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पुतिन अपमान का इतिहास 'सुधारना' चाहते हैं,पर क्या ये रूस के भविष्य के लिए ठीक है

रूस-यूक्रेन संकट- पुतिन का नया कदम सभी देशों के लिए बुरी खबर है

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रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन (Vladimir Putin) के लुहांस्क पीपुल्स रिपब्लिक और डोनेट्स्क पीपुल्स रिपब्लिक को मान्यता देने के फैसले ने रूस-नाटो संकट को और गहरा कर दिया है. इन दोनों शहरों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यूक्रेन का हिस्सा माना जाता है. पुतिन के इस ऐलान के बाद हालात और गंभीर हो गए हैं कि रूसी सेना शांति कायम करने के लिए इन दो ‘गणराज्यों’ में दाखिल होगी.

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संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) का कोई देश रूस की पहल के पक्ष में नहीं है. कुछ घंटे पहले हुई आपात बैठक में यह बात साफ हो गई है. संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने रूस के कदम को ‘यूक्रेन की क्षेत्रीय एकता और संप्रभुता का उल्लंघन’ बताया है और कहा है कि ‘यह यूएन चार्टर के सिद्धांतों के खिलाफ है’. इस तरह से महासचिव ने सुरक्षा परिषद के एक स्थायी सदस्य की कड़ी आलोचना की है.

सभी देशों के लिए खराब खबर

अमेरिका और ब्रिटेन ने इन दोनों इलाकों पर प्रतिबंध लगा दिए हैं, और रूस पर भी प्रतिबंध के ऐलान कर दिए हैं. ऐसी भी आशंका है कि यूरोपीय संघ के सदस्य देश भी इसी रास्ते पर चलेंगे, हालांकि अमेरिका और ब्रिटेन जैसे मकसद से नहीं.

हैरान नहीं है कि इस संकट का असर विश्व बाजार पर भी पड़ा है. कोविड-19 ने पहले ही विश्व अर्थव्यवस्था में उथल पुथल मचाई है. अब यह मुसीबत और बड़ी होने जा रही है. बेशक, यह सभी देशों के लिए बुरी खबर है, खास तौर से गरीब और कमजोर देशों के लिए.

पूछा जा सकता है कि क्या पुतिन ने भारी भूल की है- उन्होंने अपनी ताकत का गलत अंदाजा लगाया है? यह काफी बुरी बात थी कि उन्होंने दुनिया को इस मुसीबत में डाला. इसने विश्व अर्थव्यवस्था को तो नुकसान पहुंचाया, इसके चलते ऊर्जा की कीमतें बढ़ीं. सभी देशों का बिगाड़ हुआ. हालांकि कुछ देशों का मानना है कि रूस को अपनी सुरक्षा की हिफाजत तो करनी ही है.

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लेकिन किसी राज्य की क्षेत्रीय अखंडता का उल्लंघन करना, भले ही वह अलगाववाद का सामना कर रहा हो, एक अलग ही मसला है. इस बात को लगभग सभी देश नामंजूर करेंगे- हिमायतियों को छोड़ दें- भले ही वे इस मुद्दे पर कोई टिप्पणी न करें.

पुतिन की विश्वसनीयता दांव पर

लुहांस्क और डोनेट्स्क के फैसले और वहां रूसी सेना की रवानगी के साथ पुतिन की विश्वसनीयता को जबरदस्त धक्का लगेगा. चूंकि उन्होंने जोर देकर कहा था कि रूस का इरादा यूक्रेन पर चढ़ाई करना नहीं है. रूस का तर्क है कि लुहांस्क और डोनेट्स्क ने अपने को आजाद घोषित किया है और ये दोनों जगहें यूक्रेन के क्षेत्र में नहीं आतीं. लेकिन इस बात पर यकीन नहीं किया जा सकता. खासतौर से सुरक्षा परिषद के बयान के बाद.

इस फैसले के बाद पुतिन ने रूस की जनता को संबोधित किया. इस भाषण से यूक्रेन के प्रति पुतिन का रवैया साफ झलकता था. पुतिन ने कहा कि ‘यूक्रेन सिर्फ एक पड़ोसी देश नहीं है. यह हमारी अपने इतिहास, संस्कृति और आध्यात्मिक पहलु का एक अटूट हिस्सा है.’ उन्होंने कहा कि ऐतिहासिक रूप से यह रूस की ही सरजमीं है. उन्होंने अप्रत्यक्ष तरीके से लेनिन सहित बोलशेविक्स पर अप्रत्यक्ष तरीके से आरोप लगाया कि उन्होंने ऐसे गणराज्यों के आधार पर सोवियत संघ की नींव रखी जो राष्ट्रवादियों को खुश करते थे. उन्होंने यहां तक कहा कि आजाद यूक्रेन कभी एक स्थिर राज्य नहीं बन सकता और वह ‘विदेशियों’ की मुट्ठी में है. इसे हम उनका उपनिवेश ही सकते हैं. फिर पुतिन ने यह तक बोल दिया कि "यूक्रेन में वास्तविक राज्य की परंपरा कभी नहीं रही".

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पुतिन के दिमाग में झांक कर देखें

पुतिन ने जोरदार तरीके से कहा कि विदेशी ताकतों ने यूक्रेन का इस्तेमाल रूसी हितों के खिलाफ किया था और यूक्रेनी नेता उनकी कठपुतली बन गए थे. उन्होंने कहा कि नाटो रूस को अपना दुश्मन मानता रहा है. नाटो 1999 से रूस की पूर्वी दिशा की तरफ बढ़ रहा है और यह और कुछ नहीं, रूस को घेरने की तैयारी है. फिर पुतिन ने डर जताया कि अगर यूक्रेन नाटो का सदस्य बन जाता है तो रूस की सुरक्षा को कैसे खतरा होगा. उन्होंने कहा, "अगर यूक्रेन नाटो में शामिल होता है तो यह रूस की सुरक्षा पर सीधा खतरा होगा."

यह भाषण बताता है कि पुतिन के दिमाग में क्या चल रहा है. वह तब 39 साल के थे और केजीबी में सोलह साल बिता चुके थे, जब सोवियत संघ का पतन हुआ था. शीत युद्ध में रूस की हार का अपमान उन्होंने गहरा महसूस किया था. फिर इसके बाद येल्तसिन के दौर में तो रूस की और तौहीन हुई थी.

1999 में पुतिन रूस के राष्ट्रपति बने. इसके बाद 2008-2012 के दौरान जब वह प्रधानमंत्री रहे, वह देश के मुख्य नेता बने रहे. वह अपने राष्ट्र की गरिमा को बनाए रखने की कोशिश करते रहे हैं. उनके लिए इसका मतलब यह है कि रूस की बड़ी सेना को और बड़ा किया जाए और रूस की जनता में देशभक्ति को और बढ़ाया जाए.
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कोई नहीं चाहता कि घड़ी का कांटा पीछे जाए

हालांकि पुतिन ने जो कहा, वह रूसियों को लुभा सकता है, लेकिन विश्व समुदाय नहीं चाहता कि घड़ी का कांटा पीछे की तरफ जाए. उम्मीद की जाएगी कि महान रूस का अतीत उसकी मौजूदा रणनीतियां का रहनुमान न बने. इसी के साथ, भले ही विश्व समुदाय का एक हिस्सा रूस की सुरक्षा को लेकर संजीदा है, लेकिन इसका मतलब यह कतई नहीं है कि किसी पड़ोसी देश की क्षेत्रीय अखंडता में खलल पैदा की जाए.

इसका एक रास्ता यह है कि नाटो रूस को यूक्रेन की सदस्यता के बारे में भरोसा दिलाए. यह विश्व की मौजूदा व्यवस्था के अनुकूल है जिसमें राज्यों की संप्रभुता को बनाए रखने के साथ साथ महान शक्तियों की सुरक्षा का भी ख्याल रखा जाता है.

1945 में संयुक्त राष्ट्र की स्थापना हुई. उसके बाद से इतिहास गवाह है कि कैसे शक्तिशाली देशों ने अपनी सुरक्षा की दुहाई देते हुए छोटे देशों की संप्रभुता का हनन किया है. इस लिहाज से रूस को लुहांस्क और डोनेट्स्क से जुड़े अपने फैसले पर फिर से सोचना चाहिए.

कहा जा सकता है, रूस और नाटो, और अमेरिका भी, अपने मकसद को पूरा करने के लिए बिना सोचे समझे फैसले ले रहे हैं. यह व्यावहारिक कूटनीति नहीं कही जा सकती. इससे हालात सुधरने वाले भी नहीं. इसलिए आने वाला समय बेचैनी वाला समय होने वाला है.
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(लेखक विदेश मंत्रालय के पूर्व सचिव (पश्चिम) रहे हैं. उनका ट्विटर हैंडिल है @VivekKatju. यह एक ओपनियन पीस है. यहां व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट का उनसे सहमत होना जरूरी नहीं है.)

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