लॉकडाउन के दौरान मजबूरी में शहरों से गांवों की ओर लौटे मजदूरों पर डायरेक्टर विनोद कापड़ी ने डॉक्यूमेंट्री फिल्म 1232 KMs बनाई, जिसकी खूब चर्चा हो रही है. इस फिल्म में मजदूरों के उस दर्द को बयां किया गया है, जो उन्होंने शहरों से अपने गांव पहुंचते हुए महसूस किया. 1232 KMs उन 7 मजदूरों की कहानी है जो इस परेशानी का शिकार हुए और साइकिल चलाते हुए दर-दर की ठोकरें खाते महामारी के वक्त में अपने घर पहुंचे. अब उन 7 मजदूरों ने अपनी आपबीती पर बनी फिल्म को देखा है.
“लॉकडाउन लगा और जेब में पैसे भी नहीं थे”
डॉक्यूमेंट्री फिल्म 1232 KMs से जुड़े एक किरदार रामबाबू पंडित (जो मार्च 2020 में अपने साथियों के साथ गाजियाबाद से बिहार के सहरसा की ओर निकल पड़े) ने क्विंट से बातचीत में बताया कि-
“शुरुआत में 1 दिन के लॉकडाउन की घोषणा हुई, तो ज्यादा चिंता नहीं हुई लेकिन जब पता चला कि लॉकडाउन बढ़कर 21 दिन का हो गया तो, चिंता सताने लगी. उस समय जेब में पैसे भी नहीं थे और लॉकडाउन लग गया.”रामबाबू पंडित,
मुश्किल भरा था साइकिल से 1232 किलोमीटर का सफर
यूपी के गाजियाबाद से बिहार के सहरसा की ओर साइकिल से निकले इन 7 साथियों का 7 दिनों तक चलने वाला सफर बेहद मुश्किल भरा रहा. तीसरे दिन एक साथी मुकेश पंडित साइकिल चलाते-चलाते बेहोश हो गया.
मुकेश ने बताया कि, “तीसरे दिन साइकिल चलाते हुए अचानक मैं बेहोश हो गया. मेरे साथियों ने मुझे बचाया, वो दिन आज भी मुझे याद आता है.”
“हर रात खाने के लिए भटकना पड़ता था”
डॉक्यूमेंट्री फिल्म 1232 KMs के डायरेक्ट विनोद कापड़ी ने कहा कि, “इस लंबे सफर पर हर रात खाना मिलना एक बड़ी चुनौती थी और सभी मजदूरों को खाने के लिए भटकना पड़ता था.”
“घर लौटे लेकिन खाली हाथ”
लगातार साइकिल चलाने के बाद आखिरकार ये सभी मजदूर साथी बिहार में अपने घर पहुंच गए. लेकिन इनके हाथों में कुछ नहीं बचा. न बच्चों को खिलौने दिलाने के पैसे, न खाना खाने के लिए पैसे.
इन मजदूरों ने बताया कि लॉकडाउन की वजह से सारी मेहनत की कमाई खत्म हो गई, कुछ पैसा कर्ज में चलाया गया और कुछ ब्याज चुकाने में, और हमारे पास कुछ नहीं बचा.
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