तो ये था मोदी सरकार का छठा और आखिरी बजट. सवाल ये है कि ये बजट एक छूटी हुई आतिशबाजी साबित होगा या बाजी मार ले जाएगा?
क्या इससे लोगों की जेब भारी हो पाएगी? क्या ये बीजेपी को दोबारा सत्ता में लाने के लिए लोगों को लुभा पाएगा?
एक बात स्पष्ट है कि छोटे किसानों को सालाना 6,000 रुपये देने का प्रस्ताव उन्हें कुछ भी नहीं देने से तो बेहतर है.
इस दिशा में मनरेगा एक प्रयास जरूर था, लेकिन इसका लाभ उठाने के लिए उन्हें कुछ काम करना पड़ता था. अब वो बिना कुछ काम किये ये लाभ प्राप्त करेंगे.
तेलंगाना सरकार ने पिछले साल यही किया था और दोबारा सत्ता में आई. इस योजना में प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि से 6,000 रुपये की तय राशि 2 हेक्टेयर से कम भूमि वाले सभी किसानों को तीन समान किश्तों में दी जाएगी. ये योजना दिसंबर 2018 से ही लागू की जा चुकी है.
असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के लिए बजट में प्रधानमंत्री श्रम योगी मनधन कार्यक्रम के तहत पेंशन देने का प्रस्ताव है. इस प्रस्ताव में 60 वर्ष की उम्र तक 3000 रुपये प्रति माह पेंशन देने की योजना है. इसका लाभ उठाने के लिए श्रमिकों को हर माह 100 रुपये का योगदान करना होगा. शेष राशि सरकार देगी.
ये रकम बहुत बड़ी नहीं है. लेकिन ये बहुप्रतीक्षित न्यूनतम आय गारंटी आरंभ करने का संकेत देती है. राहुल गांधी ने कांग्रेस के निर्वाचित होने पर इसी गारंटी का वादा किया था.
अब बीजेपी ने ये वादा झटक लिया है. देखने वाली बात होगी कि इसका चुनावी फायदा मिलता है या नहीं.
अन्य प्रमुख घोषणाओं में एक था, सालाना 5 लाख रुपये तक की आमदनी वालों को कोई आयकर भुगतान नहीं करना होगा. लेकिन कुल मिलाकर देखा जाए, तो इससे होने वाली बचत बहुत बड़ी राशि नहीं होगी.
लेकिन इसे हर किसी के द्वारा दिए जा रहे उच्च कर के संदर्भ में देखना होगा, जिसके लिए काफी हद तक जीएसटी जिम्मेदार है. ऐसे में आम आदमी के लिए हर आमदनी स्वागत योग्य है, जो अब तक उसके लिए अनुपलब्ध थी.
मानक कटौती की सीमा 40,000 रुपये से बढ़ाकर 50,000 रुपये करने का प्रस्ताव भी इसी सुखद दृष्टिकोण से देखा जा सकता है. इससे करदाताओं के पास खर्च के लिए कुछ और धन बचेगा.
ग्रामीण और शहरी, दोनों तबके को प्रभावित करने वाले इन दो बड़े परिवर्तनों के अलावा, बजट में आम आदमी के लिए ज्यादा कुछ नहीं है. दूसरे घर की बिक्री पर पूंजीगत लाभ में कर राहत महत्त्वपूर्ण तो है, लेकिन इसे चुनावी दृष्टि से जोड़कर नहीं देखा जा सकता. इससे लाभान्वित होने वालों की संख्या बहुत कम होगी.
सबने कहा कि कुछ अन्य बदलावों पर भी ध्यान दिया जाए, तो बजट काफी अच्छा है. उदाहरण के लिए, समय पर भुगतान करने वाले किसानों और छोटे तथा मध्यम आकार के उद्यमों के लिए ब्याज में कमी की योजना. इन घोषणाओं में ऋण में छूट या अन्य माध्यम से आमदनी के प्रावधान नहीं हो सकते हैं. इसका अर्थ ये है कि ये छूट सार्वभौमिक हैं और एक दायरे में नहीं बंधे हैं.
अब विशाल स्तर पर बुनियादी मामलों के बारे में जानते हैं. छूट के कारण होने वाला राजकोषीय घाटा क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों को नाखुश करेगा. क्या जीडीपी का घाटा 3.4 प्रतिशत पर टिका रहेगा?
इस प्रश्न का जवाब काफी कुछ राजस्व संग्रह में बढ़ोत्तरी पर निर्भर करता है. ऐसे संकेत हैं कि राजस्व आमदनी में बढ़ोतरी होनी शुरू हो गई है और जनवरी में जीएसटी संग्रह एक लाख करोड़ से ज्यादा हुआ है. अगर आर्थिक गतिविधियां बढ़ती हैं. तो जीएसटी से राजस्व प्राप्ति में भी वृद्धि होगी.
विस्तार से बातें एक तरफ, मुख्य बात ये है कि सरकार घाटा कम करने के लिए पूरी तरह से दृढ़संकल्प है. थोड़ा-बहुत इधर-उधर कोई मायने नहीं रखता. जो बात मायने रखती है, वो है इरादा और दृढ़ संकल्प.
आलोचक और विशेषकर विपक्षी दल चाहे जो भी कहें, लेकिन बिना घाटे में अधिक बढ़ोतरी किए सभी की आमदनी और कर राहत में थोड़ी वृद्धि के लिए सरकार को बधाई दी जानी चाहिए.
निश्चित रूप से बजट में कमियां निकाली जाएंगी, कुछ लोग इसे न्यायोचित बताएंगे और कुछ नहीं. लेकिन ऐसा हर बजट के बाद होता है.
कुल मिलाकर अंत में बजट का सार यही है: लोगों की जेब में इस प्रकार कुछ पैसे डालें, जिससे राजकोषीय घाटा अधिक न हो.
बजट सत्र 13 फरवरी को समाप्त हो रहा है. ये देखना दिलचस्प होगा कि क्या बजट पारित हो पाता है? संभावना है कि ये पारित हो जाएगा, क्योंकि कोई भी राजनीतिक दल ऐसे बजट का विरोध कैसे कर सकता है?
अगले हफ्ते से ध्यान चुनावों की ओर होगा. लेकिन काफी संभावना है कि ये बजट चुनाव परिणामों पर ज्यादा असर नहीं डाल पाएगा.
फिर भी न्यूनतम आय योजनाओं के माध्यम से ये निश्चित रूप से भारतीय अर्थव्यवस्था के डेटा ऑपरेटिंग सिस्टम में महत्त्वपूर्ण बदलाव लाएगा.
(लेखक आर्थिक-राजनीतिक मुद्दों पर लिखने वाले वरिष्ठ स्तंभकार हैं. इस आर्टिकल में छपे विचार उनके अपने हैं. इसमें क्विंट की सहमति होना जरूरी नहीं है.)
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