विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा है कि भारत की मौजूदा वैश्विक गतिविधियों का मकसद "भारत को दुनिया के सामने, और दुनिया को भारत की तरफ लाना" है. यह टिप्पणी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) की पहल को दर्शाता है. पीएम मोदी ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका) समूह के 15वें सम्मेलन में भाग लेने के लिए मंगलवार, 22 अगस्त को निकल चुके हैं. ब्रिक्स देशों के राष्ट्र और सरकार प्रमुखों का यह सम्मेलन 22-23 अगस्त को जोहान्सबर्ग में होने वाला है. चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने भी पुष्टि की है कि वह व्यक्तिगत रूप से बैठक में भाग लेंगे.
यूक्रेन संकट और ग्लोबल साउथ की पहल
जी20 के अलावा, ब्रिक्स बैठक वह मंच है, जिसके जरिए ग्लोबल साउथ खुद को बाकी दुनिया के सामने पेश कर सकता है.
ब्रिक्स में शामिल होने के इच्छुक देशों की फेहरिस्त में अर्जेंटीना, ईरान, इंडोनेशिया, सऊदी अरब और मिस्र सहित 40 से अधिक देश शामिल हैं. हालांकि, मौजूदा सदस्य इस बात के लिए राजी नहीं कि इस संगठन का दायरा बढ़ाया जाए. असल में गोल्डमैन सॅक्स के अर्थशास्त्री जिम ओ'नील ने 2001 में ब्राजील, रूस, भारत और चीन (BRIC) को यह नाम दिया था, क्योंकि इन देशों की अर्थव्यवस्थाएं तेजी से उभर रही थीं. दक्षिण अफ्रीका के लिए "S" बाद में जोड़ा गया और इस तरह यह BRICS बन गया.
वैसे यह दौर आर्थिक संकट, व्यापार युद्ध और असली युद्ध का तकलीफ भरा दौर है. कई बार ऐसा लगता है कि ग्लोबल साउथ यूक्रेन की घटनाओं से एकदम अछूता है, क्योंकि उसकी अपनी समस्याएं हैं लेकिन ऐसा नहीं है. वह शांतिदूत की भूमिका निभाना चाहता है और चाहता है कि मतभेदों को दूर करने के उपाय सुझाए जाएं.
ये सम्मेलन इसलिए भी खास है क्योंकि इसमें ब्रिक्स की सदस्यता को बढ़ाने पर ठोस चर्चा की उम्मीद है, जिसकी पहल रूस और चीन दोनों कर रहे हैं.
एनडीबी और सदस्यता की मनोकामना
जैसा कि सभी को मालूम है, ब्रिक्स एक मुक्त व्यापार ब्लॉक नहीं है, लेकिन यह नीतिगत कदमों का समन्वय करता है. सबसे महत्वपूर्ण यह है कि उम्मीदवार देश का विकसित दुनिया के प्रति क्या राजनैतिक नजरिया है.
हालांकि ब्रिक्स या 2015 में न्यू डेवलपमेंट बैंक के निर्माण के साथ, ब्रिक्स को एक ऐसा मंच मिला, जिससे स्थानीय करंसी में वित्त जुटाना और ऋण देना आसान हुआ. लेकिन आधिकारिक सूत्र इस बात से इनकार करते हैं कि इस बैठक में साझा ब्रिक्स करंसी पर कोई बात होगी.
बीजिंग में स्थित एनडीबी काफी सफल हुआ है, और 2021 से बांग्लादेश, संयुक्त अरब अमीरात और मिस्र इसमें शामिल हो गए हैं. उरुग्वे इसमें शामिल होने की प्रक्रिया में है, जबकि सऊदी अरब सहित कई देशों ने इसके लिए दिलचस्पी दिखाई है.
शिखर सम्मेलन के आखिरी दिन बैठक में दूसरे देशों के नेताओं के साथ बातचीत अहम होगी. एशिया, लैटिन अमेरिका और कैरेबियाई क्षेत्र के 67 देशों को निमंत्रण भेजा गया है. खास फोकस ब्रिक्स और अफ्रीका पर होगा, जो बैठक का विषय है. ब्रिक्स सहयोगी चाहते थे कि अफ्रीकी महाद्वीपीय मुक्त व्यापार क्षेत्र से लाभ हसिल करने के मौके तलाशे जाएं.
ब्रिक्स से पुतिन की गैरमौजूदगी क्या इत्तेफाक है?
भारत इस बात को ध्यान में रखते हुए बातचीत के मुद्दों को आकार दे रहा है कि वह वर्तमान में जी20 का अध्यक्ष है और सितंबर में नई दिल्ली में एक बड़े आयोजन की मेजबानी करेगा. इस लिहाज से यह महत्वपूर्ण है कि प्रधानमंत्री मोदी ने पिछले हफ्ते ईरानी प्रधानमंत्री इब्राहिम रायसी के साथ टेलीफोन पर बातचीत की थी. ब्रिक्स में शामिल होने के इच्छुक देशों की कतार में ईरान सबसे आगे है और माना जाता है कि दोनों नेताओं ने द्विपक्षीय संबंधों और ईरान की संभावित सदस्यता पर चर्चा की है.
हालांकि, कयास लगाया जा रहा था कि शिखर सम्मेलन में मोदी की व्यक्तिगत भागीदारी की संभावना कम है. लेकिन उन्होंने इस महीने की शुरुआत में इन अटकलों को विराम दे दिया. उन्होंने दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामफोसा के साथ बातचीत के दौरान अपनी मौजूदगी की पुष्टि कर दी थी. दिलचस्प बात यह है कि इससे पहले रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने इसी कार्यक्रम के लिए जोहानसबर्ग की अपनी यात्रा रद्द कर दी थी.
आसानी से समझा जा सकता है कि ये दोनों मुद्दे जुड़े हुए थे. पुतिन की मौजूदगी से इस सम्मेलन के आयोजन का मकसद कमजोर हो सकता था.
उल्लेखनीय है कि दक्षिण अफ्रीका को स्पष्ट करना पड़ा था कि वह यूक्रेन में कथित युद्ध अपराधों के लिए पुतिन के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC) के वारंट पर कार्रवाई नहीं करेगा, लेकिन फिर भी पुतिन ने इस आयोजन में भाग न लेने का फैसला किया.
भारत और चीन: लद्दाख पर कशमकश
रिपोर्ट्स से पता चलता है कि दोनों देशों की सेनाओं ने एक फॉलो-अप बैठक की थी. इस बैठक में यह सुझाव दिया गया था कि जोहानसबर्ग में मोदी और शी के बीच एक आधिकारिक और ठोस द्विपक्षीय बातचीत की राह खुल सकती है. 2019 में अनौपचारिक चेन्नई शिखर सम्मेलन के बाद यह पहली बैठक होगी.
वैसे मोदी की चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से द्विपक्षीय मुलाकात होगी या नहीं, यह फिलहाल स्पष्ट नहीं है. ऐसा इसलिए है क्योंकि पिछले साल विदेश मंत्रालय को काफी शर्मिन्दगी उठानी पड़ी थी. उन्होंने माना था कि बाली में जी20 शिखर सम्मेलन के मौके पर शी और मोदी के बीच हुई बातचीत, जैसा कि दृश्यों और रिपोर्ट्स से पता चलता है, 'एक आकस्मिक मुलाकात' नहीं थी.
पिछले महीने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के साथ अपनी बैठक के बाद चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने दोनों नेताओं के द्विपक्षीय संबंधों को बहाल करने के लिए "आम सहमति" पर पहुंचने की बात कही थी. “पिछले साल के आखिर में बाली में राष्ट्रपति शी जिनपिंग और प्रधानमंत्री मोदी के बीच चीन-भारत संबंधों में स्थिरता लाने के लिए सहमति बनी थी,” चीनी विदेश मंत्रालय के बयान में कहा गया है.
पिछले महीने के अंत में विदेश मंत्रालय ने पुष्टि की कि दोनों ने अपनी बाली बैठक में द्विपक्षीय संबंधों पर चर्चा की थी. अब जोहानसबर्ग की बैठक होने वाली है, जिससे पहले मिली जानकारी के हिसाब से, चीन ने वरिष्ठ सैन्य कमांडरों की 19वीं बैठक में लद्दाख मुद्दे पर झुकने से इनकार कर दिया है. यह बैठक 13-14 अगस्त को हुई थी.
दरअसल, भारत लगातार यह मांग कर रहा है कि चीन देपसांग में वाई जंक्शन और डेमचोक के पास चार्डिंग-निंगलुंग नाला जंक्शन पर अपनी घेराबंदी हटाए. इसी के चलते यह गतिरोध पैदा हुआ है.
अब तक चीन ने चार स्थानों- पैंगोंग त्सो, कुगरांग घाटी, गोगरा से घेराबंदी हटा दी है, जो उसने 2020 में लगाई थी. इसके चलते गलवान सहित तीन जगहों पर नो-पेट्रोल जोन्स बन गए हैं. लेकिन वे अब तक हटने से इनकार करते रहे हैं.
(लेखक ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन, नई दिल्ली के प्रतिष्ठित फेलो हैं. यह एक ओपनियन पीस है और ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट हिंदी न तो इसका समर्थन करता है और न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)
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