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जहांगीरपुरी से खरगोन तक लोकतंत्र पर क्यों हावी ‘बुलडोजरतंत्र’?

क्या भारत के किसी कानून में बिना सुनवाई, बिना जांच किसी का घर गिराने या उसपर Bulldozer चलाने का प्रावधान है?

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लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में

तुम तरस नहीं खाते बस्तियां जलाने में

बशीर बद्र ने जब ये लिखा होगा तब उन्हें कहां पता होगा कि लोकतंत्र वाले भारत में 'बुलडोजरतंत्र' चलेगा. मध्य प्रदेश से लेकर यूपी, गुजरात और दिल्ली में बुलडोजर पर सवार सिस्टम किसी का घर ढाह रहा है तो किसी के दुकानों की दीवार तोड़ रही है. मानो संविधान और कानून पर बुलडोजर चल रहा हो. न सुनवाई, न अदालत, बस बुलडोजर ही जज है, बुलडोजर ही फैसला.

लेकिन अब बुलडोजर (Bulldozer) की स्टेयरिंग वाले सवालों के घेरे में हैं. क्योंकि कहीं बुलडोजर की चपेट में PM आवास योजना के तहत बना मकान आ गया, तो कहीं ऐसे लोगों के घरों के हिस्से गिरा दिए गए जो हिंसा में शामिल ही नहीं थे. बुलडोजर पर सवार सत्ता कभी कह रही है कि अवैध निर्माण गिरा रहे हैं तो कभी कहा जाता कि हिंसा में शामिल लोगों के घर गिरा रहे हैं.

लेकिन क्या भारत के किसी कानून में बिना सुनवाई, बिना जांच किसी का घर गिराने का प्रावधान है? जवाब है नहीं. फिर ये बुलडोजर राज कैसे चल रहा है? और अगर एकतरफा, धर्म के आधार पर, कानून को ताक पर रखकर बुलडोजर चलेगा तो भारत के कानून पर यकीन रखने वाले पूछेंगे जनाब ऐसे कैसे?

दरअसल, मध्य प्रदेश के खरगोन (Khargone) और बड़वानी में रामनवमी के जुलूस के दौरान हिंसा के बाद प्रशासन और पुलिस द्वारा कथित पत्थरबाजों और दंगाइयों के मकानों को तोड़ने की कार्रवाई की गई, जिसके तहत खरगोन में 50 मकान व दुकान पर बुलडोजर चला तो वही बड़वानी में भी 4 मकानों पर बुलडोजर चला गया.

ठीक ऐसा ही मंजर दिल्ली के जहांगीरपुरी (Jahangirpuri) में देखने को मिला. जहां हनुमान जयंती के मौके पर हुई हिंसा के दो दिन बाद अवैध निर्माण के नाम पर सालों से रह रहे लोगों के मकान और दुकान पर प्रशासन बुलडोजर चलाने पहुंच गया.

चलिए सबसे पहले आपको बुलडोजर की नीयत और एक्शन पर उठे सवालों से मिलवाते हैं, फिर आपको 'बुलडोजर-गिरी' पर कानून क्या कहता है वो भी बतलाते हैं.

मध्य प्रदेश के खरगोन में रामनवमी के दिन हुई हिंसा के बाद स्थानीय प्रशासन ने हिंसा में शामिल होने का हवाला देते हुए 16 घरों और 29 दुकानों पर बुलडोजर चला दिया. लेकिन अब पता चला है कि इनमें से एक घर प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत बनाया गया था. इन घरों को गिराने के पीछे जिला प्रशासन तर्क दे रहा है कि उन्होंने अतिक्रमण वाली जमीन पर बने अवैध घरों-दुकानों को गिराया है. फिर सवाल ये है कि क्या पीएम आवास योजना के तहत बना घर अवैध निर्माण था? या फिर प्रशासन ने बिना किसी जांच बिना किसी सबूत दंगे के नाम पर जिसका मन किया उसका घर गिरा दिया? अगर किसी ने सरकारी जमीन पर कब्जा किया है तो प्रशासन इतने दिनों से कहां था? इन्हें अवैध निर्माण करने क्यों दिया गया?

क्या अवैध निर्माण करने वालों को कानूनी तौर पर नोटिस दिया गया था? पीड़ित कहते हैं नहीं. हड़बड़ी में गड़बड़ी का नतीजा कि अब सरकार पीएम आवास लाभार्थी का टूटा मकान बनाने को मजबूर है.

एक और मामला देखिए. बड़वानी में प्रशासन ने तीन लोगों पर दंगों में शामिल होने का आरोप लगाया, उनके घर तोड़े फिर पता चला कि दंगे वाले दिन तो वो तीनों जेल में थे. अब पुलिस कह रही है नाम कन्फ्यूजन चेक कर रहे हैं.

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एक विरोधाभास देखिए कि स्थानीय प्रशासन तोड़फोड़ के पीछे अवैध निर्माण को वजह बता रहा है वहीं एमपी के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने खुलेआम कहा था कि जिन्होंने पत्थर चलाए उनके घरों को पत्थर में बदल देंगे.

जहांगीरपुरी में उत्तरी दिल्ली नगर निगम की जल्दबाजी?

अब आते हैं दिल्ली के जहांगीरपुरी. जहां हनुमान जयंती के जुलूस के दौरान हिंसा भड़की. जिसके बाद बीजेपी नेताओं का बयान आया कि पत्थरबाजों के घर बुलडोजर चलेंगे.. बस फिर क्या था उत्तरी दिल्ली नगर निगम जागी और अतिक्रमण हटाओ के नाम पर बुलडोजर लेकर पहुच गई. लोगों के ठेले, दुकान, मकान पर तोड़फोड़ शुरू.

लेकिन इसी बीच देश की सबसे बड़ी अदालत ने बुलडोजर पर ब्रेक लगाने का आदेश दे दिया. हालांकि अदालत के आदेश का मजाक बनाते हुए उत्तरी दिल्ली नगर निगम के अधिकारियों ने बुलडोजर चलाना जारी रखा था. अदालत ने फिलहाल दो हफ्ते तक बुलडोजर की चाभी सीज कर ली है.

इस मामले में एक याचिकाकर्ता के वकील दुष्यंत दवे ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि दिल्ली में करीब 1731 अवैध कॉलोनियां हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि फिर एमसीडी जहांगीरपुरी में ही क्यों बुलडोजर लेकर पहुंच गई?

क्या कहता है कानून?

मध्य प्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने 11 अप्रैल को एक प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि, ‘जिस घर से पत्थर आए हैं, उस घर को पत्थरों का ही ढेर बनाएंगे.’ लेकिन सवाल है कि क्या ऐसा कोई कानून है जो इस तोड़फोड़ को सही ठहराता है? जवाब है नहीं. संसद या मध्य प्रदेश विधानसभा ने ऐसा कोई कानून नहीं बनाया है जोकि बिन जांच, अदालती आदेश के उन लोगों की संपत्ति को ध्वस्त करने की इजाजत देता हो जो दंगों में शामिल हों और जिन्होंने सार्वजनिक या निजी संपत्ति को नुकसान पहुंचाया हो. और यहां न जांच हुई, न अदालत गए और न ही किसी पक्ष की बात सुनी गई?

अब आते हैं मध्य प्रदेश सार्वजनिक और निजी संपत्ति के नुकसान का निवारण और वसूली कानून, 2021 पर.

मध्य प्रदेश सरकार ने दिसंबर 2021 में उत्तर प्रदेश की तर्ज पर एक कानून पारित किया था जिसमें सार्वजनिक और निजी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने (दंगों या प्रदर्शनों के दौरान या किसी और तरह से) के आरोपियों को नुकसान का हर्जाना देने का नोटिस भेजा जा सकता है. यह कानून आरोपियों की संपत्ति की कुर्की करने की अनुमति देता है, लेकिन यह तभी किया जा सकता है, जब दावे की औपचारिक प्रक्रिया शुरू हो गई हो और यह पता चल गया हो कि व्यक्ति संपत्ति को नुकसान पहुंचाने में शामिल था.

वैसे प्रदर्शनकारियों से नुकसान की भरपाई वाले उत्तर प्रदेश के कानून को फिलहाल अदालतों में चुनौती दी गई है. सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में यूपी सरकार को आदेश दिया है कि वह उन लोगों को मुआवजा दे जिनसे क्लेम्स ट्रिब्यूनल की प्रक्रिया का पालन किए बिना नुकसान की भरपाई की गई है.

अब आते हैं अवैध निर्माण वाले तर्क पर. कानून कहता है कि किसी व्यक्ति की निजी संपत्ति को तभी तोड़ा और गिराया जा सकता है, लेकिन यहां भी ये जनना जरूरी है कि ऐसे अवैध संपत्ति को गिराने से पहले बकायदा एक प्रक्रिया का पालन किया जाता है. इसमें उस व्यक्ति को अपनी बात कहने का मौका भी दिया जाता है.

1984 के मध्य प्रदेश भूमि विकास नियम के नियम संख्या 12- अधिभोग का अतिक्रमण (ऑक्यूपेंसी वायलेशन) में कहा गया है कि अगर कोई व्यक्ति नियमों का उल्लंघन करते हुए किसी इमारत का इस्तेमाल कर रहा है तो उसे नोटिस भेजा जाना चाहिए और फिर उसे दस दिन देने होंगे कि वह या तो वहां से चला जाए या उसे लीगल बनाए.

लेकिन खरगौन में जिनके मकान-दुकान तोड़े गए हैं, उनमें से ज्यादातर लोगों ने द क्विंट को बताया है कि उन्हें अवैध कब्जे से संबंधित कोई नोटिस नहीं दिया गया था. यही हाल दिल्ली के जहांगीरपुरी का भी है. एनडीएमसी का दावा है कि मकान नहीं तोड़े बल्कि अतिक्रमण हटाए गए हैं, लेकिन इसके लिए भी उन्हें वक्त दिया जाना चाहिए था.

अब सवाल है कि फिर सत्ता पक्ष बुलडोजर पर क्यों सवार है? 2022 तक सबके सर पर छत का वादा करने वाले देश में क्यों लोगों के घरों और सपनों पर बुलडोजर चलाए जा रहे हैं? आरोप लगाया जा रहा है सरकार एक समुदाय विशेष में डर पैदा करने के लिए बुलडोजर को हथियार बना रही है. अगर ये सच है तो हर भारतीय पूछेगा जनाब ऐसे कैसे?

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