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Covid: लाइमलाइट से दूर इन लोगों ने भी की सैकड़ों लोगों की मदद

इनके पास सोनू सूद जैसे संसाधन नहीं लेकिन इनका काम उनसे कम नहीं

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वीडियो एडिटर- अभिषेक शर्मा

कोरोना वायरस संकट की दूसरी लहर ने अप्रैल और मई के महीने में जबरदस्त हाहाकार मचाया. ऑक्सीजन, रेम्डेसिविर इंजेक्शन, प्लाजमा, फ्लोमीटर, कंसन्ट्रेटर, हॉस्पिटल बेड जैसी कई सारी मेडिकल जरूरतों की भारी किल्लत हो गई. पूरे देश के सामने कम संसाधनों में ज्यादा से ज्यादा लोगों को मदद पहुंचाने की चुनौती थी. इसी दौरान सौशल मीडिया के जरिए कई लोगों ने बड़ी आबादी तक ऐसी ही मेडिकल मदद पहुंचाई.

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इन सोशल मीडिया वॉरियर्स का काम काफी कुछ बॉलीवुड एक्टर सोनू सूद जैसा रहा है. हालांकि इनके पास सोनू सूद जैसे संसाधन नहीं लेकिन इनका काम उनसे कम नहीं है. कोरोना की दूसरी लहर में इन सोशल मीडिया वॉरियर्स ने दिन-रात एक करके सैकड़ों लोगों तक मदद पहुंचाई.

दिल्ली में रहकर पढ़ाई करने वाले विकास सिंह बताते हैं कि-

मुझे याद है कि 19 अप्रैल की सुबह मेरे रूममेट विभव का मुझे कॉल आया कि उसके पापा की तबीयत बहुत खराब है और डॉक्टर ने रेम्डेसिविर इंजेक्शन लिखा है. वो पहली बार था जब में इन केस से जुड़ा. फिर शाम तक मेरे एक और जूनियर ने प्लाजमा के लिए रिक्वेस्ट की. हमने जैसे करके प्लाजमा, रेम्डेसिविर का प्रबंध किया. इसके बाद हमारा कारवां निकल पड़ा. दिन-रात एक करके हम लोगों की मदद करते चले गए.
विकास सिंह, सोशल मीडिया वॉरियर
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इलाहाबाद के रहने वाले माधवेंद्र प्रताप सिंह बताते हैं कि पहली लहर के मुकाबले दूसरी लहर में मेडिकल इमरजेंसी ज्यादा गहरा गई. कई लोगों ने मदद की गुहार लगाई. हमने इस इमरजेंसी के लिए पहले से खास तैयारी नहीं की थी.

मेरे पास एक बार रात डेढ़ बजे गाजियाबाद से कॉल आया था. उन्होंने मेडिकल ऑक्सीजन की सख्त जरूरत बताई. मैंने इसी को लेकर फेसबुक पर पोस्ट डाली. तो हमारी एक दोस्त ने बताया कि वहां पर कैसे सिलेंडर मिलेगा. कुछ कॉन्टैक्ट शेयर किए और उनको ऑक्सीजन सिलेंडर मिल गया था.
माधवेंद्र प्रताप सिंह, सोशल मीडिया वॉरियर
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प्रयागराज के रहने वाले प्रशांत बताते हैं कि उनकी मां की मेडिकल स्थिति बेहद खराब थी और डॉक्टर ने प्लाजमा की व्यवस्था करने के लिए कहा. इसी के बाद इन्होंने विकास सिंह से संपर्क किया और विकास ने अपने नेटवर्क के जरिए प्लाजमा उपलब्ध करा दिया और उनकी मां अब पूरी तरह से स्वस्थ हैं.

ये सिर्फ एक प्रशांत नहीं है, ऐसे ढेरों उदारहण हैं जिनकी जान इस तरह की मदद से बची है.

कैसे बना मदद का ये नेटवर्क?

माधवेंद्र और विकास बताते हैं कि शुरु में उन्होंने व्यक्तिगत स्तर पर मदद करना शुरू की. लेकिन जल्द ही कई मदद करने वाले लोग सोशल मीडिया, फोन, बाकी संबंधों के जरिए साथ आए और एक नेटवर्क तैयार किया. अलग-अलग जिलों के रहने वाले लोगों ने अपना जिम्मा संभाला और केस टू केस मदद के काम को आगे बढ़ाया.

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