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सर्वे में NDA को बहुमत, पर 276 के आंकड़े तक पहुंचे कैसे?

सबसे बड़ा सवाल ये कि एनडीए को दिए गए 276 सीटों का आकलन कैसे किया गया?

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ABP News-CVoter सर्वे में एनडीए को मिले 276 सीटों का आकलन कैसे हुआ, इसे लेकर कई सवाल बने हुए हैं. मैंने इस सर्वे का लाइव टेलीकास्ट नहीं देखा था. चूंकि बड़े सर्वे से लोगों के रुझान की थोड़ी-बहुत जानकारी मिलती है, तो इस सर्वे के आंकड़ों को जानने में भी मेरी रुचि थी. लेकिन ABP News बेवसाइट पर सर्वे से जुड़ी खबरों को पढ़ने के बाद मेरे अब भी कई सवाल हैं, जिनके जवाब नहीं मिले हैं.

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  • सबसे बड़ा सवाल ये कि एनडीए को दिए गए 276 सीटों का आकलन कैसे किया गया?
  • यही नहीं, पश्चिम बंगाल, गुजरात और झारखंड के आंकड़े मुझे कहीं क्यों नहीं मिले?
  • यूपीए में किन पार्टियों को शामिल किया गया है? क्या JD(S), TDP, NCP, RJD, TMC, DMK या लेफ्ट को यूपीए का हिस्सा माना गया है?

सर्वे में 543 लोकसभा सीटों में करीब 32,000 लोगों से बात की गई. इसका मतलब एक लोकसभा में करीब 60 वोटरों का रुझान पूछा गया.

हमें जो जानकारी दी गई, उसके हिसाब से 2019 के लोकसभा चुनाव में एनडीए को 276 सीटें मिल सकती हैं. एनडीए के वोट शेयर में थोड़ी कमी आ सकती है. प्रधानमंत्री की लोकप्रियता में कमी आई है. 2017 के 69 परसेंट से ये घटकर अब 60 परसेंट रह गया है. लेकिन सर्वे के नतीजों से जुड़े मेरे कई सवाल हैं:

एबीपी न्यूज वेबसाइट पर जो आंकड़े हैं, उसके हिसाब एनडीए के सीटों की गिनती 253 की होती है, अगर इसमें यूपी में 80 में से 70, बिहार में 40 में से 31 और महाराष्ट्र में 48 में से 36 एनडीए को हासिल होती है. यहां बता दें कि चूंकि तीन राज्यों की 82 सीटों की जानकारी नहीं है, तो क्या यह मान लिया जाए कि इन तीन राज्यों में एनडीए को 23 सीटें मिलेंगी?

सबसे बड़ा सवाल ये कि एनडीए को दिए गए 276 सीटों का आकलन कैसे किया गया?

क्या आकलन इस आधार पर किया गया है कि एनडीए रॉक सॉलिड है, जबकि विपक्ष बिखरा ही रहेगा? मतलब क्या एनडीए के बेस्ट प्रदर्शन को जोड़कर 276 का आंकड़ा दिया गया है?

क्या वोटर विधानसभा और लोकसभा के लिए अलग-अलग तरीके से वोट करते हैं? हाल के सारे सर्वे ये इशारा कर रहे हैं कि मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में बीजेपी को झटका लग सकता है. लेकिन एबीपी-सीवोटर के सर्वे के हिसाब से विधानसभा के नतीजे कुछ भी हों, लोकसभा चुनाव में लोग बीजेपी को भर-भरकर वोट देने वाले हैं.

लेकिन क्या ऐसा होता है?

इन तीनों राज्यों के पिछले तीन चुनावों को देखें, तो ऐसा बिल्कुल नहीं होता है. एक रिसर्च के मुताबिक, जिन राज्यों में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साल के अंदर होते हैं, वहां एक जैसे नतीजे की संभावना 82 परसेंट होती है. ऐसे में ये जानना जरूरी है कि सर्वे में ऐसे क्या चौंकाने वाले आंकड़े मिले, जिससे लगा कि विधानसभा में कुछ भी हो, लोकसभा में तो बीजेपी को ही वोट मिलेगा. अब बात बीजेपी के दक्षिण राज्यों में प्रदर्शन की.

सर्वे में कहा गया है कि एनडीए को इन राज्यों की 129 में 21 सीटें मिल सकती हैं. याद रहे कि बीजेपी को कर्नाटक में 17, तमिलनाडु में 1 और उस समय के अविभाजित आंध्र प्रदेश में 3 सीटें मिली थीं.

  • आंध्र प्रदेश में बीजेपी ने टीडीपी के सहयोगी के रूप में चुनाव लड़ा था. अब टीडीपी बीजेपी की सहयोगी नहीं है. तो क्या बीजेपी का पिछला प्रदर्शन बरकरार रहेगा?
  • क्या बीजेपी इस कमी को दक्षिण के दूसरे राज्यों में पूरा करेगी?
सबसे बड़ा सवाल ये कि एनडीए को दिए गए 276 सीटों का आकलन कैसे किया गया?
अब टीडीपी बीजेपी की सहयोगी नहीं है.
(फोटो: पीटीआई)

ओडिशा में बढ़त, लेकिन दूसरे राज्यों को कोई फर्क नहीं

सर्वे में कहा गया है कि ओडि‍शा में बीजेपी छाने वाली है. ऐसा करने के लिए बीजेपी को राज्य में पिछले लोकसभा में मिले 22 परसेंट वोट शेयर को काफी बढ़ाना पड़ेगा.

लॉ ऑफ एवरेज के हिसाब से, अगर एनडीए का ऑल इंडिया वोट शेयर कम होता है, लेकिन ओडिशा में उछाल है, तो दूसरे राज्यों में काफी कम होंगे. लेकिन सर्वे के हिसाब से ऑल इज वेल ही रहने वाला है. मतलब बिहार में 31, यूपी में 70, दिल्ली में 7 में से 7, हरियाणा में 10 से 6.

उपचुनाव के नतीजों का कोई असर नहीं दिखेगा

हाल में तीन राज्यों के उपचुनाव के नतीजों में काफी उलटफेर देखे गए, बिहार के अररिया, यूपी में गोरखपुर, फूलपुर और कैराना और महाराष्ट्र में गोंदिया भंडारा. तो क्या मान लिया जाए कि उपचुनाव के नतीजों से कोई संकेत नहीं मिलता है?

सर्वे के मुताबिक, प्रधानमंत्री की लोकप्रियता में कमी और एनडीए के वोट शेयर गिरने के बावजूद 2019 का नतीजा 2014 जैसा ही होगा. कोई तो हमें समझाए कि ऐसा कैसे होगा?

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