(वीडियो एडिटर- आशुतोष भारद्वाज, संदीप सुमन)
कोरोना की दूसरी लहर के पीक के बीच मध्य प्रदेश के दमोह में हुए उपचुनाव ने कई सारे परिवारों को उजाड़ दिया है. चुनाव ड्यूटी पर गए 57 से ज्यादा शिक्षकों की मौत हुई है और कोरोना संक्रमण की वजह से करीब 28 शिक्षकों की मौत हुई है. कई शिक्षक बुरी तरह कोरोना से संक्रमित हुए और खर्चीले ट्रीटमेंट के बाद ठीक हो पाए. उनका कहना है कि कोरोना संकट के ऐसे माहौल में चुनाव नहीं कराए जाने चाहिए थे. अब इन परिवारों का सरकार से उचित मुआवजे, पेंशन, अनुकंपा नियुक्ति की उम्मीद है.
जिन परिवारों ने अपनों को खो दिया है, उनका बस एक ही सवाल है कि आखिर चुनाव कराने की मंजूरी किसने दी?
सरकारी सिस्टम की लचर हालत का अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि कोरोना संक्रमण से जान गंवाने के बावजूद कई परिवारों के पास ऐसा कोई सरकारी प्रमाण पत्र नहीं है जिससे साबित हो कि उनके परिवारजन की मौत कोरोना की वजह से हुई है.
57 शिक्षकों की मौत, 28 का कोरोना से निधन
लाल सिंह लोधी, भरत कुमार चौरसिया, हरिराम प्रजापति, ब्रजकिशोर समदड़िया... जैसे कुल 57 शिक्षकों की हुई मौत पिछले 2 महीने में हुई है. उपचुनाव के दौरान 200 से ज्यादा शिक्षक कोरोना संक्रमित हुए और 2 दर्जन से ज्यादा शिक्षकों की कोरोना संक्रमण से मौत हुई.
एक परिवार में दोनों कमाने वालों का निधन
दमोह जिले के किन्दरो गांव की रहने वाली बुजुर्ग पार्वती देवी के तीन बेटों में से दो कमाने वाले बेटों का ही निधन कोरोना संक्रमण से हो गया. मंझला बेटा जो शिक्षक था, चुनाव ड्यूटी से लौटने के बाद बीमार पड़ा और कोरोना संक्रमण का शिकार हो गया. इसी दौरान छोटे बेटे की भी तबीयत खराब हुई और उसकी मौत हो गई. कुछ दिन बाद शिक्षक बेटे की भी मौत हो गई. अब घर सूना हो गया है. 5 बच्चे और 2 महिलाएं विधवा हो गई हैं. परिवार के भविष्य पर घोर अनिश्चितता के बादल छा गए हैं.
"पहले छोटे बेटे का निधन हुआ,फिर बड़ा बेटा नहीं रहा. अब इन बच्चों को कौन पालेगा? सब कुछ चला गया. चुनाव किसने आयोजित कराए थे? हमारे बेटे चले गए. नाती, पोते घूम रहे हैं, बहू बैठी है, अब इनकी परवरिश कौन करेगा? प्रहलाद पटेल ने ये चुनाव क्यों कराया? शिक्षकों की ड्यूटों लगाई? औरतें पर्दा में रहती हैं. अगर हमारा संगठन होता तो मंत्री प्रहलाद पटेल से हम सब ये कहते".पार्वती देवी, शिक्षक राघवेंद्र की मां
करीब 200 शिक्षक हुए संक्रमित, जेब से खर्चे हजारों रुपये
कई शिक्षक इस दुनिया को छोड़कर चले गए, लेकिन कई शिक्षक बुरी तरह कोरोना से संक्रमित हुए और खर्चीले ट्रीटमेंट के बाद ठीक हो पाए. वो भी मानते हैं कि चुनाव को लेकर हुए प्रशिक्षण और फिर ड्यूटी करने के दौरान वो संक्रमित हुए. उनका कहना है कि कोरोना संकट के ऐसे माहौल में चुनाव नहीं कराए जाने थे.
परिवारों की मांग , सरकार दे उचित मुआवजा, पेंशन
चुनाव में ड्यूटी करने की वजह से जो लोग अपने परिवारों को छोड़कर चले गए उनको तो वापस नहीं लाया जा सकता, लेकिन सरकार उनका भविष्य सुरक्षित कर सकती है. विधवा हो चुकीं देवकी बाई सरकार से सवाल पूछ रही हैं कि अब जो उन्हें पेंशन के रूप में 5 हजार रुपए मिलेंगे, उनसे घर कैसे चलेगा?
सरकारी सिस्टम की लचर हालत का अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि कोरोना संक्रमण से जान गंवाने के बावजूद कई परिवारों के पास ऐसा कोई सरकारी प्रमाण पत्र नहीं है जिससे साबित हो कि उनके बेटे राघवेंद्र की मौत कोरोना की वजह से हुई है.
अध्यापक संगठन संघ के लिए काम करने वाले आरिफ अंजुम ऐसे अपने शिक्षक साथियों की मौत के उचित मुआवजे की मांग उठा रहे हैं और उन परिवारों की मदद कर रहे हैं जिन्होंने अपने चाहने वालों को खोया है. उनका कहना है कि चुनाव आयोग मुआवजे की राशि देने में आनाकानी कर रहा है. इसके अलावा उनकी मांग है कि शिक्षकों को भी कोरोना योद्धा का दर्जा दिया जाना चाहिए.
मुद्दा उठाने के बाद प्रशासन हरकत में आया है और अब मामलों के दस्तावेज तैयार करके उचित अनुदान राशि देने की तैयारी की जा रही है. लेकिन पोलिंग होने के बाद एक महीने से ज्यादा वक्त हो गया लेकिन ज्यादातर परिवार अभी भी डॉक्यूमेंट लेकर यहां से वहां भटक रहे हैं.
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