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मंगलयान मिशन की नायिकाओं की कहानी बयां करती किताब

दुनिया भर में ये धारणा है कि महिलाओं का साइंस की दुनिया में होना एक अजूबा है और उनकी सफलता एक अपवाद! 

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साइंस में ऐसी कोई समस्या नहीं है जिसका हल सिर्फ एक पुरुष कर सकता है और महिला नहीं.

फिर भी दुनिया भर में ये धारणा है कि महिलाओं का साइंस की दुनिया में होना एक अजूबा है और उनकी सफलता एक अपवाद. लेकिन भारत में महिलाओं ने इस धारणा पर चोट किया है. स्पेस साइंस के क्षेत्र में महिलाओं ने चुपचाप कई कारनामे कर दिखाए हैं और कर रही हैं.

इसी को लेकर लिखी गई है किताब- 'THOSE MAGNIFICENT WOMEN AND THEIR FLYING MACHINES: Isro's mission to Mars' (दोज मैग्निफिसेंट विमन एंड देयर फ्लाइयिंग मशीन्स: इसरोज मिशन टू मार्स)

ये किताब उन महिला वैज्ञानिकों के जीवन, संघर्ष और जीत की कहानी बताती है, जिन्होंने भारत के मंगल मिशन को उसके अंजाम तक पहुंचाया.

2013 के अंत में, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने भारत के पहले इंटर प्लेनैट्री मिशन मंगलयान को लाॅन्च किया था. देश ने पहली बार साड़ी में लिपटी महिला साइंटिस्ट्स को इस मिशन के कामयाब लाॅन्च पर खुशी मनाते देखा था.
 दुनिया भर में ये धारणा है कि महिलाओं का साइंस की दुनिया में होना एक अजूबा है और उनकी सफलता एक अपवाद! 
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इस किताब को लिखा है मिनी वैद ने. मिनी वैद जर्नलिस्ट और डाॅक्यूमेंट्री फिल्म मेकर हैं. इससे पहले अलग-अलग सब्जेक्ट्स पर वो 3 किताबें लिख चुकी हैं.

किताब में बताया गया है कि इस मिशन में इसरो के दस केंद्रों के 500 साइंटिस्ट की एक टीम काम कर रही थी, जिसमें बड़े और मुख्य पोजीशन पर 27% महिलाएं रहीं. नंदिनी हरिनाथ और रितु करिदल ने मिशन ऑपरेशन और डिजाइन संभाला था.

मिनी वैद का मानना है कि इन महिला साइंटिस्ट्स की कहानियों को युवा लड़कियों के लिए रोल मॉडल के तौर पर सामने लाना जरूरी है. इन महिला वैज्ञानिकों ने भारत में अनगिनत युवा लड़कियों के लिए एक नया नजरिया पेश किया है, खासकर उनके लिए जो साइंस, टेक्नोलाॅजी, इंजीनियरिंग, मैथमेटिक्स से जुड़े फील्ड में काम करना चाहती हैं. जिन्हें परिवार और समाज के रोक-टोक का सामना करना पड़ता है- जो मानते हैं कि साइंस ‘लड़कियों के लिए नहीं' है.

21 महिला साइंटिस्ट्स पर इस किताब में कई चैप्टर्स हैं. नंदिनी हरिनाथ, रितु करिदल के अलावा मीनल संपत और मौमिता दत्ता सहित कई अनुभवी महिला साइंटिस्ट जैसे एन वालरमथी, सीता सोमसुंदरम और टीके अनुराधा के साथ बातचीत कर मिनी ने कई रोचक बातें और उनके अनुभव को दर्ज किया है.

 दुनिया भर में ये धारणा है कि महिलाओं का साइंस की दुनिया में होना एक अजूबा है और उनकी सफलता एक अपवाद! 
ये जर्नलिस्ट और डाॅक्यूमेंट्री फिल्म मेकर मिनी वैद की चौथी किताब है.
(फोटो: क्विंट हिंदी)

इंटरव्यू के दौरान, कई कहानियां थीं जिन्होंने मिनी को प्रभावित किया. इसमें टीके अनुराधा का किस्सा काफी दिलचस्प है. मेडिसिन और इंजीनियरिंग टाॅपर अनुराधा ने अपने पिता की इच्छा के खिलाफ इस फील्ड को चुना था. काॅलेज के दौरान उनके साथ पढ़ने वाले विदेश जा रहे थे, लेकिन उन्होंने इस मौके को ठुकरा दिया. करीब तीन दशकों तक इसरो में काम करने के साथ ही अनुराधा ने परिवार भी संभाला.

ये किताब महिलाओं के रास्ते में आने वाली तमाम चुनौतियों का भी जिक्र करती है.

किताब का एक अंश कहता है:

“साइंस के क्षेत्र में काम करना या लैब में लंबे समय तक काम करना, 9 से 5 बजे तक की रेगुलर जाॅब से अलग है. कई महिला साइंटिस्ट खुद को सीमित कर लेती हैं, ऊंचे पद पर नहीं पहुंच पाती क्योंकि वहां ज्यादा चैलेंजेज हैं, यात्राएं करनी पड़ती है ताकि वो दूसरे काम के लिए अपना समय और एनर्जी बचा सकें. वो बाकी हर काम जो किसी महिला से उम्मीद की जाती है.”

इन महिला साइंटिस्ट के अनुभवों के जरिये ये किताब युवा लड़कियों के लिए प्रेरणा है. ये लड़कियों को बताता है कि सफल साइंटिस्ट बनने के लिए जरूरी नहीं कि वे चुपचाप अकेले में पढ़ती रहें. युवा लड़कियां परिवार के साथ समय बिताने के साथ-साथ स्पेस में रॉकेट भी लॉन्च कर सकती हैं. मंगल तक पहुंच बना सकती हैं. महिलाएं उन रास्तों को चुन सकती हैं और सफल हो सकती हैं जिस पर काफी कम लोगों ने सफर किया हो, जैसे इसरो की इन महिला साइंटिस्ट्स ने कर दिखाया.

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