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गंगाजल और मथुरा के पेड़े से सुधरने दीजिए डाक विभाग की सेहत

उम्‍मीद है कि ‘डिजिटल इंडिया’ आने वाले दिनों में अपना असली असर दिखला सकता है.

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एक दौर था, जब दोपहर में लोगों की निगाहें अपने-अपने घरों के दरवाजे की ओर टिकी होती थीं. कब साइकिल पर सवार डाकिया गुजरेगा और घंटी बजाकर अपनों की चिट्ठी-पत्री लाएगा. अब इंटरनेट और मोबाइल के इस दौर में यह गुजरे जमाने की बात जैसी हो गई है. लोग सोचते हैं कि अब डाक विभाग के पास काम ही क्‍या बचा है?

ऐसे में हाल ही में आई दो खबरों ने इस विभाग से ‘दिल का रिश्‍ता’ रखने वाले आम लोगों के चेहरे पर रौनक ला दी है. केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने पहले ऐलान किया कि डाक विभाग ऋषिकेश से भरा गया गंगाजल आम लोगों तक पहुंचाएगा. इसके बाद अब एक और दिलचस्‍प योजना लॉन्‍च की गई है. इसके तहत अब डाकिए मथुरा-वंदावन के मंदिरों के प्रसाद के तौर पर चढ़ाए गए पेड़े ‘ऑन डिमांड’ लोगों तक पहुंचाएंगे.

स्नैपशॉट
  • केंद्र सरकार ने डाक से गंगाजल व मथुरा के प्रसाद उपलब्‍ध कराने की योजना बनाई
  • योजना से डाक विभाग की आर्थिक हालत सुधारने की उम्‍मीद
  • धर्म की आड़ में साधु-संत कर रहे हैं विरोध
  • भारत के पास है दुनिया का सबसे विशाल पोस्‍टल नेटवर्क
  • भारत में 1,54,882 से ज्‍यादा पोस्‍ट ऑफिस, 89.86 फीसदी ग्रामीण इलाकों में
  • इन डाकघरों की ‘पीठ पर पांव’ रखकर आगे निकल रही हैं अमेजन व फ्लिपकार्ट जैसी कंपनियां
  • डाक विभाग में तरक्‍की में तमाम संभावनाएं मौजूद, सिर्फ ठोस फैसलों की दरकार

दिखने लगा ‘डिजिटल इंडिया’ का असर

ऐसे में किसी के भी जेहन में सबसे पहली बात यही आती है कि भले ही देर से सही, पर सरकार डाक विभाग के कायाकल्‍प की योजना तो लेकर आई. बरसों से पुराने तौर-तरीके और सोच के साथ काम रहे विभाग को अब नई तरह की जिम्‍मेदारियां दी जा रही हैं. केंद्र सरकार ने ‘डिजिटल इंडिया’ का खूब प्रचार-प्रसार किया. अब उम्‍मीद जगी है कि यह योजना आने वाले दिनों में बेहतर असर दिखा सकती है.

सरकार ने अब पकड़ी है लोगों की ‘नब्‍ज’

ऐसा लगता है कि सरकार ने सही तरीके से देशवासियों की नब्‍ज पकड़ी है. लोगों के दिलोदिमाग में धर्म के लिए क्‍या जगह है, इसकी झलक कुंभ मेलों में जुटने वाली लाखों-लाख की भीड़ से मिल जाती है. धार्मिक पर्यटन के तेजी से फैलते कारोबार से भी तस्‍वीर साफ हो जाती है.

घर-घर सप्‍लाई के लिए शुरुआत में जिन दो चीजों को चुना गया, वह तो मार्केट के लिहाज से सचमुच क्रांतिकारी साबित हो सकती है. हर किसी को गंगाजल चाहिए. जो गंगा के पास है, उसे भी, जो दूर है, उसे भी. जिंदगी के साथ भी और...आखिरी सांस लेने के वक्‍त पर भी. वही हाल प्रसाद का है. मथुरा के पेड़े नामी होते हैं. इन्‍हें पाने की चाहत तब और बढ़ जाती है, जब यह प्रसाद का रूप ले लेता है.

विरोध‍ करने वालों के तर्क में कितना दम?

गंगाजल की बिक्री की योजना सामने आते ही हरिद्वार समेत कुछ भागों में इसका विरोध भी जोर पकड़ रहा है. संत समाज से जुड़े कुछ लोगों का कहना है कि गंगा में देशवासियों की गहरी आस्‍था है और इसकी बिक्री से लोगों की भावनाएं आहत होंगी. इनमें से कुछ का तर्क है कि गंगा को लोग मां मानते हैं, ऐसे में मां को कैसे बेचा जा सकता है?

अगर हम गौर से देखें, तो विरोधियों के तर्क बेहद सतही नजर आते हैं. दरअसल गंगाजल अपने घर मंगवाएगा तो वही, जिसकी गंगा मैया में गहरी श्रद्धा होगी. गंगाजल का निरादर करने के लिए इसे शौकिया कौन मंगवाने जा रहा है? जो लोग गंगा से दूर बसते हैं, वैसे लोग भी गंगा को पूजते हैं. अगर डाक विभाग इसे आसानी से उपलब्‍ध करवा रहा है, तो इसे सराहनीय पहल समझा जाना ज्‍यादा सही लगता है.

अब दूसरी चीजों से परहेज क्‍यों?

सवाल उठता है कि जब दूसरी कंपनियां गोबर से बने उपलों तक को ऑनलाइन बेचकर सोना पैदा कर रही हैं, तो पोस्‍टल डिपार्टमेंट ऐसा क्‍यों नहीं कर सकता? आखिर देश के शहर-शहर और गांव-गांव तक जिस तरह का नेटवर्क पोस्‍टल डिपार्टमेंट के पास है, उसका जोड़ आज भी किसी दूसरे के पास नहीं है. दूसरी ओर अमेजन और फ्ल‍िपकार्ट जैसी ई-कॉमर्स कंपनियां डाक विभाग की पीठ पर ही पांव रखकर आगे निकलती चली जा रही हैं. ऐसे में डाक विभाग के जागने का यही सही वक्‍त है.

ऐसा शानदार नेटवर्क और कहां?

यह जानकार कोई भी हैरत में पड़ सकता है कि भारत के पास दुनिया का सबसे विशाल पोस्‍टल नेटवर्क है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, भारत में 1,54,882 से ज्‍यादा पोस्‍ट ऑफिस हैं. खास बात यह है कि इनमें से 1,39,182 पोस्‍ट ऑफिस ग्रामीण इलाकों में हैं. इस तरह साफ देखा जा सकता है कि 89.86 फीसदी पोस्‍ट ऑफिस उन ग्रामीण इलाकों में हैं, जहां पैठ बनाना दूसरी कंपनियों के लिए टेढ़ी खीर है.

आजादी के वक्‍त भी भारत में 23,344 डाकघर थे, लेकिन तब ये ज्‍यादातर शहरी इलाकों में थे. इस तरह तब से लेकर अब तक डाकघरों की तादाद में 7 गुना बढ़ोतरी हो चुकी है.

इस तरह भारत में औसतन 21.22 वर्ग किलोमीटर पर 1 पोस्‍ट ऑफिस है. अगर इसे आबादी के लिहाज से बांटा जाए, तो औसतन 8221 लोगों पर 1 पोस्‍ट ऑफिस है.

डाक विभाग के पास काम की कमी नहीं

ऐसा नहीं कि डाक विभाग के पास काम की कमी है. यह पार्सल और स्‍पीड पोस्‍ट जैसी सर्विस के अलावा बीमा और वित्तीय सेवाएं भी दे रहा है. इनमें कई तरह की सेविंग स्‍कीम, म्‍यूचुअल फंड, फॉरेक्‍स सर्विस, ई-पेमेंट भी शामिल हैं. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि विभाग नई सोच के साथ आगे बढ़े, तो इसका कायाकल्‍प होने में देर नहीं लगेगी.

दूसरी कंपनियां कैसे निकल रही हैं आगे?

फ्ल‍िपकार्ट और अमेजन जैसी कंपनियां अगर चीजों को घर-घर पहुंचाने के मामले में डाक विभाग को पीछे छोड़ रही हैं, तो उसके पीछे कई ठोस कारण नजर आते हैं. इन कारणों को आगे देखा जा सकता है.

1. ये ई-कॉमर्स कंपनियां तय वक्‍त पर चीजें पहुंचाने की पूरी गारंटी देती हैं.

2. इनका पेमेंट ऑप्‍शन लोगों को ज्‍यादा सुविधाजनक लगता है.

3. रिफंड या सामानों की वापसी के मुद्दे पर भी इसने लोगों का भरोसा जीता है.

4. इन कंपनियों को चलाने वालों की इमेज ‘मैनेजमेंट गुरु’ और ‘आईटी गुरु’ की है.

5. साथ ही इन कंपनियों पर सरकारी होने का ठप्‍पा नहीं लगा है.

तो कहां पिछड़ रहा है डाक विभाग?

इतने विशाल नेटवर्क और कर्मचारियों के होते हुए भी अगर पोस्‍टल डिपार्टमेंट पिछड़ रहा है, तो इसके पीछे मोटे तौर पर ये कारण हो सकते हैं.

1. सरकारी नौकरशाहों के हाथ में मैनेजमेंट, गलती होने के डर से कोई ठोस निर्णय न करना.

2. कामकाज का सरकारी तौर-तरीका, यानी ग्राहकों की संतुष्‍ट‍ि की परवाह नहीं.

3. स्‍पीड पोस्‍ट जैसी सर्विस को छोड़कर बाकी अन्‍य चीजों के मामले में लोगों का भरोसा नहीं.

4. पोस्‍ट ऑफिस में ‘लिंक फेल है’ जैसे जवाब आज भी धड़ल्‍ले से सुनने को मिलते हैं.

मर्ज का पता चल जाने पर उसका इलाज करना ज्‍यादा आसान हो जाता है. ऐसा लगता है कि अब सरकार ने नब्‍ज टटोलकर बीमारी पकड़ ली है. ऐसे में उम्‍मीद की जानी चाहिए कि ‘डिजिटल इंडिया’ के तहत सरकार ‘गंगाजल’ और ‘पेड़े’ की ही तरह कुछ और योजनाएं लेकर आएगी और इस विभाग को डेस्‍क की सुस्‍ती और उबासी से उबार लेगी.

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