बीजेपी ने उत्तर प्रदेश की कैसरगंज सीट से मौजूदा पार्टी सांसद और दबंग स्थानीय नेता बृजभूषण (Brij Bhushan Sharan Singh) के बेटे करण भूषण सिंह को लोकसभा टिकट दिया है. यह पार्टी में नैतिकता के मोर्चे पर दुखद कमी की गवाही देता है. भारतीय कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष रहते बृजभूषण पर यौन शोषण के गंभीर आरोप लगे हैं. उन पर आपराधिक आरोप भी लगाया गया है.
बीजेपी का यह कदम पिछले कई दशकों से हत्या, दंगा, अपहरण और अब यौन उत्पीड़न सहित 39 आपराधिक मामलों में फंसे विवादास्पद राजनेता को अपने बेटे की मदद से शासन करने की अनुमति देना एक जबरदस्त प्रयास है. देश में राजनीति और शासन के संदिग्ध मानकों के हिसाब से भी यह एक नया निचला स्तर है.
यह काफी घृणित है. एक तरफ प्रधानमंत्री के नेतृत्व में बीजेपी आलाकमान महिलाओं को चैंपियन बनाने और पार्टी में उनके व्यापक शक्तियां होने का दावा करता है. वहीं दूसरी तरफ उसने गोंडा जिले और आसपास के क्षेत्रों में प्रभाव रखने वाले एक स्थानीय बाहुबली के सामने आत्मसमर्पण कर दिया है.
बृजभूषण के खिलाफ कार्रवाई की मांग को लेकर पहलवानों ने सड़क पर उग्र विरोध प्रदर्शन किए थे, जिससे देश भर में आक्रोश फैल गया. लेकिन इसके बावजूद बृजभूषण ने स्पष्ट रूप से अपनी पार्टी और सरकार के गुप्त समर्थन के साथ निडर होकर काम जारी रखा है.
हाल ही में उन्होंने अपने बेटे करण को अपने उत्तराधिकारी के रूप में उत्तर प्रदेश कुश्ती महासंघ का अध्यक्ष बनवाया. कैसरगंज में बृजभूषण की जगह अब करण उम्मीदवार हैं. उनके दूसरे बेटे प्रतीक भूषण पहले से ही निकटवर्ती गोंडा विधानसभा क्षेत्र से पार्टी विधायक हैं. इस तरह ऐसा प्रतीत होता है कि बीजेपी ने बृजभूषण को इस क्षेत्र में अपना कुनबा बढ़ाने के लिए राजी कर लिया है.
असल में, भूषण परिवार के मुखिया यानी बृजभूषण अपनी पार्टी द्वारा अपने उम्मीदवार की घोषणा करने से बहुत पहले से ही कैसरगंज में आत्मविश्वास से प्रचार कर रहे हैं. यह दिखा रहा कि यौन उत्पीड़न और आपराधिक आरोपों के बीच चल रहे विवाद और प्रतिकूल प्रचार का उनपर असर नहीं हुआ है.
जब बीजेपी आलाकमान ने पिछले दरवाजे से उनके बेटे को चुनकर लोकसभा का टिकट देने का फैसला किया, तो विजयी बृजभूषण ने अपनी जीत का जश्न मनाते हुए कैसरगंज में हजारों समर्थकों के साथ विशाल काफिला निकाला. इसमें 700 से अधिक एसयूवी गाड़ियां शामिल थीं. उनके पास विशाल संसाधन हैं जिनमें दो हेलीकॉप्टर, एक प्राइवेट जेट, कई होटल, अस्पताल, कॉलेज और स्कूल शामिल हैं.
यहां तक कि जब यह बीजेपी नेता एक जाने-माने टीवी चैनल के एंकर के साथ हंसी-मजाक में टेलीविजन कैमरों के सामने मुस्कुरा रहे थे, तो महिला पहलवान बीजेपी के फैसले पर अफसोस जता रही थीं. इन्होंने उम्मीद थी कि सरकार न्याय के लिए उनकी पुकार सुनेगी. उन्होंने देश की राजधानी में सड़कों पर प्रदर्शन के दौरान न्याय के लिए मार्मिक तरीके से आवाज उठाई थी.
ओलंपिक पदक जीतने वाली एकमात्र भारतीय महिला पहलवान साक्षी मलिक ने आंखों में आंसू के साथ घोषणा की, "देश की बेटियां हार गई, बृजभूषण जीत गया. हम सबने अपना करियर दांव पे लगाया, कई दिन धूप बारिश में सड़क पर सोये. आज तक बृजभूषण को गिरफ्तार नहीं किया गया. हम कुछ नहीं मांग रहे थे, सिर्फ इंसाफ की मांग थी. गिरफ्तारी छोड़ो, आज उसके बेटे को टिकट देके आपने देश की करोड़ों बेटियों का हौसला तोड़ दिया है."
कैसरगंज और आस-पास के निर्वाचन क्षेत्रों में भूषण परिवार के विशाल वित्तीय संसाधनों और बाहुबल को देखते हुए बीजेपी को बड़ा फायदा मिल सकता है. लेकिन नतीजे चाहे जो रहें, इससे पार्टी और प्रधान मंत्री को भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है.
महिलाओं की गरिमा के प्रति इस तरह की खुली अवमानना, मजबूत चुनौती के सामने पार्टी अनुशासन का स्पष्ट पतन और वंशवादी शासन का इस तरह खुला समर्थन पूर्वी यूपी की मुट्ठी भर संसदीय सीटों को खोने की तुलना में वर्तमान शासन की छवि को कहीं अधिक बड़ा नुकसान पहुंचाएगा.
बेटी बचाओ का नारा देने वाले मिस्टर मोदी खुद को अनुशासनहीनता बर्दाश्त नहीं करने वाले सबसे बड़ा नेता बताते हैं और वंशवाद पर विपक्ष को लगातार भाषण देते हैं. ऐसे में बृजभूषण शरण सिंह और उनके फलते-फूलते वंश का पूरा विवाद प्रधानमंत्री के इस नैरेटिव को बुरी तरह प्रभावित कर सकता है.
कैसरगंज के अलावा कर्नाटक से आई खबरें भी बीजेपी के दामन में दाग लगा रही हैं. यहां बीजेपी की मुख्य सहयोगी और पूर्व प्रधान मंत्री देवेगौड़ा की पार्टी जनता दल (एस) यौन शोषण के गंभीर आरोपों में फंसी है. एक बार फिर, यहां भी प्रधान मंत्री और उनकी पार्टी, दोनों से नैतिकता के मोर्चे पर कठोर कदम उठाने की उम्मीद थी.
चुनावी साल में जब सत्ताधारी दल और उसके नेता लगातार तीसरी बार कार्यकाल की मांग कर रहे हैं, नैतिक मुद्दों पर ऐसा गोलमोल दृष्टिकोण, जिसके बारे में उन्होंने स्वयं इतनी दृढ़ता से प्रचार किया है, गंभीर राजनीतिक नुकसान पहुंचा सकता है.
बीजेपी के लिए मामले को और भी बदतर बनाने वाली बात पार्टी की महिला नेताओं की तरफ से ऐसे ज्वलंत राजनीतिक मुद्दों पर चुप्पी या कमजोर बचाव है. यह भयावह है कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी बृजभूषण सिंह की ओर से यह दलील दी है कि उनके खिलाफ अब तक कुछ भी साबित नहीं हुआ है.
गौरतलब है कि पिछले कई दशकों में संसदीय और राज्य विधानसभा चुनावों में महिलाओं की भागीदारी में तेजी से वृद्धि हुई है.
1950 के दशक की शुरुआत में पहले चुनाव के बाद से महिला मतदाताओं ने राष्ट्रीय चुनावों में पुरुषों के बराबर 20 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की है, विधानसभा चुनावों में वे वास्तव में अपने पुरुष समकक्षों की तुलना में बड़ी संख्या में मतदान कर रही हैं. जनमत सर्वे से यह भी पता चलता है कि मतदाता, विशेष रूप से युवा, भारतीय नेताओं द्वारा प्रदर्शित नैतिकता की कमी से निराश हैं.
यह देखना बाकी है कि क्या नैतिक रीढ़ की कमी सत्तारूढ़ दल के विशाल वित्तीय और संगठनात्मक संसाधनों के बावजूद उसे चुनाव में कोई डेंट पहुंचाएगी या नहीं.
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