कुलवंत सिंह (Kulwant Singh) 12वीं क्लास की बोर्ड परीक्षा के लिए तैयारी कर रहा था, और 16,000 रुपए महीने की तनख्वाह पर हाउसकीपिंग कर्मचारी के तौर पर काम कर रहा था.
दीपक (Deepak) की उम्र 25 साल थी और हाल ही में वह पिता बना था. उसकी पांच महीने की एक बेटी है. वह इंदरपुरी में रहता था. वह भी 11,500 रुपए महीने की तनख्वाह पर हाउसकीपिंग का काम करता था. उसका परिवार ग्वालियर से दिल्ली आ गया था.
33 साल का सनी (Sunny) पढ़ा-लिखा नहीं था और किसी तरह इस नौकरी में जमा हुआ था. उसकी महीने की तनख्वाह 11,500 रुपए थी. उसका 10 साल का एक बेटा है. 2000 में वह हरियाणा के तावडू से दिल्ली आया था.
रविवार, 8 जनवरी को दिल्ली के नारायणा इलाके में एक गुटका फैक्ट्री में चौथी मंजिल पर लिफ्ट के टूटने से इन तीनों की मौत हो गई. चौथे शख्स, 24 साल के सूरज को गंभीर चोट आई है और फिलहाल अस्पताल में उसका इलाज चल रहा है.
कुलवंत, दीपक और सनी के नाम उन तमाम लोगों की फेहरिस्त में शामिल हैं, जो ज्यादातर प्रवासी मजदूर हैं और अपने रोजगार के दौरान मौत का शिकार होते हैं. उनकी जिंदगी, और अब अंत, महानगरों में प्रवासी मजदूरों की दर्दनाक कहानी बयान करते हैं.
खबरें बनती रहती हैं कि कैसे मजदूरों को रोजगार के दौरान सेफ्टी गियर नहीं दिए जाते- जोकि श्रम कानूनों का उल्लंघन है. असल में, उसी दिन मुंबई के वर्ली इलाके में एक निर्माणाधीन इमारत में भी लिफ्ट ट्रॉली गिर गई और इस हादसे में दो मजदूर मारे गए.
दिल्ली के मामले में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के सेक्शन 304 (गैर इरादतन हत्या) और 337 (लापरवाही से चोट पहुंचाना) के तहत दिल्ली के नारायणा पुलिस स्टेशन में प्राथमिकी दर्ज की गई. अब तक किसी को गिरफ्तार नहीं किया गया है.
“अब घर कौन संभालेगा?” इन तीनों के रिश्तेदारों ने पूछा. वे सभी 9 जनवरी को मुर्दाघर के बाहर खड़े थे, जब इन तीनों का पोस्ट-मॉर्टम हो रहा था.
कुछ घंटों बाद तीनों मृतकों के रिश्तेदारों ने पुलिस की सुस्ती के खिलाफ दिल्ली के दीन दयाल उपाध्याय अस्पताल के बाहर विरोध प्रदर्शन किया और शवों को अंतिम संस्कार के लिए घर ले जाने से इनकार कर दिया. उन्होंने कहा कि पुलिस ने एफआईआर दर्ज करने में देरी की और मृतकों के परिवारों को समय पर दुर्घटना के बारे में सूचित नहीं किया.
यह कुलवंत, दीपक और सनी की कहानी है- और उन अनगिनत दूसरे मजदूरों की भी, जिनका इसी तरह अंत हुआ.
8 जनवरी को क्या हुआ था?
डीसीपी वेस्ट घनश्याम बंसल के मुताबिक, दिल्ली पुलिस को दीन दयाल उपाध्याय (डीडीयू) अस्पताल और बीएल कपूर अस्पताल से क्रमश: शाम 5.44 बजे और 5.47 बजे पीसीआर कॉल मिलीं. उन्हें बताया गया कि “लिफ्ट गिरने की वजह से घायल हुए और मारे गए लोगों को वहां लाया गया है.”
कुलवंत के भाई, 31 साल के जगजीत सिंह ने क्विंट को बताया, “जो मजदूर घायलों को अस्पताल लेकर आए, उन्होंने मुझे बताया था कि यह घटना रविवार को दोपहर 3 बजे के आस-पास हुई थी. लेकिन अस्पताल वालों ने मुझे बताया कि मेरे भाई को 5.30 बजे के बाद ‘मरा हुआ’ लाया गया था. मैं जानना चाहता हूं कि उन दो घंटों में क्या हुआ.”
उसका आरोप है कि जिस कंपनी के साथ ये लोग काम करते थे- इऑन हाउसकीपिंग प्राइवेट लिमिटेड- उसने हादसे के बारे में उन तीनों के परिवार वालों का बताना तक जरूरी नहीं समझा. गुटका कंपनी ने इऑन हाउसकीपिंग प्राइवेट लिमिटेड से हाउसकीपिंग सेवाओं को आउटसोर्स किया था. जगजीत कहता है कि उसके भाई, और बाकी के तीन लोगों को रविवार को हाउसकीपिंग के काम के लिए बुलाया गया था
“मुझे फैक्ट्री के बाकी मजदूरों ने बताया कि दोपहर को कुछ सामान ले जाने के लिए वे लोग हाइड्रॉलिक लिफ्ट में चढ़े. अचानक लिफ्ट का तार टूट गया और वह चौथी मंजिल से बेसमेंट में जा गिरी. इसका असर इतना ज्यादा था, कि गिरने के बाद लिफ्ट उछलकर दूसरी मंजिल तक गई, और फिर दोबारा नीचे गिरी.”
.जगजीत अपने आंसुओं को संभालते हुए कहता है- “जब लिफ्ट टूटी तो वह लिफ्ट में ही था. उसके सिर पर चोट नहीं लगी, लेकिन गले के नीचे के हिस्से को लकवा मार गया है.” इस हादसे में अकेले जिंदा बचे सूरज का बड़ा भाई मोनू बताता है. सूरज दिल्ली के बीएलके अस्पताल में आईसीयू में भर्ती है और उसका इलाज चल रहा है.
इस बीच हादसे में मारा गया सनी, सत्यदेव का भतीजा था. सत्यदेव कहते हैं, “वह एक पुरानी हाइड्रॉलिक लिफ्ट थी जिसकी मेनटेंस नहीं हुई थी. उन्हें उसका इस्तेमाल नहीं करना चाहिए था. सनी की कंपनी के मालिक ने अब तक इसकी जिम्मेदारी नहीं ली है- न ही कोई मुआवजा दिया है.”
क्विंट ने ऐसे हादसों के बारे में एक्टिविस्ट और इंडियन फेडरेशन ऑफ ट्रेड यूनियन (आईएफटीयू) के महासचिव राजेश कुमार से बात की. उन्होंने कहा,
ऐसी दुर्घटनाएं इतनी सामान्य इसलिए हैं क्योंकि कोई इन इंडस्ट्रीज़ को ऑडिट नहीं करता. न ही यह जांचा जाता है कि सभी सेफ्टी गाइडलाइन्स लागू हो रहे हैं या नहीं. जैसे इस मामले में, क्या कंपनी के पास इमारत में लिफ्ट चलाने की मंजूरी थी? अगर हां, तो लिफ्ट कितनी पुरानी है? इसकी सर्विसिंग आखिरी बार कब की गई थी? पिछली बार इसकी वायरिंग कब चेक की गई थी?”
जो मारे गए, वो लोग कौन थे?
कुलवंत सिंह, 28 वर्ष
2017 में कुलवंत भारत से जॉर्डन गया था. वहां वह सुपरवाइजर का काम करता था. “कोविड-19 के समय जब बिजनेस बंद हो गए और लॉकडाउन के चलते प्रवासियों को घर लौटना पड़ा, तब वह भी भारत लौट आया. 2021 में हमारे पिता नहीं रहे. तब कुलवंत ने हाउसकीपिंग की नौकरी करनी शुरू की, लेकिन वह जॉर्डन वापस जाना चाहता था.” उसके भाई ने क्विंट को बताया.
इसीलिए कुलवंत 12वीं के बोर्ड की तैयारी कर रहा था, जिससे वह सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी के लिए अप्लाई कर सके. भाई के अलावा उसकी एक बहन भी है. जगजीत उदास होकर कहता है, “हमारी छोटी बहन जसप्रीत की इस साल शादी होने वाली है.”
दीपक, 25 वर्ष
डीडीयू के मुर्दाघर के बाहर भुवनेश चुपचाप बैठा है. उसकी नजरें स्ट्रेचर पर, सफेद चादर में लिपटे, अपने भाई दीपक की निर्जीव देह पर गड़ी हैं. वह कहता है, “मेरा भाई आज जिंदा होता अगर उसे अस्पताल ले जाने में देरी नहीं हुई होती. जब तक पुलिस कोई कार्रवाई नहीं करती, मैं उनकी बॉडी को घर नहीं ले जाऊंगा.”
दीपक, भुवनेश और उनके भाई-बहन मध्य प्रदेश के ग्वालियर में पले-बढ़े हैं. दीपक नौवीं कक्षा तक पढ़ा था, और नौकरी की तलाश में 2000 में दिल्ली आ गया था. अगस्त 2022 में उसकी एक बेटी हुई. भुवनेश अपने फोन की गैलरी से बच्ची की तस्वीर दिखाता है. हाउसकीपिंग कंपनी में दीपक 16,000 रुपए कमाता था. “अब बस घर संभालना है.” भुवनेश कहता है. वह एक बीमा कंपनी में काम करता है.
सनी, 33 वर्ष
31 दिसंबर को नया साल मनाने के लिए, सत्यदेव अपने भतीजे सनी से मिला था. “वह खुश था. मैंने उससे कहा कि तुम 11,500 रुपए महीने के लिए इतनी मारा-मारी क्यों कर रहे हो. कोई और नौकरी ढूंढो. लेकिन उसने कहा कि वह इससे खुश है, क्योंकि उसने पढ़ाई तो की नहीं है. वह यही सोचा करता था कि शायद ही उसे नई नौकरी मिले.” डीडीयू के मुर्दाघर के बाहर खड़ा, सत्यदेव याद करता है.
सनी का परिवार हरियाणा के तावडू का रहने वाला है. वह अपने पीछे, अपनी बीवी और 10 साल के एक बेटे को छोड़ गया है. सत्यादेव कहता है, “अब उसके परिवार की देखरेख कौन करेगा?”
लोग नहीं, सिर्फ आंकड़े
कुलवंत, दीपक और सनी की मौत, सिर्फ एक अकेला मामला नहीं. मिंट की रिपोर्ट के मुताबिक, 19 मार्च, 2021 को केंद्रीय श्रम और रोजगार मंत्रालय ने संसद को बताया था कि पिछले पांच वर्षों में कारखानों, बंदरगाहों, खानों और निर्माण स्थलों पर कम से कम 6,500 श्रमिकों की ड्यूटी के दौरान मृत्यु हुई है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि कुल मौतों में से 5,629, या 80 प्रतिशत से अधिक, फ़ैक्टरी सेटिंग में दर्ज की गईं, जबकि 549 मौतें खदानों में और 74 बंदरगाहों पर हुईं. केंद्र सरकार के अधिकार क्षेत्र में आने वाले निर्माण स्थलों पर 237 लोगों की मौत हुई.
हालांकि एक्पर्ट्स का कहना है कि ये अनुमान पूरे नहीं हो सकते, क्योंकि चोटों और मौतों के कई मामलों की रिपोर्ट नहीं की जाती है.
ग्लोबल वर्कर्स यूनियन इंडस्ट्रियलऑल के आंकड़ों के अनुसार, भारतीय मैन्यूफैक्चरिंग उद्योग में हर महीने सात दुर्घटनाएं दर्ज की जाती हैं, जिनमें 2021 में 162 से ज्यादा मजदूरों की मौत हुई थी.
दिल्ली के लिफ्ट क्रैश में तीन लोगों और 9 जनवरी को मुंबई में दो लोगों की मौत के अलावा, एक दिन बाद नोएडा के सेक्टर 150 में भी एक दुखद हादसा हुआ. द टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट में बताया गया है कि नोएडा की एक कंस्ट्रक्शन साइट पर अस्थायी लिफ्ट हटाने के काम में लगे 28 साल के एक सर्विस इंजीनियर की मौत हो गई. वह इंजीनियर लिफ्ट को अनइंस्टॉल कर रहा था, जब वह 25वीं मंजिल से नीचे, भरभराकर गिर गई.
4 जनवरी को मुंबई के विक्रोली से भी एक मामला दर्ज हुआ. वहां की एक रेसिडेंशियल बिल्डिंग में निर्माणाधीन कार-पार्किंग लिफ्ट के दुर्घटनाग्रस्त हो जाने से एक मजदूर की मौत हो गई और तीन अन्य घायल हो गए.
सितंबर 2022 में सात मजदूरों की मौत हो गई और एक घायल हो गया, जब वे अहमदाबाद, गुजरात में एक निर्माणाधीन इमारत में लिफ्ट शाफ्ट के अंदर काम कर रहे थे.
द इंडियन एक्सप्रेस की खबर के अनुसार, अक्टूबर 2022 में, सूरत के भतार इलाके में एक कपड़ा कारखाने की तीसरी मंजिल से एक माल लिफ्ट के दुर्घटनाग्रस्त हो जाने से 35 साल के एक मजदूर की मौत हो गई और सात अन्य घायल हो गए.
इस तरह की दुर्घटनाओं पर रोक लगाने के लिए क्या किया जा सकता है, इस पर आईएफटीयू के कुमार कहते हैं, "हमने लगातार मांग की है कि राज्य और केंद्र सरकार के अधिकारी नियमित रूप से कारखानों का ऑडिट करें कि वहां सभी सेफ्टी गाइडलाइन्स का पालन हो रहा है या नहीं. और इसे नई श्रम संहिताओं में शामिल किया जाना चाहिए."
"मौद्रिक दंड पर्याप्त नहीं है. मुआवजा किसी के परिवार के सदस्य और उनकी आजीविका को वापस नहीं ला सकता है लेकिन सख्त सजा यह सुनिश्चित कर सकती है कि ऐसे मामले इतनी बार न हों."
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