ADVERTISEMENTREMOVE AD

अल-जवाहिरी की हत्या: फिर जाहिर हुआ अमेरिका, पाकिस्तान और तालिबान का स्वांग

अमेरिका ने जिस तरह जवाहिरी को मारा है, उससे यह संकेत मिलता है कि अफगानिस्तान अब भी आतंकवादियों के लिए स्वर्ग है

story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा
Hindi Female
“अल-कायदा के अमीर अयमान अल-जवाहिरी की हत्या को काउंटर टेरेरिज्म की कामयाबी के तौर पर बेचा जाएगा. लेकिन यह नेरेटिव इस यकीनी सच्चाई को भी छिपाता है कि तालिबान नियंत्रित अफगानिस्तान अल-कायदा के लिए एक महफूज़ ठिकाना है."

टेरेरिज्म के एक्सपर्ट और लॉन्ग वॉर जर्नल के संपादक बिल रोगियो को हमेशा कुछ संदेह रहा है, और वह सही थे. अमेरिकियों की शर्मनाक और उतावली वापसी के एक साल बाद का काबुल, बीस साल पहले के काबुल से भयावह तरीके से मिलता-जुलता है: एक काबुल जहां तालिबान शैली का अमन है- मरघट जैसा सन्नाटा है. .

ADVERTISEMENTREMOVE AD

यह वही काबुल है. जहां पश्चिम आतंकवाद से लड़ने के विवादास्पद फैसले के साथ पहुंचा था और बीस साल बाद उन्हीं आतंकवादियों से हाथ मिलाकर वापस लौट गया. अमेरिका ने उस बदनाम शांति समझौते पर दस्तखत भी किए जिसमें तालिबान के लिए एक ही शर्त थी- वह यह कि वह अल कायदा से अपने रिश्ते तोड़ लेगा. ताकि अफगानिस्तान एक बार फिर से अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद का अड्डा न बने.

स्नैपशॉट

अमेरिकियों की शर्मनाक और उतावली वापसी के एक साल बाद का काबुल, बीस साल पहले के काबुल से भयावह तरीके से मिलता-जुलता है.

काबुल के जिस घर में अयमान अल-जवाहिरी मारा गया, असल में उस घर के मालिक तालिबान के आंतरिक मंत्री सिराजुद्दीन हक्कानी हैं.

जवाहिरी और उसका परिवार, जिनके बारे में कहा जाता है कि कुछ समय पहले तक पाकिस्तान में था, काबुल क्यों और कब चला गया?

वैसे इस बात के पक्के सबूत थे कि न केवल अल-कायदा बल्कि दूसरे जिहादी ग्रुप भी इस इलाके में जिंदा और पहले से भी ज्यादा खुशहाल हैं. यह इलाका आतंकवादियों के लिए स्वर्ग से कम नहीं. लेकिन किसी ने इसकी परवाह नहीं की.

0

लेकिन वह कहानी फिर से दोहराई जा रही है

वैसे इस बात के पक्के सबूत थे कि न केवल अल-कायदा बल्कि दूसरे जिहादी ग्रुप भी इस इलाके में जिंदा और पहले से भी ज्यादा खुशहाल हैं. यह इलाका आतंकवादियों के लिए स्वर्ग से कम नहीं. लेकिन किसी ने इसकी परवाह नहीं की. बहुत कायदे से मैनेज किए गए प्रेस कैंपेन ने कथित ‘तालिबान 2.0’ को अंतरराष्ट्रीय मीडिया का उपजीवी बना दिया था.

अफगान सरकार की उदासीन शख्सीयतों को पूरी इज्जत से, पश्चिमी सरकारें न्योता देती रहीं, प्राइवेट जेट में बुलाया गया. पश्चिमी सरकारों के नुमाइंदों ने कहा कि उन्हें इन बटमारों के साथ ‘मानवाधिकारों’ पर बातचीत करने में बहुत ‘गर्व’ महसूस हो रहा है.

फिर, क्योंकि कोई भी अमेरिकी राष्ट्रपति किसी अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी को मार गिराने से खुद को रोक नहीं सकता, इसलिए एक अचरज सामने आया: एक आर9एक्स मिसाइल ने अयमान अल-जवाहिरी का काम तमाम कर दिया.
ADVERTISEMENTREMOVE AD

यह वह व्यक्ति था जिसने ओसामा बिन लादेन के साथ ट्विन टावर हमले की योजना बनाई थी. इसके अलावा जब जवाहिरी हमले का शिकार हुआ, उस वक्त वह किसी पहाड़ी में छिपा हुआ नहीं था. वह काबुल के बीचों बीच शेरपुर के सबसे आलीशान रेसिडेंशियल इलाके में 16 कमरों वाले गुलाबी बंगले की सुंदर बालकनी में बैठा सुबह की धूप सेंक रहा था.

और- फिर से एक अचरज- उस घर के मालिक असल में सिराजुद्दीन हक्कानी हैं. हां, वही सिराजुद्दीन जो तालिबान के आंतरिक मंत्री हैं, उनके उप-प्रधानमंत्री हैं, जो अभी भी संयुक्त राष्ट्र की अंतरराष्ट्रीय आतंकवादियों की सूची में हैं और बहुत ही लोकतांत्रिक कहलाने वाले न्यूयॉर्क टाइम्स के कॉलमिस्ट भी हैं.

जवाहिरी की मौत के बाद, एबटाबाद में ओसामा बिन लादेन की हत्या के साथ शुरू हुआ तमाशा दोहराया गया, उसके ऐक्टर्स, स्क्रिप्ट राइटर्स वही हैं, यहां तक कि प्लॉट भी करीब-करीब वही है.

बिंदु मिलाते जाइए

सबसे पहले: ड्रोन काबुल कैसे पहुंचा? जवाब हवा में नहीं उड़ रहा है, बल्कि यह हवाई मार्ग में तैर रहा है. जैसा देखा जा सकता है, अमेरिका पाकिस्तानी एयरबेस नहीं, तो पाकिस्तान के हवाई क्षेत्र का उपयोग कर रहा होगा. एक और सवाल: जमीनी स्तर पर शुरुआती काम किसने किया? जवाहिरी को निशाना बनाने की योजना और उसके लॉजिस्टिक्स की तैयारी महीनों से चल रही होगी और इसके लिए बहुत से लोग काम पर लगे होंगे. जवाहिरी और उसका परिवार, जिनके बारे में कहा जाता है कि कुछ समय पहले तक पाकिस्तान में था, काबुल क्यों और कब चला गया?

अब जरा बचकानी बात की जाए और सारे बिंदुओं को मिलाया जाए. जवाहिरी पाकिस्तान में था और उसे आईएसआई के बंदे सिराजुद्दीन हक्कानी की देखरेख में काबुल ले जाया गया था. हाल ही में पाकिस्तानी सेना के प्रमुख जनरल बाजवा ने अमेरिका के विदेश सचिवों में से एक वेंडी शेरमेन से फोन पर बातचीत की थी.

निक्केई एशिया स्कूप के अनुसार, यह फोन कॉल 1.2 बिलियन डॉलर के कर्ज के बारे में थी. अगर पाकिस्तान दूसरा श्रीलंका नहीं बनना चाहता तो उसे दिवालिया होने से बचने के लिए अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) से यह कर्ज हासिल करना होगा.
ADVERTISEMENTREMOVE AD

अब, जो बात सामने आती है वह यह है कि पाकिस्तान में एक ही बात पर चर्चा है- एक बूढ़े, बीमार और लगभग बेकार हो चुके आतंकवादी को सौंप दिया जाए और बदले में आईएमएफ अपने अगले सेशन में पाकिस्तान को अरबों डॉलर का कर्ज थमा देगा.

यूं जवाहिरी को अपने बॉस ओसामा की तरह पाकिस्तान में नहीं मारा गया, और सभी के हाथ रेवड़ियां लग गईं. अंकल जो को कमांडर-इन-चीफ के तौर पर 15 मिनट की वाहवाही मिल गई, रावलपिंडी का पाक दामन उजला रहा, और इस्लामाबाद ने माल लूट लिया. तालिबान गुस्से में है - या ऐसा दिखावा कर रहा है- और अमेरिका पर दोहा समझौते का उल्लंघन करने का आरोप लगा रहा है.

पर कोई नहीं हारा, सब जीत गए

दूसरी तरफ वॉशिंगटन भी तालिबान पर ऐसे ही उल्लंघन का आरोप लगा रहा है- सब जानते हैं कि दोहा समझौता सिर्फ कागजी है, उससे ज्यादा कुछ नहीं.

और पाकिस्तान, जोकि हर हाल में समझौता करना चाहता है, ने सबसे पेचीदा बयान दिया है- “पाकिस्तान आतंकवाद के सभी रूपों और अभिव्यक्तियों की निंदा करता है. आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में पाकिस्तान की भूमिका और बलिदान जगजाहिर है. पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय कानून के अनुसार आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए खड़ा है.” लेकिन उसने अंदरूनी पलटवार के खौफ से ‘जवाहिरी’ शब्द का जिक्र नहीं किया है.

और यह खिलवाड़ फिर से शुरू हो गया है, और बेशक, जारी रहने वाला है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

(फ्रांसेस्का मैरिनो एक पत्रकार और दक्षिण एशिया एक्सपर्ट हैं. उन्होंने बी नताले के साथ 'एपोकैलिप्स पाकिस्तान' लिखा है. उनकी नई किताब 'बलूचिस्तान - ब्रुइज़्ड, बैटरेड एंड ब्लडिड' है. वह @ francescam63 पर ट्वीट करती हैं. यह एक ओपिनियन पीस है और इसमें व्यक्त किए गए विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट उनके विचारों के लिए न तो समर्थन करता है और न ही उसके लिए जिम्मेदार है.)

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×