ADVERTISEMENTREMOVE AD

बाइडेन का नेतन्याहू पर दबाव क्या इजरायल के प्रति अमेरिकी नीति में बदलाव का संकेत है?

अमेरिका में यह चुनावी साल है, ऐसे में बाइडेन इस राजनीतिक रूप से जटिल सवाल पर जल्दबाजी में कोई फैसला नहीं लेंगे.

story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा

24 मार्च को संयुक्त राज्य अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के उस प्रस्ताव पर रोक लगा दी जिसमें गाजा पट्टी में संघर्ष विराम का आह्वान किया गया था. पिछले साल 7 अक्टूबर को इजरायल पर हमास के हमले के बाद जारी जंग में यह मौका था, जब अमेरिका ने यूएनएससी के प्रस्ताव पर मतदान करने से परहेज किया.

अमेरिका के मतदान नहीं करने के बाद प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू (Benjamin Netanyahu) ने अपनी नाराजगी व्यक्त करते हुए वाशिंगटन डीसी में एक उच्च-स्तरीय इजरायली प्रतिनिधिमंडल की यात्रा रद्द कर दी.

ADVERTISEMENTREMOVE AD
इजरायली सैन्य हमले में सेवन वर्ल्ड सेंट्रल किचन सहायता कर्मियों की मौत के बाद गाजा में इजरायली सैन्य अभियानों को लेकर प्रधानमंत्री नेतन्याहू और राष्ट्रपति बाइडेन के बीच तनावपूर्ण बातचीत हुई थी.

इसके बाद, इजरायल सहायता सामग्री पर लगे कुछ प्रतिबंधों को कम करने पर राजी हुआ और उसने सहायता कर्मियों की हत्या मामले को लेकर जांच करने का भी वादा किया.

क्या ये घटनाक्रम नेतन्याहू सरकार के प्रति अमेरिकी नीति में बदलाव का संकेत देते हैं या ये ज्यादातर डेमोक्रेटिक पार्टी के भीतर बढ़ती बेचैनी को शांत करने के लिए डिजाइन किए गए दिखावटी संकेत हैं? आखिरकार, जब एक रिपोर्टर ने बाइडेन से पूछा कि क्या संयुक्त राज्य अमेरिका इजरायल को सैन्य सहायता में कटौती करने पर विचार कर रहा है तो अमेरिकी राष्ट्रपति ने कठोर जवाब दिया.

भले ही उन्होंने नागरिकों और सहायता कर्मियों की सुरक्षा के लिए इजरायल पर कुछ दबाव डाला है, उनका प्रशासन अभी भी एफ-15 लड़ाकू जेट के प्रावधान सहित $18 बिलियन के हथियार पैकेज पर विचार कर रहा है.

इजरायल को सैन्य सहायता की यह संभावित नई और बड़ी किश्त ऐसे समय में मिलने जा रही है, जब इजरायल की पूर्व कट्टर समर्थक और अमेरिकी प्रतिनिधि सभा की पूर्व अध्यक्ष नैन्सी पेलोसी ने भी सहायता कर्मियों की मौत की जांच करने तक हथियारों के ट्रांसफर रोकने की बात कही है. उन्होंने कहा कि जब तक यह सहायता कर्मी कैसे मारे गए, इसकी जांच नहीं हो जाती और इजरायल गाजा में अपने सैन्य अभियान जारी रखते हुए नागरिकों की सुरक्षा के लिए स्पष्ट कदम नहीं उठाता, तब तक हथियार नहीं दिए जाने चाहिए.

इस बात की ज्यादा संभावना है कि नेतन्याहू सरकार पर बाइडेन प्रशासन का दवाब, इजरायल और गाजा में चल रहे युद्ध को लेकर अमेरिकी नीति में बदलाव का संकेत नहीं है. हालांकि, यह संभवतः डेमोक्रेटिक पार्टी के अंदर वामपंथी झुकाव वाले तत्वों की वजह से हुआ है, जो नहीं चाहते हैं कि गाजा में सैन्य कार्रवाई के लिए नेतन्याहू सरकार को खुली छूट मिले.

अमेरिकी नीति में बदलाव नहीं होने के पीछे कई बड़े कारण हैं. सबसे पहला, अमेरिकी राजनीति में काफी पहले ये बात चली आ रही है कि इजराइल के लिए समर्थन अमेरिका की मध्य पूर्व नीति का एक प्रमुख तत्व है.

अमेरिकी विदेश नीति और अंतरराष्ट्रीय संबंध के दो प्रमुख स्कॉलर- जॉन मियर्सहाइमर और स्टीफन वॉल्ट ने कुछ साल पहले इस नीति पर सवाल उठाया था. इस दौरान उन्हें अपने विचारों के लिए तीखी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा था जिसमें यहूदी-विरोधी आरोप भी शामिल थे.

आज भी, कुछ स्कॉलर और कार्यकर्ता खुले तौर पर उस विचार को साझा करने के इच्छुक हैं जो मियर्सहाइमर और वॉल्ट ने अपनी पुस्तक में व्यक्त किया है. दोनों विद्वानों ने एक संगठित इजरायल लॉबी के अस्तित्व के बारे में जो तर्क दिया, उसे फिलहाल खारिज किया जा सकता है.

यहां तक कि कांग्रेस (अमेरिकी संसद) में इजरायल की वर्तमान नीतियों की खुली आलोचना पर चुप्पी देखने को मिली है. अमेरिकी प्रतिनिधि सभा में तीन आवाजें काफी प्रमुख रही हैं: पहली- मिसौरी की अश्वेत प्रतिनिधि कोरी बुश, दूसरी- भारतीय मूल की अमेरिकी सांसद प्रमिला जयपाल और तीसरी- एकमात्र फिलिस्तीनी-अमेरिकी सांसद रशीदा तलीब.

इनके अलावा, सामाजिक लोकतांत्रिक सीनेटर वर्मोंट के बर्नी सैंडर्स, जो यहूदी हैं, उन्होंने भी हमास के खिलाफ युद्ध में इजराइल की नीतियों की खुले तौर पर आलोचना की है. इन आवाजों के अलावा, कुछ अन्य सीनेटर्स और सदस्यों ने सीमित और नपी-तुली आलोचनाएं की हैं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

अमेरिकी सीनेट में बहुमत के नेता चक शूमर, जो यहूदी भी हैं, उन्होंने इजराइल की नीतियों पर अपने पिछले से हटते हुए सार्वजनिक रूप से सुझाव दिया गया कि इजरायल एक नई सरकार के लिए मतदान करे.

इसके अलावा, लंबे समय से इजराइल के समर्थक, डेलावेयर के सीनेटर क्रिस कून्स, जो सीनेट की विदेश संबंध समिति के सदस्य हैं. उन्होंने हाल ही में इजराइल को शर्त के साथ सहायता देने का आह्वान किया है.

इस तरह की असहमति के बावजूद, इस बात की बेहद कम संभावना है कि इजरायल के प्रति नीति में तीव्र बदलाव होगा. अमेरिका में इस साल राष्ट्रपति चुनाव होने हैं. ऐसे में कड़े चुनावी मुकाबले के मद्देनजर इस बात की बेहद कम संभावना है कि राष्ट्रपति बाइडेन राजनीतिक रूप से जटिल मुद्दे पर जल्द कोई फैसला लेंगे. इसके अलावा, प्रधानमंत्री नेतन्याहू के पास युद्ध को लंबा खींचने के अपने कारण हैं. युद्ध के खत्म होने से उसके खिलाफ विभिन्न कानूनी आरोप फिर से खुल सकते हैं जो वर्तमान में लंबित हैं.

इसके अलावा, अमेरिकी राजनीति के एक चतुर पर्यवेक्षक के रूप में नेतन्याहू जानते हैं कि वो पिछले साल अक्टूबर में हुए हमास के हमले की नृशंस बातों को उजागर करके व्यापक अमेरिकी राजनीतिक परिदृश्य से समर्थन हासिल कर सकते हैं. उनकी हालिया टिप्पणी से यह बात स्पष्ट है. उन्होंने "काम खत्म करने" के लिए अमेरिकी सैन्य सहायता जारी रखने की अपील की है.

राजनीतिक परिस्थितियों और संयुक्त राज्य अमेरिका और इजराइल में प्रमुख खिलाड़ियों की नीतिगत प्राथमिकताओं को देखते हुए, वर्तमान नीतियों में किसी नाटकीय बदलाव की संभावना नहीं दिख रही है.

(सुमित गांगुली ब्लूमिंगटन स्थित इंडियाना यूनिवर्सिटी में भारतीय संस्कृति और सभ्यता पर टैगोर चेयर रखते हैं और स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में हूवर इंस्टीट्यूशन में विजिटिंग फेलो हैं. यह एक ओपिनियन पीस है और व्यक्त किए गए विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट हिंदी न तो इसका समर्थन करता है और न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×