मेरे साथ-साथ दोहराएं- दुनिया में मुफ्त कुछ नहीं मिलता.
एलन मस्क (Elon Musk) ने जिस अफरा-तफरी में ट्विटर इंक (Twitter) पर कब्जा जमाया, उस पर भड़कना या उसकी आलोचना करना फैशनेबल हो सकता है, और यह अटकल भी लगाई जा सकती है कि इस पूरी कवायद में वह कामयाब हुए हैं, या सफलता अभी कुछ कोसों दूर है. लेकिन यह सब इस पर निर्भर करता है कि आप किससे बात कर रहे हैं, सफलता किस चिड़िया का नाम है और आपका पैमाना क्या है. हां, एक बात साफ है. कॉरपोरेट जगत में आप अपने शेयरहोल्डर्स के प्रति जवाबदेह होते हैं.
और घाटे में चलने वाली कंपनियों और घाटे में धंसी सरकारों के लिए एक संदेश भी है. आपको जो करना चाहिए, वो करें, और अपने खर्चों में कटौती करें. चाहे आप एलन मस्क जैसे अमेरिकी इंटरप्रेन्योर हों या ऋषि सुनक जैसे ब्रिटिश प्रधानमंत्री.
मस्क की बेदर्दी और डॉर्सी का कबूलनामा
हमें इस बात का इंतजार है कि राज्य के खर्चों को कम करने के लिए ऋषि सुनक लंदन में क्या करते हैं. लेकिन मस्क के मुकाबले उनके लिए रास्ता जरा ज्यादा मुश्किल है. मस्क ने तो बड़ी बेदर्दी से 3,700 कर्मचारियों, या ट्विटर के करीब-करीब आधे लोगों को बाहर का दरवाजा दिखा दिया, और वह भी बहुत बेहरमी और जालिमाना तरीके से.
इस नौसिखियापन की शिकायत की जा सकती है. कहा जा सकता है कि मस्क ने गिन-गिनकर, सिर कलम किए हैं. लेकिन जब मस्क ने कहा कि ट्विटर को हर दिन 4 मिलियन USD का नुकसान हो रहा है और वह ट्रेडमार्क ब्ल्यू टिक वाले यूजर्स से हर महीने 8 USD वसूलेंगे (हालांकि अब इस फैसले को होल्ड कर दिया गया है) तो यह साफ था- मुफ्त की दावत का खर्चा किसी न किसी की जेब तो ढीली करेगा ही. इसका खामियाजा किसी न किसी को तो भरना होगा- चाहे वह ट्विटर का यूजर हो या ट्विटर का कर्मचारी.
ट्विटर के को-फाउंडर जैक डॉर्सी ने सार्वजनिक तौर पर माफी मांगते हुए कहा था कि यह बदलाव उस माइक्रोब्लॉगिंग साइट की तरक्की की उम्मीद में किया गया है. हां, वह भले इंसान हैं. लेकिन दरअसल यह माफी नहीं, एक कबूलनामा था. जैसे वह अपने अपराध को स्वीकार कर रहे हों- उस कंपनी में जो पहचान के संकट से जूझ रही है. वह कंपनी जो एक दशक से भी कम समय में राजनैतिक विमर्श का प्रमुख मंच बन गई है.
ट्विटर पर मस्क और डॉर्सी की गुत्थम गुत्था
टेस्ला के मालिक मस्क के लिए यह 44 बिलियन का प्रॉजेक्ट चमचमाते तमगे जैसा है. उन्हें इसके जरिए एक नई भूमिका मिली है. सबसे पहले वह कंपनी का हुलिया बदलना चाहते हैं. उसे मुनाफे की मशीन बनाना चाहते हैं. दूसरी तरफ वह अमेरिका के दक्षिणपंथियों के हीरो बनना चाहते हैं जो ट्विटर पर कंटेंट मॉडरेशन से दुखी हैं. फ्री-स्पीच की जिस निरंकुशता को मस्क बहाल रखना चाहते हैं, वह अक्सर दक्षिणपंथियों को चिल्लाने, गाली-गलौच करने या बातचीत को तोड़मरोड़ कर पेश करने का लाइसेंस देती है.
अमेरिका में फ्री-स्पीच कानून हैं जो शालीनता से ज्यादा उदारता पर जोर देते हैं. लेकिन यहां ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि मस्क ने निवेशकों/लेनदारों को वहां पैसे डालने के लिए राजी किया है, जहां सभी सिर्फ फ्री-स्पीच की हिमायत करते हैं. मस्क चाहते हैं कि उनके लिए यह मुनाफे का सौदा हो.
अब हम वही दोहराते हैं- मुफ्त कुछ नहीं मिलता.
डॉर्सी और मस्क इस बात पर गुत्थम-गुत्था हो रहे हैं (ट्विटर पर, और कहां) कि साइट पर सही इनफॉरमेशन को कैसे आंका जाए. इस बौद्धिक माथापच्ची का नतीजा यह होना चाहिए कि किसी लिस्टेड कंपनी को कैसे फायदा होगा.
अमेरिका में रहने वाले एक प्रोफेसर ने एक भारतीय अखबार के संपादकीय पेज पर लिखा कि जो ट्विटराटी मस्क के कृत्यों से परेशान हैं, उन्हें इस साइट से कुछ दिनों के लिए छुट्टी लेनी चाहिए और फिर सोचना चाहिए कि क्या वे लोग “गुड गवर्नेंस, शालीनता और निष्पक्षता” के आधार पर यहां बने रहेंगे. यह छुट्टी शायद 21 वीं शताब्दी में उस औद्योगिक हड़ताल का रूप ले ले, जो कॉरपोरेट मैनेजमेंट को भी घुटने टेकने को मजबूर कर दे.
कई विज्ञापनदाताओं ने ट्विटर से अपना कमर्शियल मनी निकालना शुरू कर दिया है. क्या यूजर्स और विज्ञापनदाता, मिलकर मस्क की राह में रोड़े अटका सकते हैं? क्या लिबरल/वोक मनी, वॉल स्ट्रीट की पैंतरेबाजी के साथ प्रतिस्पर्धा कर सकता है? बेशक, लोगों ने फिलहाल इस पर ज्यादा सोचा-विचारा नहीं है, न ही अपनी राय कायम की है, लेकिन मेरे ख्याल से आदर्शवाद की कीमत इतनी सस्ती नहीं होती.
ऐसे समय में न्यूटन के सिद्धांत को याद किया जा सकता है- अगर कंपनी इस बात की फिक्रमंद होती है कि यूजर्स और विज्ञापनदाता ट्विटर को छोड़ देंगे और उससे पैसे का नुकसान होगा तो कर्मचारियों की नौकरी बची रहती और ब्ल्यू टिक के वैरिफिकेशन से पैसे कमाने के बारे में सोचा जाता.
निजी हाथों में ट्विटर, पर यह सार्वजनिक राय को कायम करता है
हमें इस जायंट टेक कंपनी की प्रकृति को समझने की जरूरत है. ट्विटर प्राइवेट सेक्टर की एक लिस्टेड कंपनी है लेकिन उसे ऐसे अनगिनत लोग चलाते हैं जो आम लोगों को अपनी उंगलियों पर नचाना चाहते हैं. सार्वजनिक विमर्श की दिशा को तय करना चाहते हैं. कोई वॉल स्ट्रीट के उस मॉन्स्टर के साथ कैसे निपट सकता है जिसका चरित्र सार्वजनिक है?
सालों पहले मैंने एक कॉलम में सुझाव दिया था कि एनजीओज़ और संयुक्त राष्ट्र जैसे सार्वजनिक संस्थानों को ट्विटर के शेयर्स के इनीशियल पब्लिक ऑफर (आईपीओ) को सबस्क्राइब करना चाहिए ताकि उसका सार्वजनिक चरित्र बना रहे.
असल में, ट्विटर राजनैतिक विमर्श के लिए एक महामार्ग जैसा है और उसे ऐसे इंफ्रास्ट्रक्चर के रूप में देखा जाना चाहिए जिसे पब्लिक मनी या सोशल चैरिटी की मदद दी जाए. उसे एक कंपनी माना जाना चाहिए, न कि एक ग्लैमरस परफॉर्मर जिसे अपने शेयर होल्डर्स को बार-बार यह यकीन दिलाना पड़े कि वह एकदम दुरुस्त है.
मस्क ठीक इसलिए आए क्योंकि डॉर्सी और उनके जैसे लोगों ने निजी पैसे का इस्तेमाल ऐसे ही किया, जैसे वह सरकारी पैसा था. यूजर्स को इस बात का भरोसा था कि सिर्फ उनकी मौजूदगी से ट्विटर को विज्ञापनदाताओं का पैसा मिलता रहेगा, और यह ठीक वैसा ही था, जैसे पुरानी शैली के पाठकों को यह महसूस होता है कि अखबारों में गड़ी उनकी निगाहों से तनख्वाहें बढ़ती रहेंगी, तरक्कियां मिलती रहेंगी.
जैसे टीवी सीरियल्स और लाइफ स्टाइल मैगेजीन्स ने अखबारों के विज्ञापन और पैसा को हजम कर लिया, उसी तरह ट्विटर से ज्यादा फेसबुक या गूगल ने विज्ञापनों से कमाई की.
क्या मस्क का मास्टरस्ट्रोक काम आएगा?
ध्यान से समझिए. मस्क ने समझ लिया है कि ट्विटर एक जरूरत बन चुका है. नकली प्रोफाइल्स को पहचान करने के लिए ट्विटर ने ‘वैरिफाइड’ या ‘ब्ल्यू टिक’ स्टेटस बनाया है. इसने एक एलीट क्लास की रचना की है, जोकि नकलचियों और बेलगामों को दूर रखे.
अब मस्क इसे एक एयरलाइन की तरह बनाना चाहते हैं: अगर आप एक महीने में 8 USD का भुगतान करने के लिए तैयार हैं, तो आप बिजनेस क्लास में उड़ान भर सकते हैं - और यह सब पारदर्शी है. यानी वैरिफिकेशन की समस्या खत्म- जोकि कामचलाऊ, अस्पष्ट और मनमानी थी (सरकारी तोहफों की तरह).
न्यूज रिपोर्ट्स से पता चलता है कि छंटनी का शिकार कुछ कर्मचारियों को वापस बुलाया गया है और कहा गया है कि गलती से उनकी छंटनी कर दी गई. यह वह जगह है जहां मस्क गंभीर रूप से गलत हो सकते हैं.
किसी बड़ी जंग के लिए हथियारों को मांजना एक बात है, लेकिन उधड़ी हुई सिवन को सिलने के लिए सुई की जगह तलवार निकाल लेना, बहुत बड़ी मूर्खता.
नॉलेज, वर्क सेंटर्ड कंपनियों को बहुत सावधानी से चलाना होता है, और मस्क में वह गुण नहीं है. हां, यह भी सच है कि वह सॉफ्टवेयर में सुधार कर रहे हैं और कंपनी में वित्तीय अनुशासन कायम करने की कोशिश कर रहे हैं जो अपने शुरुआती सेनापतियों की काहिली का शिकार थी.
ट्विटर के यूजर्स के अहंकार और उसका अधिग्रहण करने वालों की हेकड़ी की लड़ाई के बीच, हमें नतीजे पर इतनी जल्दी नहीं पहुंचना चाहिए. लेकिन यह जरूर है कि इंटरनेट यूजर्स की पैनी नजर इस पर टिकी होनी चाहिए कि डिजिटल मैदान में उनके खेल के लिए पैसा कौन चुका रहा है.
(लेखक सीनियर जर्नलिस्ट और कमेंटेटर हैं जो रॉयटर्स, इकोनॉमिक टाइम्स, बिजनेस स्टैंडर्ड और हिंदुस्तान टाइम्स के साथ काम कर चुके हैं. उनका ट्विटर हैंडिल @madversity है.)
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