देश में ईद उल-अजहा यानी बकरीद का त्यौहार 1 अगस्त को मनाया जाएगा. फतेहपुरी मस्जिद के शाही इमाम मौलाना डॉ. मुफ्ती मोहम्मद मुकर्रम ने मंगलवार को ऐलान किया कि नया चांद अभी तक नहीं दिखा है, इसलिए ईद-उल अज्हा यानी बकरीद 1 अगस्त को मनाई जाएगी. मौलाना मुकर्रम फतेहपुरी रॉयल हिलाल कमिटी के अध्यक्ष भी हैं.
वहीं, मरकजी चांद कमिटी ने भी कहा कि मंगलवार को चांद का दीदार नहीं हुआ. उधर, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और कतर जैसे इस्लामी देश ऐलान कर चुके हैं कि ईद-उल अज्हा 31 जुलाई को मनाई जाएगी. इस्लामी पंचांग के मुताबिक, ईद-उल अज्हा धु अल-हिजा के 10वें दिन मनाई जाती है.
बकरीद के मौके पर मुसलमान नमाज के साथ-साथ चौपाया जानवरों की कुर्बानी देते हैं. कुर्बानी देने के बाद इसे तीन हिस्सों में बांटा जाता है. एक हिस्सा गरीबों में, दूसरा हिस्सा दोस्त और रिश्तेदारों में और तीसरा हिस्सा अपने पास रखा जाता है.
बकरीद पर क्यों दी जाती है कुर्बानी?
बता दें कि बकरीद का महीना इस्लामिक कैलेंडर का आखिरी महीना होता है. और इसी महीने की 10 तारीख को बकरीद मनाया जाता है. लेकिन इसकी कहानी इस्लमिक पैगम्बर इब्राहीम अलैहिस्सलाम के जमाने में शुरू हुई थी.
इस्लाम में कई सारे पैगम्बर आये हैं. पैगम्बर मतलब अल्लाह का दूत या मैसेंजर. उन्हीं पैगंबरों में से एक हैं इब्राहिम अलैहिस्सलाम. इन्हीं की वजह से कुर्बानी देने की परंपरा शुरू हुई.
इस्लामिक इतिहास के मुअतबिक
अल्लाह ने एक बार इनके ख्वाब में आकर इनसे इनकी सबसे प्यारी चीज कुर्बान करने को कहा. इब्राहिम अलैहिस्सलाम को अपनी इकलौती औलाद उनका बेटा सबसे ज्यादा प्यारा था. मगर अल्लाह के हुक्म के आगे वह अपनी सबसे करीबी चीज को कुर्बान करने को तैयार थे.
इब्राहिम अलैहिस्सलाम ने अपने दिल पर काबू किया और अपने बेटे को कुर्बान करने चल दिए. तभी रास्ते में उन्हें एक शैतान मिला जिसने उन्हें उनके फैसले पर दोबारा सोचने को कहा. शैतान उनसे कहने लगा कि भला इस उम्र में वह अपने बेटे को क्यों कुर्बान करने जा रहे हैं? शैतान की बात सुनकर वह सोच में पड़ गए. मगर कुछ देर बात उन्हें याद आया कि उन्होंने अल्लाह से वादा किया है.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)