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ट्विटर और ब्राह्मणवादी पितृसत्ता: क्या कहती हैं पंडिता रमाबाई ?

ट्विटर CEO जैक डोरसी जहरीले ट्रोलर्स का नया शिकार बने हैं, इस बार ट्रोलर्स ब्राह्मणवाद के रक्षक के रूप में नजरआए.

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बीते सप्ताह के आखिर में जहरीले ट्रोल सवर्णों के रक्षक के रूप में नजर आए. विडम्बना ये है कि उनके क्रोध का केन्द्र ट्विटर के सीईओ जैक डोरसे थे. ट्विटर, जिसने सोशियो पैथ यानी सामाजिक उपचार करने वालों को स्टार बनाया है और जिसने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के गुस्से को वास्तविक समय में 280 कैरेक्टर में इजहार किया है.

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ट्विटर ट्रोल और ब्राह्मणवाद


बेचारे जैक की धुलाई इसलिए हुई क्योंकि उनकी एक तस्वीर सामने आयी जिसमें वे पोस्टर पकड़े हुए हैं जिस पर लिखा है “पितृसत्तात्मक ब्राह्मणवाद को चूर करो.” उनके भारत आने पर यह वायरल हो गया. दुनियाभर में ब्राह्मणवाद के कुलपतियों को इस पर आश्चर्य नहीं हुआ और वे आपस में उस भाषा में अपनी भावना रखने लगे जिसे सुनकर खलासी भी शर्मा जाए.

इन लोगों में सेवारत एक पुलिस अफसर भी शामिल थे जिनका विचार था कि जातिगत दंगा ‘उकसाने’ के लिए डोरसी को जेल भेजा जाना चाहिए. शुक्र है कि यह आग भड़की नहीं. लेकिन ट्विटर ने अपने सीईओ के ‘गलत कदम’ पर ठीक वैसे ही व्यवहार किया जैसे ऊंची जाति के कुएं के पानी पर किसी दलित की छाया पड़ जाने पर होता है.

एक और ट्रोल, जिसके ट्वीट्स के खजानों ने डोरसी को सबक सिखाने के लिए अमेरिकी पितृसत्तात्मक ब्राह्मणवादियों संदेश दिया. इसकी गूंज भी धनदेवता कुबेर के कानों तक गयी होगी. सोमवार 19 नवम्बर को ट्विटर 32.14 अमेरिकी डॉलर पर कारोबार कर रहा थी, जो मंगलवार 20 नवंबर को 31.05 डॉलर पर बंद हुआ.

डोरसी पर जो विषवमन हुआ, उससे कई बातें साबित होती हैं. राजा राम मोहन राय ने बाल विवाह और सती के प्रचलन के खिलाफ जो अभियान चलाया था, उसके करीब ढाई सौ साल बाद भी भारतीय समाज में सवर्णों का महिलाओं के प्रति जहरीला पूर्वाग्रह बना हुआ है.

आधुनिक सवर्ण रक्षकों से राजा राम मोहन राय को कुछ हासिल नहीं हुआ

बाल विवाह की प्रथा से राय डरे हुए थे और उन्होंने इसकी कड़ी निन्दा की. मनुस्मृति में अनुशंसा की गयी है, “30 साल का एक व्यक्ति 12 साल की कुंआरी से या 24 साल का युवक 8 साल की बच्ची से शादी करेगा, जो उसे खुश रखे.” सवर्ण समाज ने भी सात या आठ साल के लड़के को पांच साल या उससे छोटी बच्ची से शादी करने को गलत ठहराकर स्थिति में सुधार किया.

सती या संगठित तरीके से महिला की हत्या को ‘पवित्र’ बताने वाले ब्राह्मणवादी विचारों और रीति रिवाजों से संघर्ष के लिए राय निर्दयता पूर्वक कट्टरपंथियों के हाथों ट्रोल हुए थे.

कलकत्ता की सड़कों पर भीड़ ने उनकी गाड़ी पर हमला किया था. ताकतवर कट्टरपंथियों के किराए के गुंडों से पुलिस ने उनकी रक्षा की. राय की मृत्यु के चार साल पहले 1829 में गवर्नर जनरल विलियम बेंटिक ने सती प्रथा को खत्म कर दिया.

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कादम्बिनी गांगुली वेश्या करार दी गयी

1883 में कादम्बिनी गांगुली (बोस) और चंद्रमुखी बासु ब्रिटिश भारत की पहली महिला ग्रैजुएट हुईं. उस साल कादम्बिनी की शादी ब्रह्मसमाज के सुधारवादी द्वारका नाथ गांगुली से हुई. द्वारकानाथ के सहयोग से कादम्बिनी बंगाल मेडिकल कॉलेज से एक डॉक्टर के रूप में ग्रैजुएट हुईं.

इससे सवर्ण बंगाली समाज को मानो लकवा मार गया. कई बातों के अलावा कादम्बिनी पर ‘वेश्या’ का तमगा चस्पां कर दिया गया.

द्वारकानाथ ने अदालत में हर आरोप का सामना किया और फ्लोरेंस नाइटिंगेल की सिफारिश पर कादम्बिनी विशेषज्ञता हासिल करने के लिए विदेश रवाना हुई. वह 1890 में लौटीं. अब उनके पास एडिनबर्ग, ग्लासगो और डुबलिन की कई डिग्रियां थीं और वह एशिया की पहली पश्चिम प्रशिक्षित महिला डॉक्टर हुईं.

राजनीतिक रूप से वह अकेली थीं : 1889 में कांग्रेस के पांचवें सत्र में वह छह महिलाओं में एक थीं, 1906 में उन्होंने एक साल पहले हुए बंगाल विभाजन के विरोध में महिलाओं का सम्मेलन किया और दक्षिण अफ्रीका के ट्रांसवाल में गांधीजी के सत्याग्रह का समर्थन करने के लिए बैठक की अध्यक्षता की.

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हिन्दू समाज के लिए पंडिता रमाबाई की क्षमाशीलता

लगभग उसी समय रमाबाई डोंगरे हिन्दू समाज के प्रति क्षमाशील दिख रही थीं. तब कलकत्ता यूनिवर्सिटी ने उन्हें उनके संस्कृत ज्ञान के लिए ‘पंडिता सरस्वती’ से सम्मानित किया था. 1853 में ब्राह्मण परिवार में जन्मीं रमाबाई ने 1880 में ब्रिटेन में ईसाई धर्म को स्वीकार कर लिया. वह अमेरिका गयीं जहां उन्होंने अपनी मशहूर किताब ‘द हाई कास्ट हिन्दू वुमन’ लिखी, जिसकी काफी चर्चा रही.

रमाबाई ने लिखा, “माना जाता है कि ब्राह्मण होने के लिए एक व्यक्ति को 84 लाख बार जन्म लेना होता है...इसलिए दूसरी जाति के हर व्यक्ति के लिए यह जरूरी है वह किसी भी नियम या अनुचित व्यवहार से नियमों का उल्लंघन करने के प्रति सावधान रहे.”

उसने ध्यान दिलाया कि वशिष्ठ ने लिखा है, “उस व्यक्ति के लिए (स्वर्ग में) कोई जगह नहीं है जो नर संतान का अपमान करता है...अगर दुर्भाग्य से एक महिला को केवल बेटियां होती हैं, कोई पुत्र नहीं होता तो मनु उस पति को अधिकृत करता है कि वह शादी के 11 साल बाद ऐसी महिला को छोड़कर किसी और के साथ शादी कर सकता है.”

उन्होंने निष्कर्ष निकाला, “भारत में बच्चे के जन्म के लिए जितना संघर्ष एक मां को करना पड़ता है उतना किसी अन्य देश में नहीं.”

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“हिन्दुओं का धार्मिक पाप जारी”

मुझे अचरज होता है कि रमाबाई की चमड़ी उतनी मोटी नहीं रही होगी जितनी कि इन्फोसिस के पूर्व शीर्ष अधिकारी मोहनदास पाई जैसे ‘आधुनिकता’ समूह से जुड़े लोगों की है जो आज मोदी की बीजेपी में सम्मानित नेता हैं और होनहार सुपर ट्रोलर.

हमारा विश्वास है कि सकारात्मक सक्रियता, वयस्क मतदान और सवर्ण व निम्न जातियों में अमीरी-गरीबी की खाई पट जाने से जातिवाद की खामियां दूर हो जाएंगी. लेकिन, 2015 में द जर्नल ऑफ कम्पैरेटिव इकॉनोमिक्स में डेल्ही स्कूल ऑफ इकॉनोमिक्स की स्मृति शर्मा को विपरीत सच्चाई मिली.

दलित और आदिवासियों के खिलाफ ऊंची जातियों की हिंसा से जुड़े ज़िलावार आंकड़ों का अध्ययन करने के बाद शर्मा ने पाया है कि 2001 से 2010 से तुलना करें तो सवर्णों का धन और खर्च गिरकर जैसे-जैसे एससी-एसटी के स्तर पर आया है उनकी हिंसा निम्न जातियों के खिलाफ बढ़ती चली गयी है. 

हिंसा में बढ़ोतरी देखी गयी जब एससी-एसटी की आय स्थिर रही और सवर्ण जातियों का खर्च बढ़ता चला गया. इस तरह उनके दरम्यान अंतर बढ़ा.

रमाबाई ने लिखा, “एक हास्य लेखक ने किसी हद तक सही कहा है, ‘हिन्दू भी धार्मिक रूप से पाप करते हैं’.” 210 साल बाद भी यह महज मजाक नहीं है.

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(लेखक दिल्ली के वरिष्ठ पत्रकार हैं. उन तक @AbheekBarman के जरिए सम्पर्क कर सकते हैं. यह एक विचार है और इसमें ऊपर व्यक्त नज़रिया लेखक की निजी सोच है. द क्विन्ट न तो इसकी वकालत करता है और न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)

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