्रेलिया वेस्टइंडीज के दिए गए 360 रन के लक्ष्य को पाने के लिए चौथी पारी में शानदार बैटिंग कर रहा था. उसके बल्लेबाज इयान रेडपथ क्रीज पर थे. इसी पारी के दौरान जब इयान रेडपथ नॉन स्ट्राइकर छोर पर बॉलर के आने से पहले थोड़ा आगे निकल गए तो वेस्टइंडीज के बॉलर चार्ली ग्रिफिथ ने उनको पवेलियन की राह दिखा दी. एक अति महत्वपूर्ण टेस्ट मैच में नाजुक मौके पर किया गया यह मांकडिंग रन आउट इस तरीके से आउट किए जाने वाली श्रेणी में चर्चित मामला बन गया. सबसे बड़ी बात इस टेस्ट मैच में सर गैरी सोबर्स और डग वाल्टर्स जैसे महान खिलाड़ी खेल रहे थे.

अश्विन-थिरिमाने (2012)

रविचंद्रन अश्विन का नाम मांकडिंग से काफी जोड़ा जाता है. केवल जोस बटलर ही वह पहले खिलाड़ी नहीं थे जिन्हें रविचंद्रन अश्विन ने मांकंडिंग से आउट किया था. उन्होंने श्रीलंका के बल्लेबाज लाहिरू थिरिमाने को 2012 में गाबा के मैदान पर एकदिवसीय मैच में मांकडिंग से रनआउट किया था, लेकिन वीरेंद्र सहवाग और सचिन तेंदुलकर ने तब अपील वापस ले ली थी. तब स्टैंड-इन कप्तान वीरेंद्र सहवाग थे. दो ऑन-फील्ड अंपायरों ने सहवाग से पूछा था कि क्या वह अपील वापस लेना चाहते हैं. जब सहवाग अंपायरों के साथ बातचीत कर रहे थे, तब तेंदुलकर उनके पास गए और सहवाग से कुछ कहा और दोनों ने अपील वापस ले ली.

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क्या है मांकडिंग, कहां ये आया शब्द

जब बॉलर के बॉल फेंकने से पहले ही नॉन स्ट्राइकिंग एंड का बल्लेबाज क्रीज से बाहर आ जाता है और बॉलर नॉन स्ट्राइक एंड की बेल्स गिरा देता है तो इसे मांकडिंग तरीके से आउट करना कहा जाता है. हालांकि क्रिकेट में इस तरीके से आउट करना बहुत पहले से चला आ रहा है, पर क्रिकेट इतिहास में इसे मांकडिंग का नाम 13 दिसंबर, 1947 के बाद मिला. तब भारत व आस्ट्रेलिया के बीच टेस्ट मैच चल रहा था. भारतीय आलराउंडर वीनू मांकड ने ऑस्ट्रेलिया के बल्लेबाज बिल ब्राउन की नॉन स्ट्राइकर्स एंड पर उनके बॉल फेंकने से पहले आगे निकलने के कारण गिल्लियां बिखेर दी थीं.

उस समय मीडिया में वीनू मांकड की खूब आलोचना हुई थी. इस घटना के बाद कॉमेंटेटर्स और अखबारों ने इसे मांकडिंग नाम दे दिया. तब से ही बल्लेबाजों को इस तरह आउट होने की घटना को माकंडिंग कहा जाने लगा है.

गावस्कर नहीं करते मांकडिंग शब्द का उपयोग

भारत के दिग्गज क्रिकेटर सुनील गावस्कर का मानना है कि रन आउट के इस तरीके का नाम भारत के महान खिलाड़ी वीनू मांकड के नाम पर रखा जाना ठीक नहीं है. वे कहते हैं आस्ट्रेलिया मीडिया ने इसे ब्राउन आउट नाम क्यों नहीं दिया. गलती तो सरासर बिल ब्राउन की थी, मांकड की नहीं.

उन्होंने कमेंट्री के दौरान कभी ऐसे वाकए आए तो उसे ब्राउन आउट कहा है. कभी मांकडिंग नहीं कहते. भारतीय मीडिया से भी उन्हेांने कहा है कि वे भी इसे ब्राउन आउट ही कहें.

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