अमेरिका में आखिरी पब्लिक लिंचिंग साठ के दशक में हुई. अमेरिका में लिंचिंग यानी भीड़ द्वारा सार्वजनिक स्थान पर किसी व्यक्ति या व्यक्तियों को घेरकर मार देने की घटनाओं के लगभग सारे शिकार ब्लैक यानी अश्वेत होते थे. ज्यादातर केस में उनका अपराध यह होता था कि उन्होंने किसी श्वेत महिला से सहमति या असहमति से यौन संबंध बनाए थे.
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इन लिंचिंग को श्वेत समाज की मान्यता थी. काफी समय तक तो ऐसा हुआ कि लिंचिंग की बाकायदा घोषणा होती थी कि आज शाम चौराहे पर लिंचिंग की जाएगी और श्वेत सपरिवार, बच्चों समेत लिंचिंग देखने जाते थे. कई बार आइसक्रीम या बर्गर खाते हुए लिंचिंग देखते थे. उन लिंचिंग के लाखों पोस्टर पोस्टकार्ड आज भी अमेरिकी घरों और संग्रहालयों में रखे हैं.
अमेरिका में यौन संबंधों को लेकर होने वाली लिंचिंग को लेकर सामाजिक सहमति इसलिए थी, क्योंकि श्वेत समाज की मुख्यधारा मानती थी कि श्वेत महिलाओं से यौन संबंध बनाना या उनसे शादी करना श्वेत पुरुषों का विशेषाधिकार है और ब्लैक लोग ऐसा करके समाज के नियम तोड़ रहे हैं.
अमेरिका के कई राज्यों में 50 साल पहले तक अंतरनस्लीय शादियों पर कानूनी पाबंदी भी थी. इसका भी उद्देश्य श्वेत रक्त शुद्धता को बनाए रखना था. 1967 में अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों में चले आ रहे उन कानूनों को निरस्त कर दिया, जिसके तहत श्वेत और अश्वेत के बीच शादी को दंडनीय अपराध माना जाता था.
लेकिन वही अमेरिका 2009 में ह्वाइट हाउस में बराक ओबामा को राष्ट्रपति चुनकर भेजता है, जो खुद अंतरनस्लीय शादी की संतान हैं. ओबामा अश्वेत पिता और श्वेत माता की संतान हैं. कुछ दशक पहले तक ओबामा का होना ही गैरकानूनी था.
यह नहीं भूलना चाहिए कि अमेरिका आज भी श्वेत बहुल देश है और ओबामा वहां के सिर्फ 12.3 फीसदी अश्वेतों के वोट से राष्ट्रपति नहीं बन सकते थे. जाहिर है कि श्वेतों ने ही ओबामा को व्हाइट हाउस पहुंचाया. एक मायने में यह श्वेत अमेरिका का ऐतिहासिक पश्चाताप है.
अमेरिका की जनगणना के आंकड़े बताते हैं कि देश में होने वाली शादियों में 17 फीसदी अंतरनस्लीय हैं. ऐसी शादियों की संख्या बढ़ रही है. अमेरिका में सबसे तेजी से बढ़ती हुई नस्ल मिली जुली शादियों से पैदा हुए संतानों की है.
अमेरिकी समाज ने अश्वेतों की लिंचिंग से चलकर मिली-जुली नस्ल के ओबामा को व्हाइट हाउस में भेजने की शानदार यात्रा 50 साल में पूरी कर ली. लेकिन भारत में सामाजिक विकास की घड़ी अटकी हुई है.
भारत अब धर्मग्रंथों से नहीं, संविधान से चलता है
भारत में अंतरजातीय शादियों का शास्त्रों में निषेध है. अगर शूद्र की किसी ब्राह्मण से यौन संबंध बनाता है, तो इसके लिए शास्त्रों में मृत्युदंड का विधान है. जो भी व्यक्ति इन धर्मग्रंथों में विश्वास करता है, उसके लिए यह धार्मिक कर्तव्य बन जाता है कि वह अंतरजातीय शादियों को रोके और इसके लिए जो भी उचित हो करे. इस मायने में खासकर ऊपर की जाति में शादी करने वाले युवकों और नीचे की जाति में शादी करने वाली युवतियों की हत्या (जिसे पता नहीं क्यों ऑनर किलिंग कहा जाता है) को शास्त्रीय मान्यता थी.
लेकिन यह किसी और जमाने की बात है. भारत अब धर्मग्रंथों से नहीं, संविधान से चलता है. 26 जनवरी, 1950 को भारतीय नागरिकों ने खुद को एक संविधान दिया था. इसमें जन्म, जाति, धर्म या लिंग के आधार पर किसी भी भेदभाव का निषेध है. समानता शब्द संविधान की प्रस्तावना में ही वर्णित है. इसके अलावा समानता के अधिकार को मौलिक अधिकारों के अध्याय में भी जगह दी गई है.
भारत में अंतरजातीय ही नहीं, अंतरधार्मिक शादियों को भी कानूनी मान्यता है. धार्मिक बंधनों से मुक्त होकर शादी करने के लिए स्पेशल मैरिज एक्ट है. जन्म के आधार पर छुआछूत का निषेध किया गया है और सिविल राइट्स एक्ट के तहत छुआछूत को कानूनी अपराध भी घोषित किया गया है.
इसके बावजूद हर साल देश में बड़ी संख्या में ऑनर किलिंग की घटनाएं हो रही है. हाल ही में तेलंगाना में हुई ऑनर किलिंग की घटना ने पूरे देश को झकझोर दिया है. ऑनर किलिंग चूंकि कानून की कोई अलग धारा में नहीं है, इसलिए केंद्रीय गृह मंत्रालय का क्राइम रेकॉर्ड्स ब्यूरो इसके आंकड़े अलग से नहीं जुटाता.
ऑनर किलिंग को आईपीसी की अलग धारा में दर्ज न किए जाने तक हम ऑनर किलिंग की घटनाओं के आंकड़े नहीं जान पाएंगे. लेकिन अपने आस पास हम ऐसी घटनाएं होते हुए लगातार देख रहे हैं. ये घटनाएं देश के लगभग तमाम हिस्सों में हो रही है. दक्षिण के समाज सुधार आंदोलन इस सामाजिक बुराई को खत्म नहीं कर पाए.
ऑनर किलिंग अंतरजातीय संबंधों को रोकने का उपाय
यह नहीं भूलना चाहिए कि ऑनर किलिंग अंतरजातीय संबंधों या शादियों को रोकने का आखिरी उपाय है. परिवारों में ऐसे संबंधों को बनने से पहले और बनने के बाद रोकने के कई तरीके आजमाए जाते हैं.
मिसाल के तौर पर, अगर किसी लड़की के बारे में यह पता चलता है कि उसका किसी और जाति के लड़के से प्रेम है, तो लड़की के घर से अकेले निकलने पर रोक लगाई जाती है और कई बार उसकी फटाफट शादी करके उसे ससुराल भेज दिया जाता है. उसके साथ मारपीट की जा सकती है, उसे कमरे में बंद किया जा सकता है, मां अपना खाना बंद करके इमोशनल ब्लैकमेल कर सकती है, उसका मोबाइल फोन छीन लिया जा सकता है, लड़के से मारपीट हो सकती है, लड़के को और उसके परिवार को धमकाया जा सकता है, उस पर पुलिस और प्रशासन से दबाव डाला जा सकता है.
ऐसे सैकड़ों तरीकों से इन संबंधों को रोकने की कोशिश होती है. ये सब बातें अक्सर परिवार के अंदर होती हैं और इसकी कोई रिपोर्टिंग भी नहीं होती.
ऑनर किलिंग मुख्य रूप से दक्षिण एशिया की और यहां भी भारत और पाकिस्तान की समस्या है. इसकी कुछ मुख्य प्रवृत्तियां इस प्रकार हैं.
- ऑनर किलिंग के ज्यादातर मामले तब होते हैं, जब लड़की की सामाजिक हैसियत ऊपर हो और लड़के की पृष्ठभूमि कमजोर हो.
- ऑनर किलिंग के मामले मुख्य रूप से संक्रमण वाले समाजों में होते हैं, जहां आधुनिकता आ रही है, लेकिन परंपराएं पूरी तरह खत्म नहीं हुई हैं. पूरी तरह आधुनिक हो चुके समाज या पूरी तरह कबीलाई तरीके से जी रहे समाज में ये समस्या नहीं है.
- ऑनर किलिंग शहरों और कस्बों या शहरीकृत गावों में ही ज्यादा होती है, क्योंकि इन जगहों में ही अलग अलग सामाजिक पृष्ठभूमि वाले युवाओं के आपस में मिलने जुलने के मौके ज्यादा होते हैं.
- ऑनर किलिंग का आर्थिक हैसियत से कम लेना देना है. ऑनर किलिंग करने वाला परिवार अमीर या गरीब कोई भी हो सकता है.
- ऑनर किलिंग व्यक्ति नहीं परिवार, रिश्तेदार और कई बार पूरा समाज मिलकर करता है. परिवार की औरतें भी उसमें सीधे या मौन सहमति की शक्ल में मौजूद हो सकती हैं. ऑनर किलिंग करने के लिए जातीय और पारिवारिक दबाव एक फैक्टर के तौर पर काम करता है.
- ऑनर किलिंग करने वाले परिवार का सामाजिक बहिष्कार नहीं होता. बल्कि उस परिवार को अक्सर सामाजिक स्वीकृति होती है कि इज्जत बचाने के लिए उसने सही किया.
- ऑनर किलिंग को लेकर प्रशासन संवेदनशील नहीं है. ऐसे मामले देखने में आए हैं, जब स्वजातीय पुलिस अफसरों ने अभियुक्त परिवार को बचाने की कोशिश की.
सवाल उठता है कि एक आधुनिक शासन पद्धति को अपनाए जाने के लगभग सत्तर साल बाद भी भारतीय समाज इस तरह का आचरण क्यों कर रहा है?
इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि भारत एक साथ आधुनिकता और परंपरा को ढो रहा है. शासन प्रणाली आधुनिक है, हर वोट का मूल्य बराबर है. कानून की नजर में हर नागरिक समान है. लेकिन सतह पर मौजूद इस आवरण के नीचे एक सामंतशाही, जातिवादी समाज है जो जन्म के आधार पर कभी खुद को ऊंच तो कभी नीच मानता है. वहां इज्जत की एक पुरातन अवधारणा है, जो महिला की देह से निर्धारित होती है. जहां कन्या का दान होता है और दान करने से पुण्य मिलता है.
यह समाज अभी भी यह मानने के लिए तैयार नहीं है कि लड़की या महिला भी एक स्वतंत्र नागरिक है और अपनी देह के बारे में फैसला करने का अधिकार उसे है, न कि उसके पिता, मामा, भाई या चाचा को.
ऑनर किलिंग को रोकने के लिए अभी कोई अलग कानूनी फ्रेमवर्क नहीं है. आईपीसी की धाराओं के तहत ही इसके मामले दर्ज होते हैं. लेकिन मौजूदा कानून इन घटनाओं को रोकने में अक्षम साबित हुआ है. जरूरत इस बात की है कि अंतरजातीय शादी करने वाले युवाओं को कानून का संरक्षण प्राप्त हो. उन्हें धमकी देने वालों या उन्हें नुकसान पहुंचाने के मामलों में त्वरित कार्रवाई की व्यवस्था हो. दोषियों को फास्ट ट्रेक कोर्ट में सजा मिलनी चाहिए. साथ ही ऑनर किलिंग के अपराधों लिए दंड भी सख्त होने चाहिए.
इन परिस्थितियों में सरकार को ऑनर किलिंग रोकने और दोषियों को सजा देने के लिए अलग से कानून बनाने पर विचार करना चाहिए.
(लेखिका भारतीय सूचना सेवा में अधिकारी हैं. इस आर्टिकल में छपे विचार उनके अपने हैं. इसमें क्विंट की सहमति होना जरूरी नहीं है)
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