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ऊंचे पहाड़-गहरी खाई, अरबों साल अंधेरा, चांद के साउथ पोल पर लैंडिंग मुश्किल क्यों?

Chandrayaan-3 मिशन सफल रहा तो चंद्रमा के साउथ पोल की सतह पर पहली बार कोई इंसानी यान सॉफ्ट लैंड करेगा

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साइंस
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Chandrayaan-3 Landing: भारत का महत्वाकांक्षी मून मिशन 'चंद्रयान-3' बुधवार, 23 अगस्त की शाम को जब चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव/साउथ पोल की सतह पर पहली बार लैंड करने की कोशिश कर रहा होगा तो पूरे देश ही नहीं, दुनिया की निगाहे उसपर होगी. ऐसा इसलिए भी है क्योंकि अगर यह मिशन सफल रहा तो भारत चंद्रमा के साउथ पोल पर उतरने वाला दुनिया का पहला देश बन जाएगा.

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भारत को इस रेस में पीछे छोड़ने की कोशिश रूस ने की थी लेकिन उसका मिशन Luna-25 चांद की सतह पर क्रैश कर गया. यह लगभग 50 वर्षों में रूस का पहला चंद्रमा मिशन था.

खुद चंद्रयान-2 के रूप में चांद के साउथ पोल पर उतरने की भारत की पहली कोशिश 2019 में विफल रही थी. ऐसे में आपने और मेरे दिमाग में यह सवाल उठ सकता है कि आखिर चांद के साउथ पोल पर ऐसा क्या है कि वहां किसी देश का यान इससे पहले नहीं उतर पाया?

चलिए इसी सवाल का जवाब खोजने की कोशिश करते हैं.

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Chandrayaan-3: चंद्रमा के साउथ पोल पर क्या है?

NASA के अनुसार चंद्रमा का साउथ पोल "रहस्य, विज्ञान और जटिलताओं" से भरा है. चंद्रमा का साउथ पोल ऊबड़-खाबड़ इलाका है. इसकी सतह पर बड़े-बड़े पहाड़ मौजूद हैं और यहां सूर्य की किरण बहुत कम एंगल पर आती हैं. इस वजह से कई इलाके ऐसे हैं जहां अरबों सालों से लगातार अंधेरा है यानी उसने सिर्फ परछाई ही देखी है.

इन क्षेत्रों में, तापमान -248 डिग्री तक गिर जाता है. इसकी वजह है कि चंद्रमा की सतह को गर्म करने के लिए कोई वातावरण नहीं है. इस पूरी तरह से अज्ञात दुनिया में किसी भी इंसान ने कदम नहीं रखा है.

पहली बार 2009 में, चंद्रयान -1 पर मौजूद हाइपर स्पेक्ट्रल इमेजिंग कैमरे ने चंद्रमा के ध्रुवों में पानी के अणुओं की उपस्थिति का पता लगाया था.

इसके अलावा 14 वर्षों से चंद्रमा की परिक्रमा कर रहे NASA के अंतरिक्ष यान लूनर रिकॉनिसेंस ऑर्बिटर द्वारा जमा किए गए डेटा से पता चलता है कि साउथ पोल पर स्थायी रूप से छाया वाले कुछ बड़े गड्ढों में पानी की बर्फ मौजूद है.

नासा हेडक्वाटर में साइंस मिशन डायरेक्टरेट के उप सहयोगी प्रशासक स्टीवन क्लार्क का कहना है, "हम जानते हैं कि चंद्रमा के साउथ पोल क्षेत्र में बर्फ है और ऑर्बिट से उस क्षेत्र के ऑब्जरवेशन के आधार पर हम कह सकते हैं कि यह अन्य संसाधनों से भी समृद्ध हो सकता है. लेकिन इसके अलावा, यह पूरी तरह से अज्ञात दुनिया है."

NASA का मानना है कि चांद का साउथ पोल भविष्य में मानव लैंडिंग के लिए भी एक अच्छा स्पॉट है क्योंकि रोबोटिक रूप से, चंद्रमा पर सबसे अधिक जांच इसी क्षेत्र की हुई है.

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Chandrayaan-3: साउथ पोल पर लैंडिंग मुश्किल क्यों है?

चंद्रमा पर लैंडिंग के प्रयास पहले भी विफल रहे हैं. रूस का लूना-25 यान भी साउथ पोल पर उतरने वाला था, लेकिन रविवार को पहुंचते ही वह नियंत्रण से बाहर हो गया और क्रैश कर गया.

चंद्रमा पर उतरने वाले पिछले सभी अंतरिक्ष यान उसके भूमध्य रेखा (इक्वेटर) के कुछ डिग्री आगे-पीछे ही उतरे हैं. भूमध्य रेखा से सबसे दूर उतरने वाला अंतरिक्ष यान NASA द्वारा भेजा रहा Surveyor 7 था, जिसने 10 जनवरी 1968 को चंद्रमा पर लैंडिंग की थी. यह अंतरिक्ष यान 40 डिग्री दक्षिण अक्षांश के करीब उतरा था.

मुश्किल यह है कि चांद का साउथ पोल गड्ढों और गहरी खाइयों से भरा है. ऐसे में किसी भी यान के लिए सॉफ्ट लैंडिंग मुश्किल का बहुत कठिन होता है.

इसके साथ-साथ चंद्रमा के साउथ पोल पर, सूर्य की छाया ही पड़ती है, जिससे लैंडिंग का प्रयास करते समय यह समझ पाना मुश्किल होता है कि सतह कैसी है और उसकी विशेषताएं क्या हैं.

इसरो ने बताया कि अंतरिक्ष में इतने अंदर यान तक सिग्नल भेजकर कम्युनिकेट कर पाना भी एक और चुनौती है. चंद्रमा की धूल नकारात्मक रूप से चार्ज होती है और यह अधिकांश सतहों पर चिपक जाती है. इससे रोवर का सोलर पैनल और सेंसर के लिए काम करना बड़ी चुनौती होती है.

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