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BJP के नए कैंपेन में इंदिरा-नेहरू के बयानों से छेड़छाड़, मकसद मोदी का महिमामंडन

BJP के नए कैंपेन 'देश की बदली सोच' में कांग्रेसी प्रधानमंत्रियों को चालाकी से निशाना बनाया गया.

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Modi) के स्वतंत्रता दिवस के भाषण के कुछ घंटों के भीतर उनके सियासी विरोधियों और आलोचकों ने उन पर इस बात के लिए निशाना साधना शुरू कर दिया कि उन्होंने लाल किले की प्राचीर से पहले जो घोषणाएं की थीं उस पर पूरा अमल किए बिना ही नई घोषणाएं कर दी.

एक दिन बाद ही आलोचना का जवाब देने के बजाय, भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने वही किया जो करने में वो सबसे माहिर है. मतलब पुराने वादे नहीं पूरे करने के आरोपों को सिरे से दरकिनार कर दिया.

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पार्टी की सोशल मीडिया टीम ने धूमधाम से 'देश की बदली सोच' शीर्षक से एक नया सोशल मीडिया कैंपेन जारी कर दिया. इसमें कांग्रेस पार्टी के उन नेताओं को निशाना बनाया गया जो पहले भारत के प्रधानमंत्री रहे.

कुछ ही समय में वीडियो के बाद कई ट्वीट किए गए, जिसमें मोदी के बयानों को कांग्रेस के पिछले प्रधानमंत्रियों, जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और मनमोहन सिंह के बयानों से जोड़ा गया. इन प्रधानमंत्रियों के बयानों को भी प्रोग्राम से लिया गया.

अनुपम खेर के शो का एक मात्र उद्देश्य मोदी से पहले के प्रधानमंत्रियों को छोटा दिखाना और मोदी को एक ऐसे मसीहा के रूप में पेश करना था जिसकी भारत को आवश्यकता थी. देश के विकास के लिए सही दृष्टि रखने वाला इकलौता शख्स.

अगर तस्वीरों पर नजर डालें (खासकर जिन प्लेटों को ट्वीट किया गया था) उनमें मोदी को एक विशाल शख्स के तौर पर दिखाया गया था और कांग्रेसी प्रधानमंत्री उनके सामने बौने लग रहे थे. मोदी के बयानों के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला फॉन्ट, साइज बाकी दूसरे प्रधानमंत्रियों के लिए इस्तेमाल किए गए फॉन्ट और साइज से बड़े और अलग थे. यहां तक मौजूदा PM की तस्वीरें भी उनके पहले के प्रधानमंत्रियों की तुलना में बहुत बड़ी थी.

कैंपेन पूरी तरह से भक्तों के लिए था

वीडियो के कॉन्टेंट या ट्वीट के बारे में बात करें उससे पहले इसे समझना जरूरी है कि ये पूरा कैंपेन ही बीजेपी के लिए और उनके विरोधियों को नजर में रखते हुए तैयार किया गया था.

बीजेपी के इस विशेष सोशल मीडिया अभियान में सत्ताधारी दल ने फर्क दिखाने के लिए पहले मोदी के स्वतंत्रता दिवस के भाषण के चुनिंदा हिस्सों को ज्ञान के मोती के तौर पर सामने रखा.

हो सकता है कि सोशल मीडिया पर जितने यूजर्स हैं, उन सभी ने इन्हें पढ़ा होगा...लेकिन ये उन लोगों को ध्यान में रखते हुए तैयार किया गया था जिसे सार्वजनिक तौर पर 'भक्त' कहा जाता है. इन ट्वीट्स या छोटे वीडियो क्लिप का उद्देश्य मोदी के प्रति सम्मान बढ़ाना था.

हम जानते हैं कि मोदी के प्रशंसकों का एक वर्ग है जो मोदी को हिंदू देवताओं में से एक के अवतार से कम नहीं मानता है.

बीजेपी और मोदी की आलोचना करने वाले राजनीतिक दलों ने प्रधानमंत्री के पिछले भाषणों के वीडियो क्लिप को अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर ट्वीट और प्रसारित करके जवाब दिया. इसमें उन्होंने ऐसे वादे किए जो पूरे नहीं हुए और जिनका बीजेपी ने उल्लेख नहीं किया है. ये अभियान दूसरी तरफ के वफादारों के लिए भी था, या मोदी-द्रोहियों के लिए भी.

कम से कम पिछले पांच सालों से, सोशल मीडिया अब पहले की तुलना में करीब-करीब सबके लिए एक समान जैसा बन गया है, और मोदी को जो पहले बढ़त हासिल थी वो अब नहीं रही है. 2017 में गुजरात विधानसभा चुनावों के लिए, कांग्रेस ने अपना सोशल मीडिया कैंपेन जारी किया जिसमें प्रधानमंत्री को ‘विकास गंडो थायो छे ‘(विकास पागल या नियंत्रण से बाहर हो गया) का प्रचार किया और यह काफी हिट भी हुआ था.

अनुपम खेर का कार्यक्रम स्पष्ट रूप से 'सियासी रूप से प्रेरित' था और स्वतंत्रता दिवस के एक दिन बाद प्रसारण के लिए कमीशन किया गया था, जिसमें पिछले प्रधानमंत्रियों की यादों को थोड़ा नीचे रखते हुए मोदी का महिमामंडन करने का स्पष्ट एजेंडा था.

कार्यक्रम का मूल्यांकन और दावों की ऐतिहासिक शुद्धता, इसके मायने और कार्यक्रम में लगाए गए आरोपों को एक पल के लिए छोड़ा भी जा सकता है लेकिन बीजेपी ने अपने सोशल मीडिया अभियान के लिए जो हिस्से उठाए हैं, उनको ठीक से देखा और परखा जाना चाहिए कि क्या वो सही भी हैं ?

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मोदी को बड़ा दिखाने के लिए भूख पर नेहरू के बयानों से छेड़छाड़

बीजेपी ने जो वीडियो बनाया है उसमें अनुपम खेर ने प्रधानमंत्री मोदी और प्रधानमंत्री नेहरू के बारे में जो कुछ बातें कही हैं वो बिल्कुल एक दूसरे से जुदा हैं. नेहरू के बारे में शो के शुरुआती मुखड़े में वो दावा करते हैं कि लगभग एक दशक तक नेहरू जी अपने भाषणों में सिर्फ देश में भूख और अनाज सकंट के बारे में बोलते रहे. स्क्रिप्ट में बीजेपी समर्थक एक्टर आगे नेहरू के इन बयानों को अजीबो गरीब बताते हैं और कहते हैं कि संकट पर नेहरू जी के रवैये ने लोगों को चौंका दिया.

आरोप ये है कि एग्रीकल्चर प्रोडक्शन या खेती बाड़ी बढ़ाने की जगह नेहरू जी ने साल 1949 में लोगों से कंजम्प्शन को कंट्रोल करने को कहा. लेकिन ऐतिहासिक सच्चाई इन दावों से बिल्कुल ही उलट है.

नेहरू जी ने कहा था “हम दो बड़ी चुनौतियों से जूझ रहे हैं’. खाने की दिक्कत, उसके उत्पादन की परेशानी और खाने की बर्बादी रोकने की. जो लोग खाना बर्बाद करते हैं, जो आडंबर करते हैं और खाना बर्बाद करते हैं वो गुनाह करते हैं, एक ऐसा जुर्म जो देश के खिलाफ है...राष्ट्र अपराध है.”

नेहरू ने साफ तौर पर खाने की बर्बादी , पैसे का भोंडा प्रदर्शन, पर चेताया था. उन्होंने कहा था कि जब देश में बहुत से लोग भूख से तड़प रहे हों तो आडंबर या कुछ दिखावा करना शर्मनाक है. देश जब कई तरह की परेशानियों के दौर से गुजर रहा था तो इस तरह की बात करना बिल्कुल वैध और सही था.

इसके अलावा नेहरू ने इस बारे में जो कुछ कहा था वो ज्यादा प्रासंगिक है-: “इससे ज्यादा बेकार बात क्या हो सकती है कि जब देश में कुछ लोग भूखे पेट रह रहे हों और हममें से या आप में से कुछ लोग दावत करें और फिर उसमें खाना बर्बाद कर दें. यह साफ दिखाता है कि भारत के प्रधानमंत्री अपने हिसाब से जो बातें कह रहे थे वो बहुत तार्किक थीं और देश के लिए जरूरी. अब इस बात को कोई कैसे खराब नजरिए से नेहरू को दिखाने के लिए कैंपेन खड़ा कर सकता है और मोदी को उसकी जगह पर महान द्रष्टा यानि ग्रेट विजिनरी बता सकता है ?

नेहरू के भाषण की क्लिप को स्क्रीन पर चल रहे स्टॉक शॉट्स के साथ दिखाया जाता है. ये सात से आठ साल पहले बंगाल के अकाल से हो सकते हैं. हो सकता है कि फैक्ट-चेकर्स इन शॉट्स को अच्छी तरह समझ सकें.

एक शॉट जिसमें एक भूखा बच्चा एक बड़ा खाली बर्तन हाथ में पकड़े हुए रहता है. वहीं मोदी के हाथ में एक फाइल है और वो अपना काम करने के लिए तैयार दिख रहे हैं...ये दो एक दूसरे से अलग तस्वीरें बनाकर अपने हिसाब से भक्तों को मैसेज देने की कोशिश की गई है. इनमें जो कैप्शन लिखे गए हैं वो भी कुछ चालाकी और दुष्टता वाले हैं.

भूख और गंदगी की तस्वीर के नीचे लिखा हुआ है ‘ वो सिर्फ कोसते रहे’ और वहीं मोदी की तस्वीर के नीचे लिखा हुआ है ‘हम सुधार करते रहे’.

बीजेपी के सोशल मीडिया अभियान के वॉयसओवर में आगे कहा जाता है कि इंदिरा गांधी को भी अनाज की कमी और कालाबाजारी के बारे में पता नहीं था. वॉयस ओवर में आगे कहा जाता है कि नेहरू की तरह इंदिरा गांधी ने भी व्यापारियों के खिलाफ गुस्सा या नाराजगी ही जताई.

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‘लोगों पर अविश्वास करने वाली नेता के तौर पर इंदिरा’

इंदिरा गांधी को उद्योगपतियों या धनी व्यापारियों से यह कहते हुए सुना जाता है कि वे ज्यादा फायदे को ध्यान में न रखें और कर्मचारियों को बढ़िया वेतन दें. वो लोगों को याद दिलाती हैं कि अमीरों की भी कुछ जिम्मेदारी होती है. दुनिया भर के प्रधानमंत्रियों ने कॉरपोरेट से अपील की है कि जब देश आर्थिक संकट के मुहाने पर हो तो वेतन में कटौती करें और प्रॉफिट मार्जिन घटाएं.

अस्पष्ट रूप से वॉयसओवर में महिला सशक्तिकरण पर मोदी की पहल का जिक्र किया जाता है और दावा किया गया है कि उनसे पहले किसी ने भी इन मसलों पर ध्यान नहीं दिया. इसके बाद कैंपेन वाले वीडियो ने मोदी के 2016 के स्वतंत्रता दिवस के भाषण का क्लिप चलाया (जिसमें उन्होंने एलपीजी सिलेंडरों और इनसे महिलाओं को कैसे मदद मिली) की चर्चा की. फिर आगे भी महिलाओं को ध्यान में रखते हुए लाई गई योजनाओं का जिक्र भी है.

वॉयस ओवर यानि वीओ पूरी तरह से एकतरफा है और बहुत सब्जेक्टिव जजमेंट इसमें दिखता है. अजीब तरह से, उनके भाषण का एक हिस्सा तब बजाया जाता है जब वे उद्योग के बारे में बोलते हैं, जहां उन्होंने उन्हें ‘वेल्थ क्रिएटर’ कहा और फिर उनका स्तुति गान किया.

बीजेपी का ये समूचा सोशल मीडिया कैंपेन एक तरह से आरोप-प्रत्यारोपों की एक श्रृंखला है जिसमें पूर्व प्रधानमंत्रियों के बयानों को या तो तोड़-मरोड़ कर पेश किया जाता है या फिर इन्हें संदर्भ से बाहर रखा जाता है. सिर्फ एक उदाहरण से ही बीजेपी की पूरी मंशा के बारे में पता चल जाता है. – इंदिरा गांधी को लोगों के प्रति विश्वास नहीं रखने वाला सिर्फ इसलिए कहा जाता है क्योंकि उनके एक बयान में उन्हें यह कहते हुए दिखाया जाता है कि जमाखोरी और कालाबाजारी करने वाले इसलिए फलते-फूलते हैं क्योंकि उनसे खरीदारी करने वाले लोग मौजूद हैं.

इसके विपरीत मोदी का एक बयान वीडियो में प्ले किया जाता है – जिन्होंने देश को लूटा और जनता को लूटा आज चैन से सो नहीं सकते हैं.

जिनको थोड़ी बहुत भी समझ है वो इस फर्क को समझ जाएंगे कि कैसे आखिर दो अलग-अलग संदर्भ को एक साथ रखा गया है. फिर भी मोदी को प्रमाण दिया जाता है और जनता में पूर्ण भरोसा रखने वाला नेता बताया जाता है.

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