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2019 ओपिनियन पोल: पश्चिम जोन में BJP के ‘नुकसान’ की चर्चा क्यों?

क्या मोदी 20 साल से हाथ में रहे गुजरात को ‘खोने’ जा रहे हैं?

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(चुनाव विश्लेषक योगेन्द्र यादव और यशवंत देशमुख के बीच बातचीत की सीरीज का दूसरा भाग. पहला भाग यहां पढ़ें.)

मेरा मानना था कि पूर्वी हरित प्रदेशों में बीजेपी के लिए योगेंद्र यादव का अनुमान हमारी गणना से बहुत अलग होगा. मुझे आश्चर्य है कि ऐसा नहीं हुआ. हालांकि पश्चिम जोन पर हममें बहुत फर्क है तो इसमें आश्चर्य नहीं होना चाहिए. योगेंद्र यादव का आकलन है कि बीजेपी को 15 से 20 सीटों का नुकसान होगा, लेकिन इसके समर्थन में आंकड़े नहीं हैं.

आंकड़ों के अनुसार पश्चिम में बीजेपी को नुकसान न्यूनतम है. यद्यपि ट्रैकर के अनुसार सीटों में नुकसान का यह अनुमान मूल रूप से इसलिए है क्योंकि शिवसेना सिमट रही है.

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बीजेपी-शिवसेना में तलाक और वोटों का नुकसान

बीजेपी अपने परम्परागत समर्थक समूहों में अपना किला बचाए हुए है. इसलिए पार्टियों के नामों को और उन्हें हो रहे नुकसान पर स्पष्ट हो लिया जाए. इस बहस में मुख्य विषय के तौर पर हम बीजेपी को कुल फायदे या नुकसान की चर्चा कर रहे हैं. पश्चिम जोन में वोट शेयर पर बस एक नजर डाल लें, तो बात बहुत साफ हो जाती है.

2014 के चुनावों में बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए (शिवसेना समेत) के पक्ष में पश्चिम जोन में 54 फीसदी वोट पड़े थे जबकि कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए के लिए (एनसीपी समेत) 34 फीसदी. 16 नवम्बर तक ट्रैकर के मुताबिक यूपीए (जिसका मतलब निश्चित रूप से एनसीपी के बिना कांग्रेस है) के लिए 32 फीसदी मतदान हो रहा है और एनडीए (जिसका मतलब साफ है कि शिवसेना के बिना बीजेपी) के पक्ष में 44 फीसदी मतदान हो रहा है.

मतलब ये कि जो 10 फीसदी वोटों का नुकसान है, वह सीधे शिवसेना के नाम है जिसने अकेले सभी सीटों पर चुनाव लड़ने का फैसला किया है. इसका नतीजा सिर्फ महाराष्ट्र में एनडीए के खाते में 17 लोकसभा सीटों के नुकसान से कम नहीं हो सकता. लेकिन, यह बीजेपी के खाते में नुकसान नहीं है क्योंकि इस नुकसान में उसकी हिस्सेदारी महज 3 सीटों की है, जबकि शिवसेना को 14 सीटों का नुकसान हो रहा है. इसी बिंदु की ओर मैंने पहले इशारा किया था.

पश्चिम जोन में बीजेपी को क्या कोई नुकसान हो रहा है?

यादव : पश्चिम क्षेत्र गवाह बनने जा रहा है जहां चुनाव में बीजेपी की टैली बहुत छोटी हो जाएगी. इसने 2014 में 6 सीटों को छोड़कर इस क्षेत्र की सभी सीटें अपने नाम की थी. उसके बाद से एंटी इन्कम्बेन्सी ने सभी तीनों राज्यों में असर डाला है.

गुजरात के गांवों में अस्थिरता, महाराष्ट्र में किसानों के आंदोलन, शिवसेना के साथ बढ़ी हुई मुश्किलें और गोवा में अपवित्र व छद्म सरकार से ऐसा लगता है कि इस इलाक़े में बीजेपी के खिलाफ मंच तैयार है. सर्वेक्षणों से भी पता चलता है कि बीजेपी को इसका नुकसान हो सकता है.

गुजराती प्रधानमंत्री होने की वजह से गुजरात में विधानसभा चुनाव के दौरान कुछ सीटों के हुए नुकसान से पार्टी उबर सकती है. महाराष्ट्र में अगर शिवसेना बीजेपी से दूर होती है तो एनडीए को एनसीपी-कांग्रेस गठबंधन के रूप में साझी ताकत का सामना करना होगा. कुल मिलाकर बीजेपी को इस क्षेत्र में 15 से 20 सीटों का नुकसान हो सकता है.

देशमुख (लेखक स्वयं) : ‘पहले की तरह’ वाली सोच से सहमत हूं, लेकिन संख्या से नहीं। बीजेपी पश्चिम में शायद ही कुछ खोने जा रही है। इसने पिछली बार 53 सीटें जीती थी और हमारे ट्रैकर के मुताबिक इसकी वर्तमान टैली 50 है। 3 सीटों का मामूली नुकसान।

हां, एनडीए के सहयोगियों की टैली में 14 सीटों का बड़ा नुकसान है जो 2014 मे 19 सीटों से घटकर 5 पर सिमट रही है। ये नुकसान किसे हो रहा है इसे समझना जटिल नहीं है। अगर मुझे यह चुनना पड़े कि पिछले 5 सालों में मुझे भारतीय राजनीति में सबसे ज्यादा नुकसान में कौन रहा, तो वह पार्टी इंडियन नेशनल लोकदल या अन्नाद्रमुक या यहां फिर सीपीएम भी नहीं है। वह है शिवसेना। वे बीजेपी की वजह से पूरी तरह से दरकिनार कर दिए गये हैं। महाराष्ट्र के वोटरों के हाथों वे इतने अपमानित हुए हैं कि मुम्बई क्षेत्र में अब उन पर अपना अस्तित्व बचाने का दबाव है।

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हां, अगर वे अकेले चलने का फैसला करते हैं तो इससे कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन महाराष्ट्र में स्वीप करेगी, लेकिन ऐसा तभी होगा जब शिवसेना पूरी तरह से धराशायी हो जाए.

वास्तव में क्या सोचते हैं एनडीए समर्थक

जैसा कि हिंदी में कहते हैं “हम तो डूबेंगे सनम, तुमको भी ले डूबेंगे”. लेकिन, यहां ट्विस्ट ये है कि बीजेपी के पास बचाव के लिए जीवन रक्षक जैकेट के तौर पर बेहद लोकप्रिय प्रदेश नेतृत्व है जिसे समान रूप से लोकप्रिय केंद्रीय नेतृत्व का इस लम्बी दौड़ में पूरा समर्थन है. लेकिन, उस स्थिति में शिवसेना ऐसी स्थिति में पहुंच जाएगी, जहां से वापसी सम्भव नहीं. इस तरह योगेंद्र यादव का ज़ोर देकर यह कहना कि “बीजेपी को 15 से 20 सीटों का इस क्षेत्र में नुकसान हो सकता है”, केवल शिवसेना पर पर लागू होता है, बीजेपी पर नहीं.

हाल में शीर्ष मराठी न्यूज चैनल एबीपी-माझा की ओर से हुए वार्षिक रिपोर्ट कार्ड सर्वे सामने आया, हमने पाया कि केंद्र और राज्य में एनडीए सरकार के बारे में शिवसेना के समर्थक जो सोचते हैं उससे शिवसेना नेतृत्व पूरी तरह से कट गया है.

न केवल शिवसेना के वोटरों में इन सरकारों के लिए संतुष्टि का भाव बहुत ज्यादा था, सबसे महत्वपूर्ण ये है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री देवेंड्र फडणवीस के नेतृत्व के बारे में उनकी राय वैसी नहीं दिखी जो ‘मातोश्री’ की जमात के मनोनुकूल हो.

पश्चिम ज़ोन में सी वोटर के हिसाब से ‘सीटों का नुकसान’

एक अन्य मराठी न्यूज चैनल टीवी 9 मराठी की रिपोर्ट कार्ड सीरीज में मध्यप्रदेश से भी ऐसे ही रुझान सामने आ रहे हैं. जब सीधा सवाल पूछा गया, ‘राहुल गांधी और नरेंद्र मोदी में से प्रधानमंत्री के रूप में किसे पसंद करेंगे’, शिवसेना के वोटरों ने जबरदस्त बहुमत से मोदी को पसंद किया.

राज ठाकरे के नेतृत्व वाले एमएनएस समर्थकों के साथ भी यही सच है जबकि एनसीपी उनके लिए कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन में जगह बनाने की कोशिश में जुटी है. सीवोटर-टीवी 9 महाराष्ट्र ट्रैकर में वोटरों से इस सम्भावना के बारे में भी सवाल किया.

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केवल कांग्रेस और एनसीपी समर्थक इस सम्भावना पर उत्साहित दिखे जबकि एमएनएस के 80 फीसदी समर्थकों ने महाराष्ट्र में कांग्रेस के नेतृत्व वाले मोर्चे से जुड़ने के विचार का विरोध किया.

सी वोटर ट्रैकर पश्चिम में 3 सीटों का मामूली नुकसान दिखा रहा है जिसमें गोवा में अनुमानित नुकसान शामिल है. गोवा लोकसभा के लिए 2 सांसद चुनता है.

बहरहाल, गोवा के लिए इस बात का जिक्र करना बहुत जरूरी है कि राज्य में बीजेपी की 17 फीसदी की बढ़त घटकर 4 फीसदी पर आ चुकी है. ऐसा कहना कि गोवा में बीजेपी सरकार अलोकप्रिय हो गयी है, वास्तव में सच की पर्देदारी है. यह वर्तमान लोकप्रिय मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर के लिए गोवा वासियों के लगाव की अनदेखी है, जो इन दिनों बहुत बीमार हैं.

क्या मोदी 20 साल से हाथ में रहे गुजरात को ‘खोने’ जा रहे हैं?

बीजेपी गोवा में उनकी अनुपस्थिति के कारण विधानसभा चुनाव हार गयी, लेकिन कांग्रेस के राजनीतिक कुप्रबंधन की वजह से किसी तरह सरकार बनाने में कामयाब रही.

एन्टी इनकम्बेन्ट के तौर पर यह फैसला इतना व्यापक था कि बीजेपी 2014 में 53 प्रतिशत की ऊंचाई से गिरकर 2017 में 33 फीसदी पर आ पहुंची. यह 20 फीसदी वोटों का अभूतपूर्व नकारात्मक स्विंग है. बीजेपी के मुख्यमंत्री लक्ष्मीकांत पारसेकर की अपमानजनक पराजय भी इसी का नतीजा रहा.

लेकिन 2017 के विधानसभा चुनावों में निर्णायक रूप से मतदाताओं द्वारा नकार दिए जाने के बावजूद ‘किसी भी कीमत पर’ सत्ता में आने के बीजेपी की सोच ने वोटरों को नाराज कर दिया है.

बहरहाल इस बात पर ध्यान देना जरूरी है कि राज्य की दो बड़ी पार्टियां एमजीपी (11.3 फीसदी) और जीएफपी (3.5 फीसदी) बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकार में शामिल हो गयीं और उन्हें मिलाकर 15 फीसदी वोटं से बीजेपी को हुए 20 फीसदी नुकसान की अच्छा खासी भरपाई हो गयी. सी वोटर ट्रैकर में गोवा के मतदाताओं के बीच बीजेपी के लिए यही 44 फीसदी वोटों का रुझान नजर आता है.

गुजरात में ये बात नहीं है। गुजरात के बारे में जितना मैं कम कहूं, उतना अच्छा रहेगा. ल्यूटन्स मीडिया और स्रोतों के मुताबिक बीते 20 सालों से हाथ में रहे गुजरात को मोदी खोने जा रहे हैं. जबकि, हमारा ट्रैकर गुजरात में एक या दो सीटों का नुकसान दिखा रहा है. आप चाहें तो लिखित में ले लें कि वास्तव में 26-0 एक बार फिर हो सकता है। ल्यूटन्स पूर्वाग्रही हैं.

गुजराती वोटरो में शहरी-ग्रामीण विभाजन

विगत विधानसभा चुनावों के दौरान गुजरात के वोटिंग पैटर्न को लेकर शहरी-ग्रामीण विभाजन के बारे में बहुत कुछ लिखा गया. सच्चाई ये है कि कांग्रेस को मिले महज 41 फीसदी वोटों की तुलना में बीजेपी को 49 फीसदी वोट मिले. एकतरफा सनसनीखेज मतलब निकाला गया कि बीजेपी ‘महज 99’ सीट जुटा पायी, जबकि कांग्रेस ने ‘जबरदस्त 77’ सीटें हासिल कीं. इस बात को नजरअंदाज न करें कि बहुत समय बाद ऐसा हुआ था कि नरेंद्र मोदी मुख्यमंत्री उम्मीदवार नहीं थे.

सच्चाई यह भी है कि पिछले चुनावों के मुकाबले बीजेपी को मिले वोट वास्तव में 1 फीसदी बढ़ गए. आखिरकार राज्य में बीजेपी के निर्बाध 20 साल के शासन से एन्टी इनकम्बेन्सी ‘वेब’ के बावजूद कांग्रेस महज 2.5 फीसदी वोटों का फायदा ही अपने नाम कर सकी. अब भी यह ‘मोदी रहित’ बीजेपी से 8 प्रतिशत पीछे है.

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‘पटेल वोट’ पर क्या कहा जाए?

निष्पक्ष रूप से कहें, तो उत्तर गुजरात और सौराष्ट्र में वोट शेयर के मामले में बीजेपी के बराबर थी कांग्रेस. आखिरकार सवाल महज 10 अतिरिक्त विधानसभा सीटों का इधर से उधर होने का था. राज्य स्तर पर 8 से 10 प्रतिशत के वोटों के बड़े अंतर के बावजूद बीजेपी को चुनावी इतिहास में विचित्र हार का सामना करना पड़ सकता था. अनामत आंदोलन के बाद पटेल वोटों के नुकसान के कारण यह सम्भव था.

पटेल वोटों को लेकर सी वोटर ट्रैकर डाटा, जिसमें 2014 के लोकसभा चुनाव और 2017 के विधानसभा चुनावों में वोटिंग व्यवहार की तुलना है, साफ दिखाती है कि गुजरात के पटेल वोटरों के बीच बीजेपी से 20 फीसदी वोट छिटक रहा है और ये वोट तकरीबन पूरी तरह से कांग्रेस की ओर जा रहे हैं.

2017 विधानसभा चुनावों में लोकसभा स्तर पर बढ़त का समग्र आकलन बताता है कि बीजेपी कांग्रेस से पिछड़ रही है. केवल एक या दो सीटों पर नहीं, बल्कि 8 लोकसभा सीटों पर. इनमें से 5 उत्तर गुजरात की है और 3 सौराष्ट्र क्षेत्र से.

गुजरात मे बीजेपी को 6 फीसदी वोटों की बढ़त

हां, मैं समझता हूं कि गुजरात में बीजेपी को मिली 8 प्रतिशत की बढ़त उन ‘शहरी’ सीटों के कारण थी, जिन्हें बीजेपी ने बड़े अंतर से जीता। इसके विपरीत बीजेपी ने कांग्रेस के हाथों जिन ‘ग्रामीण’ सीटों को गंवाया, वहां अंतर छोटा था। मगर, यह तथ्य बीजेपी के मुकाबले कांग्रेस के लिए अधिक परेशानी का कारण है. क्योंकि, ग्रामीण इलाकों में ये सभी छोटे अंतर तब ख़त्म हो जाएंगे जब गुजराती एक गुजराती प्रधानमंत्री के लिए वोट करने निकलेंगे.

ट्रैकर डाटा गुजरात में कांग्रेस के लिए 38 फीसदी वोटों के मुकाबले बीजेपी के लिए 55 फीसदी वोटों का रुझान बता रहा है.

यह बीजेपी के लिए 6 फीसदी की बढ़त और कांग्रेस को 3 फीसदी का नुकसान है. इस वजह से 9 फीसदी वोटों का अंतर और हो जाता है. लोकसभा में वोटिंग के लिए 17 फीसदी वोटों के कुल अंतर का यह रुझान चौंकाने वाला है.

लोकसभा स्तर पर 2017 में ‘बढ़त’ हमें बताती है कि बमुश्किल जूनागढ़ को छोड़कर जहां कांग्रेस की बढ़त 10 फीसदी थी, बाकी 7 सीटों पर 2017 में 1 से 5 फीसदी वोटों का अंतर था. वर्तमान आंकड़े में आप 9 फीसदी का रिवर्स स्विंग जोड़ लें तो आप पाएंगे कि कांग्रेस के लिए लोकसभा स्तर पर केवल एक सीट पर बढ़त है और वह भी मामूली 1 प्रतिशत के अंतर से. ये है गुजरात.

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आकलन और जमीनी हकीकत

किसी हद तक मैं यादव के ‘राजनीतिक’ अवलोकनों से सहमत हूं लेकिन निश्चित रूप से संख्या पर सहमत नहीं हूं. खास सोच के साथ संख्या को अनौपचारिक तरीके से समेटने पर सही अवलोकन नहीं हो पाता. पश्चिम क्षेत्र में बीजेपी को नुकसान की बहुत ज्यादा चर्चा इतनी अनौपचारिक है कि आपने पलक झपकाई और गलती हुई. ऐसे ही अनौपचारिक आकलन होते रहे हैं. वास्तव में जमीन पर क्या होता है:

  • पूरब मे आकलन: बीजेपी को 20 अतिरिक्त सीटों मिल सकती हैं
  • तथ्य: 16 नवंबर तक बीजेपी को 24 सीटों का फायदा
  • पश्चिम में आकलन: बीजेपी को 15 से 20 सीटों का नुकसान सम्भव
  • तथ्य: 16 नवंबर के हिसाब से बीजेपी को 3 सीटों का नुकसान

इस तरह पश्चिम ज़ोन के लिए सीएसड़ीएस के संजय कुमार का आकलन सही प्रतीत होता है, “गुजरात समेत हिन्दी बेल्ट में बीजेपी को नुकसान उतना बड़ा नहीं होगा जितना योगेंद्र यादव मानते हैं, कांग्रेस को अपने पक्ष में बड़ी हवा की ज़रूरत होगी”.

(लेखक सी वोटर इंटरनेशनल के सह निदेशक हैं. उनका ट्विटर है @YRDeshmukh. यह एक विचार है. व्यक्त विचार लेखक के हैं. क्विंट इसकी वकालत नहीं करता, न ही इसके लिए ज़िम्मेदार है.)

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