यूं तो दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है, लेकिन सियासत में कई बार ये पुराना फॉर्मूला लागू नहीं होता. आखिर गुजरात में हार्दिक पटेल और अल्पेश ठाकोर एकसाथ कैसे आ सकते हैं, भले दोनों ही बीजेपी का विरोध कर रहे हों.
हार्दिक पटेल पिछले ढाई साल से पाटीदारों को ओबीसी कोटे में शामिल कर उन्हें शिक्षा और सरकार नौकरियों में आरक्षण दिलाने की मांग कर रहे हैं. जबकि ओबीसी एकता मंच के संयोजक अल्पेश ठाकोर ओबीसी कोटे में पटेलों यानी पाटीदारों को शामिल करने के धुर विरोधी रहे हैं. लेकिन सोमवार को कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के गांधीनागर दौरे ने इस गुत्थी को जैसे सुलझा दिया.
हम साथ-साथ हैं!
राहुल गांधी अल्पेश के ‘नवसर्जन जनादेश महासम्मेलन’ में शिरकत करने गांधीनगर गए थे, लेकिन उस दौरान हार्दिक पटेल की सक्रियता देखने लायक थी. राहुल के गुजरात पहुंचने से पहले हार्दिक ने कांग्रेस के गुजरात प्रभारी अशोक गहलोत से मुलाकात की. राहुल 1 नवंबर को फिर तीन दिन के गुजरात दौरे पर जा सकते हैं. उस दौरान राहुल और हार्दिक की मुलाकात हो सकती है.
तकनीकी तौर पर हार्दिक पटेल कांग्रेस में शामिल नहीं हुए हैं. लेकिन पॉलिटिक्स कोई मेकैनिकल इंजीनियरिंग तो है नहीं, जहां तकनीक चलती हो. यहां तो माहौल बनता है और माहौल यही कह रहा है कि गुजरात में बीजेपी की विरोधी ताकतें कांग्रेस की अगुवाई में लामबंद हो गई हैं.
राहुल के गुजरात दौरों के दौरान हार्दिक उनके स्वागत में पहले भी ट्वीट करते रहे हैं. सोमवार को भी सारा माहौल अल्पेश ठाकोर की रैली और उसमें राहुल गांधी के शामिल होने के इर्द-गिर्द ही घूम रहा था. लेकिन उसी दौरान हार्दिक ने बीजेपी के खिलाफ तीखे ट्वीट किए और जता दिया कि वो भी मुहिम में शामिल हैं.
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कांग्रेस पार्टी अगर पिछले दो दशक से गुजरात की सत्ता से बाहर है, तो इसकी कई वजहें रही हैं:
- किसी बड़े चेहरे का न होना
- खोखला हो चुका संगठन
- वोटरों का यकीन
बीजेपी से नाराज लोगों को भी लगता था कि कांग्रेस को वोट देना तो वोट खराब करना ही है. लेकिन गुजरात विधानसभा चुनाव से पहले राहुल गांधी के लगातार दौरों ने बड़े चेहरे की कमी को पूरा किया है. सुस्त और नाउम्मीद कार्यकर्ताओं ने जोश भरा है और गुजरात के लोगों के बीच कांग्रेस को विकल्प के तौर पर पेश किया है.
मोदी को ‘घर’ में चुनौती
राहुल गांधी जीएसटी को ‘गब्बर सिंह टैक्स’ कहकर सीधे मोदी पर ताना कसते हैं. ‘मोदी के गुजरात’ में ही मोदी को ललकारने के इस अंदाज में पब्लिक की नाराजगी लेने का रिस्क भी है. आखिर इस आग में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल अपने हाथ जला चुके हैं. इसके बावजूद राहुल ने ये सोचा-समझा रिस्क ले लिया है.
‘आप’ ने तोड़ी बीजेपी की आस
केजरीवाल की आम आदमी पार्टी से बीजेपी को बड़ी ‘आस’ थी, लेकिन उसने भी निराश कर दिया. आस यूं कि बीजेपी को लग रहा था कि अगर ‘आप’ भी गुजरात की चुनावी जंग में कूदी, तो कांग्रेस का ही नुकसान करेगी.
तितरफा मुकाबले में बीजेपी को फायदा हो सकता था, लेकिन ‘आप’ ने सिर्फ 11 सीटों पर ही लड़ने का फैसला किया, ताकि बीजेपी विरोधी ताकतों में बिखराव न हो.
बीजेपी के तीन-तिगाड़े
2014 में नरेंद्र मोदी के दिल्ली जाने के बाद गुजरात में बीजेपी विरोध के तीन युवा चेहरे तेजी से उभरे. पाटीदार नेता हार्दिक पटेल, ओबीसी नेता अल्पेश ठाकोर और दलित नेता जिग्नेश मेवाणी. जिग्नेश मेवाणी लगातार ये कह रहे हैं कि वो गुजरात में हर उस मंच के साथ हैं, जो बीजेपी के खिलाफ है.
ठाकोर सेना के नेता अल्पेश ठाकोर ने किसान कर्जमाफी आंदोलन और शराब विरोधी मुहिम जैसे कदमों से पिछड़ा वर्ग में अच्छी पैठ बनाई है.
51 फीसदी ओबीसी वोट गुजरात की 182 में से करीब 110 सीटों के नतीजे पलटने की ताकत रखता है. पाटीदारों की तादाद करीब 18 फीसदी और दलित करीब 7 फीसदी हैं.
ठाकोर, पटेल और मेवाणी को साधकर कांग्रेस पार्टी ने अपना जातिगत समीकरण ठीक कर लिया है. लेकिन देश के 18 राज्यों में सत्ता पर काबिज बीजेपी के लिए ‘मोदी-शाह का गुजरात’ सिर्फ एक सूबा नहीं, माथे का मुकुट है. वो इसे बचाने के लिए साम-दाम-दंड-भेद सब लगा देगी. सो कांग्रेस पार्टी के लिए मौजूदा उत्साह को अंजाम तक पहुंचाना कतई आसान नहीं होगा.
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